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ऐस्ट्रो  धर्म :



रमजान के महीने के बारे में कहा जाता है कि यदि कोई रोजेदार इस पाक महीने में बुरे कर्म करेगा तो उसको आम दिनों की अपेक्षा सत्तर गुना ज्यादा दंड मिलेगा और अच्छा काम करेगा तो उसको सत्तर गुना अधिक सवाब मिलेगा। रमजान के महीने में तराबी के पढ़ने से इंसान की रुह पाक साफ होती है। रमजान के महीने में रोजे रखने का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि इससे रुह और आत्मा दोनों स्वच्छ होती है।

ऐसे रखें रोजे
रोजे रखने के लिए रोजादार को सूर्योदय के पहले उठकर कुछ खा लेना चाहिए। इसको सेहरी करना कहते हैं। इसके बाद दिन में कुछ भी खाने-पीने की मनाही होती है। शाम को मगरीब की नमाज के बाद कुछ खाकर रोजा खोला जाता है। मान्यता है कि रमज़ान के महीने में रोज़ादार को इफ्तार कराने वाले के गुनाह माफ हो जाते हैं। इफ्तार के संबंध में हजरत मुहम्मद का कहना है कि खजूर या पानी से ही इफ्तार कराया जा सकता है। कहा जाता है कि अल्लाह ने मुसलमानों को रोजे रखने के लिए इसलिए कहा ताकि वो अपने अंदर परहेज की आदत पैदा कर सकें।
रोजेदार बुराईयों से मुकद्दस हो जाता है
रमजान के दिनों में सिर्फ रोजा रखना ही काफी नहीं है। बल्कि आदतों पर नियंत्रण रखना भी जरूरी है। रमजान के दौरान रोजेदार को बुरी सोहबतों से दूर रहना चाहिए। ना तो झूठ बोलना चाहिए न ही किसी की इस दौरान बुराई करना चाहिए। दंगे-फसाद से दूरी बनाकर रखना चाहिए। इसलिए कहा जाता है कि गलत चीजों को देखने और सुनने से भी रोजा टूट जाता है। मान्यता है कि रोजा रखने से इंसान हर गलत काम और बुराइयों से मुकद्दस हो जाता है।रोजे इंसान को स्वयं पर काबू रखने की तरबियत देते हैं।
ज्यादा समय गुजारे इबादत में
रमजान में यदि रोजा रखना है तो रोजेदार को रात को इसको नियत कर लेना चाहिए। बेहतर यह है कि रमजान के महीने की पहली रात को ही पूरे महीने के रोजे की नियत कर लें। रमजान के शुरू होने से पहले जरूरत का साजो-सामान खरीद ले, जिससे रोजे के दौरान बाजारों के चक्कर न लगाना पड़े और ज्यादा से ज्यादा समय इबादत में गुजरे।
इफ्तार के लिए खजूर है बेहतर
रोजे में मगरीब की नमाज अदा करने के बाद इफ्तार करें और पर्याप्त पानी पीकर शरीर में दिनभर के पानी की कमी को दूर करें। दिनभर के रोजे के बाद इफ्तार की शुरूआत काफी हल्के खाने से करे। इफ्तार के लिए खजूर को बेहतर माना जाता है। इसलिए फल, सलाद, खजूर, सूप, जूस को इसमें शामिल करें। गर्मी का मौसम है इसलिए सहरी के खाने का भी खास ख्याल रखें। तला,गला, मसालेदार भोजन न लें। दूध, ब्रेड, ओटमील, फल सेहरी मे सेहत के लिए बेहतर होते हैं।
बुरी आदतों से रहे दूर
रमजान के मुकद्दस महीने में ज्यादा से ज्यादा समय इबादत में गुजारें। कुरान की तिलावत, नमाज की पाबंदी, जकात, सदाक और अल्‍लाह का जिक्र करते हुए इबादत करें। इस पाक महीने में नेक काम करने और इफ्तार कराने से सवाब बढ़ता है। यदि रोजेदार गलती से कुछ खा पी ले तो उसका रोजा टूटता नहीं है। रमजान के महीने में रोजेदार गलत लतों से दूर रहता है।
इसलिए इस महीने में सिगरेट, गुटखा, शराब आदि से दूर रहें। रमजान के महीने में कुरान पाक की तिलावत की आदत डालें। इससे बहुत सवाब हासिल होता है। रात को जल्द सोकर सुबह फज्र का नमाज के लिए उठने की आदत बनाएं। इस पाक महीने में फ्ल नमाजों का तहाजुद की नमाज की तरह एहतेमाम करें



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एस्ट्रो  धर्म :



ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हर राशि और ग्रह का अपना वृक्ष होता है। वैसे ही हर नक्षत्र का भी अपना वृक्ष होता है। ये वृक्ष अपने नक्षत्र, राशि या ग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस वृक्षों पर नक्षत्र व ग्रहों का प्रभाव रहता है, इसलिये अगर अपने जन्म नक्षत्र के अनुसार वृक्ष लगाए जाएं तो ये बहुत ही फलदायक साबित होते हैं। इससे आपको हर कार्य में सफलता व उन्नति मिलेगी। साथ ही साथ कई अन्य लाभ भी मिलेंगे। तो आइए जानते हैं आपके जन्म नक्षत्र के अनुसार कौन सा वृक्ष लगाना फायदेमंद रहेगा...


1. अश्विनी नक्षत्र में जन्में लोगों के लिये कोचिला वृक्ष लगाना बहुत फायदेमंद रहेगा।
2. जिन जातकों का भरणी नक्षत्र में जन्म हुआ है वे आंवले का पेड़ लगा सकते हैं।
3. कृतिका नक्षत्र में जन्में जातक अगर गुड़हल का पेड़ लगाएंगे तो लाभ मिलेगा।
4. रोहिणी नक्षत्र वाले जातक अपने आसपास या घर में जामुन का पेड़ लगाएं, लाभदायक रहेगा।
5. मृगशिरा नक्षत्र में जन्में जातक खैर का वृक्ष लगा सकते हैं, फालदायक साबित होगा।
6. आर्द्रा नक्षत्र में जन्में जातकों को शीशम का वृक्ष लगाने से बहुत लाभ प्राप्त होगा।
7. जिन जातकों का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ है उन्हें बांस का पेड़ लगाना चाहिये।
8. जिन लोगों का जन्म नक्षत्र पुष्य है उन्हें पीपल का पेड़ लगाना फायदेमंद रहेगा।
9. अश्लेषा नक्षत्र में जन्में जातक अपने घर में नागकेसर का पेड़ लगाएं बहुत लाभप्रद साबित होगा।
10. मघा नक्षत्र में जन्में जातक वट वृक्ष लगाएं बहुत लाभ मिलेगा।
11. जिन लोगों का जन्म पूर्वा नक्षत्र में हुआ है उन्हें पलाश का वृक्ष लगाना चाहिये, लाभ मिलेगा।
12. उत्तरा नक्षत्र में जन्में जातक अपने घर में पाकड़ का पेड़ लगाएं लाभ मिलेगा।
13. कहा जाता है की जो लोग हस्त नक्षत्र में जन्में हैं वे रीठा वृक्ष लगाएं।
14. चित्रा नक्षत्र में जन्में जातकों को बेल का वृक्ष लगाना चाहिये, फायदेमंद रहेगा।
15. स्वाती नक्षत्र में जन्में जातक अर्जुन का पेड़ लगाएं , लाभ मिलेगा।
16. जिन जातकों का जन्म विशाखा नक्षत्र में हुआ है उन्हें कटैया का पेड़ लगाना चाहिये।
17. जो लोग अनुराधा नक्षत्र में जन्में हैं वे लोग भालसरी का वृक्ष लगाएं।
18. ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्में जातक चीर का पेड़ लगाएं, मिलेगा भरपूर लाभ।
19. कहा जाता है की जिन जातकों का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है उन्हें शाल का वृक्ष लगाना चाहिये।
20. पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों को अशोक का पेड़ लगाना चाहिये।
21. उत्तराषाढ़ नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों को कटहल का वृक्ष लगाना शुभ रहेगा।
22. श्रवण नक्षत्र में जन्में लोग अकौन के वृक्ष को लगाएं, लाभ मिलेगा।
23. धनिष्ठा नक्षत्र वाले लोग शमी का वृक्षारोपण करें, फायदेमंद रहेगा।
24. शतभिषा नक्षत्र में जन्में जातक कदंब का वृक्ष लगाएं, शुभ रहेगा।
25. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जन्में लोग आम का पेड़ लगाएं, लाभ मिलेगा।
26. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों के लिये नीम का पेड़ लगाना उत्तम साबित होगा।
27. वहीं रेवती नक्षत्र में जन्में लोगों के लिये महुआ का पेड़ लगाना बहुत शुभ रहेगा।
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होली का पर्व देशभर के हर हिस्से में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। होली की धूम और प्रसिद्धि की बात की जाए तो ब्रज की होली विश्वभर में बहुत प्रसिद्ध है। ब्रज की होली की परंपराएं बहुत ही अनोखी व जीवंत मानी जाती है। बरसाना की लट्ठमार होली का त्योहार देखने लाखों लोग यहां आते हैं। वहीं बरसाना में कटारा हवेली स्थित एक मंदिर है ब्रज दूलह मंदिर जहां ब्रज की राधा स्वरुप हरियारी कृष्ण को लाठियां मारती हैं। यहां की परंपरा अनुसार आज भी श्री कृष्ण की लाठियों से पिटाई होती है।

यहां सिर्फ महिलाएं करती है पूजा
बरसाना के कटारा हवेली स्थित ब्रज दूलह मंदिर बहुत प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर की खासियत है की यहां सिर्फ महिलाएं ही पूजा करती हैं। मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर रूपराम कटारा ने बनवाया था। इसलिये यहां आज भी उनके परिवार की महिलाएं ब्रज दूलह के रूप में विराजमान भगवान श्री कृष्ण की पूजा करती हैं और यही नहीं यह मंदिर ब्रज का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां श्री विग्रह कृष्ण को लाठियां मारी जाती है।
कटारा परिवार आज भी करता है नंदगांव के हुरियारे का स्वागत
लठामार होली वाले दिन नंदगांव के हुरियारे कटारा हवेली पहुंच कर श्रीकृष्ण से होली खेलने को कहते हैं। कटारा परिवार द्वारा हुरियारों का स्वागत किया जाता है। उनको भाग और ठंडाई पिलाई जाती है। ब्रज दूलह मंदिर की सेवायत की राधा कटारा ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण कटारा हवेली में ब्रज दूलह के रूप में विराजमान हैं। यहां सभी व्यवस्थाएं महिलाएं करती हैं। होली के दिन लठामार होली की शुरुआत ब्रज दूलह के साथ होली खेलते हुए होती है।
इसलिये यहां का नाम ब्रज दूलह पड़ गया
पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण गोपियों को कई तरह से परेशान किया करते थे। कभी उनकी मटकी फोड़ देते तो कभी माखन चुरा कर खा लेते थे। एक बार बरसाना की गोपियों ने कृष्ण को सबक सिखाने की योजना बनाई। उन्होंने कृष्ण को उनके सखाओं के साथ बरसाना होली खेलने का न्यौता दिया। श्रीकृष्ण और ग्वाल जब होली खेलने बरसाना पहुंचे तो उन्होंने देखा कि बरसाना की गोपियां हाथ में लाठियां लेकर खड़ी हैं। लाठियां देख ग्वाल-बाल भाग गए। जब श्रीकृष्ण अकेले पड़ गए तो गायों के खिरक में जा छिपे। जब गोपियों ने कान्हा को ढूंढा और यह कह कर बाहर निकाला कि ‘यहां दूल्हा बन कर बैठा है, चल निकल बाहर होली खेलते हैं’। इसके बाद गोपियों ने श्रीकृष्ण के साथ जमकर होली खेली। तभी से भगवान का एक नाम ब्रज दूलह भी पड़ गया।
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ऐस्ट्रो धर्म 

अब तक जो सूचना सामने आ रही है उसके अनुसार 29 अप्रैल 2020 को भगवान शिव के एक ऐसे ज्योतिर्लिंग कपाट खुलने जा रहे हैं, जिन्हें जागृत महादेव माना जाता है। माना जाता है कि इस मंदिर में शिव आज भी जागृत अवस्था में हैं और समय समय पर भक्तों की मदद के लिए अपने चमत्कार दिखाने के साथ ही भक्तों को दर्शन भी देते हैं।
इस मंदिर का द्वार आम दर्शनों के लिए मेष लग्न में सुबह 6:10 पर खोला जाएगा। इसके बाद छह माह तक अराध्य की पूजा-अर्चना धाम में ही होगी। दरअसल हम बात कर रहे हैं भगवान शिव के 11वें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ की।
इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए भक्त करीब 6 माह तक का इंतजार करते हैं। यहां की चढ़ाई को बेहद ही मुश्किल माना जाता है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि भोले बाबा जिसे दर्शन देने की ठान लेते हैं उसे दर्शन देकर ही रहते हैं। इसी बात से जुड़ी भगवान शिव के एक भक्त की कहानी है, जिसके बाद से केदरनाथ को जागृत महादेव कहा जाने लगा।
केदारनाथ को ‘जागृत महादेव’ कहा जाता है। इसके पीछे एक प्रसंग प्रचलित है। प्रसंग के मुताबिक,बहुत समय पहले एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला। पहले यातायात की सुविधाएं तो थी नहीं वह पैदल ही निकल पड़ा। रास्ते में जो भी मिलता उससे केदारनाथ का मार्ग पूछ लेता और मन में भगवान शिव का ध्यान करता रहता। चलते चलते उसको केदारनाथ धाम तक पहुंचने में महीनों लग गए।
आखिरकार एक दिन वह केदार धाम पहुंच ही गया। केदारनाथ में मंदिर के द्वार 6 महीने खुलते है और 6 महीने बंद रहते हैं। भक्त जब वहां पहुंचा तो उस समय केदारनाथ के द्वार 6 महीने के लिए बंद हो रहे थे। परंपरा के मुताबिक दोबारा ये द्वार 6 महीने के बाद ही खुलते।
भक्त ने पंडित जी से इस बात का अनुरोध किया कि द्वार खोल दिए जाएं ताकि वह प्रभु के दर्शन कर सके, लेकिन पंडित जी ने परंपरा का पालन करते हुए द्वार को बंद कर दिए, क्योंकि वहां का तो नियम है एक बार द्वार बंद तो बंद।
इससे भक्त बहुत निराश हुआ और रोने लगा। इसके बाद वह बहुत रोया। बार-बार भगवन शिव को याद किया कि प्रभु बस एक बार दर्शन करा दो। वह प्रार्थना कर रहा था सभी से लेकिन उसकी किसी ने भी नहीं सुनी।

शिव भक्त को मिलें सन्यासी बाबा...
पंडित जी ने भक्त से कहा कि वह अपने घर चला जाए और दोबारा 6 महीने के बाद आए। लेकिन भक्त ने उनकी बात नहीं मानी और वहीं पर खड़ा होकर शिव का कृपा पाने की उम्मीद करने लगा। रात में समय भूख-प्यास से उसका बुरा हाल हो गया। इसी दौरान उसने रात के अंधेरे में एक सन्यासी बाबा के आने की आहट सुनी।
बाबा के आने व पूछने पर भक्त ने उनसे समस्त हाल कह सुनाया। फिर बहुत देर तक बाबा उससे बातें करते रहे। बाबा जी को उस पर दया आ गई। वह बोले, “बेटा मुझे लगता है, सुबह मन्दिर जरुर खुलेगा। तुम दर्शन जरूर करोगे।'' इसके कुछ समय बातों-बातों में इस भक्त को ना जाने कब गहरी नींद आ गई।
सुबह सूर्य के मद्धिम प्रकाश के साथ भक्त की आंख खुली। उसने इधर उधर बाबा को देखा किन्तु वह कहीं नहीं थे। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता उसने देखा पंडित आ रहे है अपनी पूरी मंडली के साथ। उस ने पंडित को प्रणाम किया और बोला कल आप ने तो कहा था मन्दिर 6 महीने बाद खुलेगा? इस बीच कोई नहीं आएगा यहां लेकिन आप तो सुबह ही आ गये।
गौर से देखने पर पंडित जी ने उस भक्त को पहचान लिया औरपुछा, तुम वही हो जो मंदिर का द्वार बंद होने पर आये थे? जो मुझे मिले थे। 6 महीने होते ही वापस आ गए!
उस आदमी ने आश्चर्य से कहा नहीं, मैं कहीं नहीं गया। कल ही तो आप मिले थे रात में मैं यहीं सो गया था। मैं कहीं नहीं गया। पंडित के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। उन्होंने कहा लेकिन मैं तो 6 महीने पहले मंदिर बन्द करके गया था और आज 6 महीने बाद आया हूं। तुम 6 महीने तक यहां पर जिन्दा कैसे रह सकते हो? पंडित और सारी मंडली हैरान थी।
इतनी सर्दी में एक अकेला व्यक्ति कैसे 6 महीने तक जिन्दा रह सकता है। तब उस भक्त ने उनको सन्यासी बाबा के मिलने और उसके साथ की गई सारी बाते बता दी कि एक सन्यासी आया था लम्बा था, बढ़ी-बढ़ी जटाये, एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में डमरू लिए, मृग-शाला पहने हुआ था।
पंडित जी समझ गए कि इस भक्त से उस रात स्वयं शिव जी ही मिलने आए थे। यही वजह है कि केदारनाथ को ‘जागृत महादेव’ कहा जाता है।
इसके बाद पंडित और सब लोग उसके चरणों में गिर गये। बोले हमने तो जिंदगी लगा दी किन्तु प्रभु के दर्शन ना पा सके सच्चे भक्त तो तुम हो। तुमने तो साक्षात भगवान शिव के दर्शन किए हैं। उन्होंने ही अपनी योग-माया से तुम्हारे 6 महीने को एक रात में परिवर्तित कर दिया। काल-खंड को छोटा कर दिया। यह सब तुम्हारे पवित्र मन और तुम्हारे विश्वास के कारण ही हुआ है।
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ज्योतिषियों के अनुसार रविवार के दिन नए साल की शुरुआत रहेगी लाभकारी
बीकानेर (जयनारायण बिस्सा)। नववर्ष 2017 में नव ग्रह अपना स्थान यानी राशि को बदलकर दूसरी राशि में जाएंगे। आम तौर पर सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, शुक्र ग्रह ही अपनी राशि परिवर्तित करते हैं। शनि, बृहस्पति, राहु और केतु हर वर्ष अपना स्थान परिवर्तन नहीं करते मगर नए साल में कुछ अलग ही होने जा रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार वर्ष 2017 में नौ ग्रह अपना स्थान परिवर्तित करेंगे।ज्योतिषियों का कहना है कि वर्ष 2017 रविवार के दिन शुरू हो रहा है। रविवार के गुरु सूर्यदेव हैं। इसलिए नया साल सूर्यदेव के प्रभाव में रहेगा। वर्ष की शुरुआत रविवार के दिन होने को ज्योतिषि काफी शुभकारी मानकर चल रहे हैं। ज्योतिषियों के अनुसार रविवार के स्वामी सूर्यदेव हैं। इस तरह 2017 में सूर्यदेव का प्रभाव रहेगा। रविवार के दिन नववर्ष का आगाज होने से 2017 के अधिपति ग्रह सूर्यदेव रहेंगे। नए साल में नव ग्रह 2017 में राशि को छोडक़र दूसरी राशि में जाएंगे। ज्योतिषियों के अनुसार सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध और शुक्र हर वर्ष अपनी राशि बदलते हैं मगर शनि, बृहस्पति, राहु और केतु हर वर्ष अपनी राशि परिवर्तित नहीं करते।ज्योतिषियों का कहना है कि शनि अपनी राशि ढाई वर्ष में, बृहस्पति 13 महीने में तथा राहु और केतु 18 महीने में अपनी राशि परिवर्तित करते हैं। सन् 2000 में नई सदी शुरू होने के बाद अलग-अलग वर्षों में शनि, बृहस्पति, राहु और केतु अपनी राशि परिवर्तन कर चुके हैं। चालू शताब्दी में यह पहली बार होगा, जब नवग्रह अपनी राशि एक ही वर्ष में बदलेंगे।
ज्योतिषियों के अनुसार बृहस्पति 12 सितंबर को कन्या राशि का परित्याग कर तुला राशि में प्रवेश करेंगे। शनि देव 25 अक्टूबर को वृश्चिक राशि का त्याग कर धनु-राशि में जाएंगे। वहीं राहु 17 अगस्त को सिंह राशि का त्याग कर कर्क राशि में प्रवेश करेंगे।  केतु भी 17 अगस्त को कुंभ राशि का त्याग कर मकर राशि में जाएंगे।
नए साल में रविवार का महत्व: नया साल रविवार के दिन से आरंभ होगा और वर्ष भर रविवार का महत्व बरकरार रहेगा। नए साल के पहले महीने जनवरी में पांच रविवार पड़ रहे हैं। नया साल एक जनवरी रविवार को आरंभ होगा। इसके बाद 8, 15, 22 एवं 29 जनवरी को रविवार हैं। नए साल में अनेक त्योहार भी रविवार को ही पड़ रहे हैं।
इनका कहना है: नए साल का शुभारंभ रविवार के दिन से होना बहुत शुभ रहेगा। सूर्य सबसे प्रभावी और प्रत्यक्ष नजर आने वाले देवता हैं। उनकी कृपा से सुख-समृद्धि के द्वार नए साल में खुलेंगे।  -भैरवरतन बोहरा ज्योतिषाचार्य, 
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अंक ज्योतिष की दृष्टि से इस वर्ष आप पर शनि देव शासन करेंगे। अपनी नौकरी व बिज़नेस को लेकर आप काफी सीरियस रहेंगे। आपका प्लानिंग करके काम करना नौकरी में अचानक तरक़्क़ी दे सकता है। जोश व उत्साह से आप भरपूर रहेंगे। नौकरी में अपने टैलेंट के चलते इस दौरान आप विरोधियों की ईंट-से-ईंट बजा सकते हैं। स्टील, लोहा, मशीनरी, लेदर, प्रॉपर्टी, ऑयल व जूतों से जुड़ा बिज़नेस अगर कर रहे हैं तो सफलता मिलने की पूर्ण सम्भावना है। बिज़नेस में ईमानदारी बरतें व छल-कपट से दूर रहें। अगर आप रिसर्च, साइंस, जियोग्राफ़ी से जुड़े स्टूडेंट हैं तो ज़बरदस्त सफलता आपका इंतज़ार कर रही है। आर्कियोलॉजी से जुड़े लोगों को भी मन चाहा परिणाम मिल सकता है। इस साल आपकी आध्यात्मिक क्रियाशीलता बढ़ेगी। इससे जुड़ी कोई ट्रिप भी संभव है। जीवनसाथी व बच्चों के साथ किसी मल्टीप्लेक्स में मनपसंद मूवीज़ देखने का मौक़ा मिलता रहेगा। बच्चों के साथ किसी ऐतिहासिक म्यूज़ियम्स की यात्राएँ भी संभव हैं। लव लाइफ़ अगर बे-जान हुई पड़ी है तो किसी रेस्टोरेंट में अपने प्रेमी से आपका सामना हो सकता है। पुराने प्रेमी पैसों का इंतज़ाम करके रखें क्योंकि गर्लफ्रेंड की शॉपिंग आप पर भारी पड़ सकती है; भले ही खाएँ-पीएँ कुछ नहीं मगर गिलास पूरे बारह आने का ही टूटेगा। हेल्थ का थोड़ा ख़्याल रखें। बाहर पिज़्ज़ा, बर्गर खाने की आदत पर लगाम लगाएँ। अगर जिम जाने का टाइम नहीं है तो घर पर ही साइकिल मंगा लें या फिर योग का सहारा लेना बेहतर होगा। 16 जुलाई से 16 अगस्त तक का समय यादगार साबित हो सकता है।
मूलांक 7 के लिए उपाय
आपके लिए गुरुवार व शनिवार शुभ हैं। अगर इन वारों को 7, 16, 25 तारीख़ें पड़ जाएँ तो समझिए आपकी निकल पड़ी।
आपके लिए नीला, क्रीम, पीला, हल्का हरा व गुलाबी रंग शुभ है। इन रंगों के कपड़ों को ज़्यादा पहनें।
पॉकेट में नीला, पीला या क्रीम कलर का रुमाल हमेशा रखें।
शनि देव की रोज़ाना पूजा करें।


आचार्य रणजीत स्वामी 
मंदिर श्री गिरधारी जी 
किरोड़ी तीर्थ स्थल 
जिला झुंझुनू ( राजस्थान )
अभी हरिद्वार में है 
फ़ोन।  -9412326907
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मूलांक छः का फलादेश
इस साल आप पर नेपच्यून ग्रह का दबदबा रहेगा। 2017 का यह समय आपके लिए अच्छा है। आप अपनी नौकरी व बिज़नेस मीटिंग्स के चलते काफ़ी व्यस्त रहने वाले हैं। कोई नया बिज़नेस शुरू करने की प्लानिंग भी आप करने वाले हैं, जिससे आप अच्छा-ख़ासा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। किसी बड़े प्रोजेक्ट को समय से पूरा करने के कारण आप अपने बॉस की वाहवाही लूटेंगे। नौकरी में आपका अनुशासन देखकर आपके विरोधी भी आपकी तारीफ़ करने पर मजबूर हो जायेंगे। अपने बॉस के साथ आप बड़ी-बड़ी बिज़नेस मीटिंग्स अटेंड करेंगे। पढ़ाई को लेकर आप काफ़ी संजीदा रहेंगे व अपने दोस्तों के साथ भी ख़ूब आउटिंग करेंगे। पिछले साल जिस इंजीनियरिंग कॉलेज में आपका दाख़िला होते-होते रह गया था, इस साल उसी कॉलेज में आपका एडमिशन होने की सम्भावना है। अपने जीवनसाथी व बच्चों के साथ आप कुछ रोमांचक जगहों पर घूमेंगे। बच्चों के साथ वॉटर व एम्यूज़मेंट पार्क का आनंद उठाना आपको सुखद अनुभव व मानसिक शांति दे सकता है। फ़ेसबुक व व्हाट्सएप पर अपने जिस ख़ास दोस्त से आजकल आप बात कर रहे हैं, मुमकिन है कि वह आपको चाहने लगा हो। इसलिए प्यार के मामले में परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि कुआँ ख़ुद प्यासे के पास चलकर आने वाला है। अंक ज्योतिष 2017 के मुताबिक़ इस दौरान हेल्थ बढ़िया रहेगी। अपनी दिनचर्या से समय निकालकर थोड़ा वर्क-आउट भी करिए क्योंकि आपका बढ़ा हुआ पेट आपकी आकर्षक व्यक्तित्व को सूट नहीं करेगा। 13 मई से 14 जून तक का समय आपके लिए कुछ अच्छे सरप्राइज़ ला सकता है।
मूलांक 6 के लिए उपाय
आपके लिए सफ़ेद व नीला रंग अनुकूल है। इसलिए इन रंगों के कपड़ों को ज़्यादा पहनें।
जेब में सफ़ेद रुमाल रखें।
आपके लिए बुधवार, शुक्रवार व शनिवार शुभ हैं, अगर इन वारों में 6, 15 व 24 तारीख़ें पड़ जाएँ तो लाभदायक रहेंगी।
शुक्रवार का व्रत रखना आपके लिए फ़ायदेमंद है।

आचार्य रणजीत स्वामी 
मंदिर श्री गिरधारी जी 
किरोड़ी तीर्थ स्थल 
जिला झुंझुनू ( राजस्थान )
अभी हरिद्वार में है 
फ़ोन।  -9412326907
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मूलांक चार का फलादेश
इस अवधि में आपके ऊपर बुध ग्रह की कृपा रहेगी। आपके दिमाग़ में नए-नए आइडिया आने वाले हैं, जिनसे आप कुछ अलग करके दिखायेंगे। इस साल अपनी क्रिएटिविटी से आप काफ़ी सफलता प्राप्त करेंगे। नौकरी व बिज़नेस में आप कुछ हटकर करने वाले हैं जिससे आपके विरोधियों को भी जलन होगी। आपके ऊपर अपने बॉस की कृपा बनी रहेगी। अंक विज्ञान 2017 कहता है कि आप अपनी बातों के जादू से अपने सहकर्मियों को इम्प्रेस कर देंगे जिससे कई नए लोग भी आपके मुरीद बनेंगे। अगर आप सेल्स, एकाउंट्स, ऑडिट व कम्युनिकेशन से जुड़ा बिज़नेस या नौकरी कर रहे हैं तो दोनों हाथों में लड्डू लेने के लिए तैयार हो जाइए। आप कोई नया बिज़नेस भी शुरू कर सकते हैं जिसमें सफलता मिलेगी। इस साल पढ़ाई में आपका ख़ूब मन लगेगा। मनचाहे विषय मिल सकते हैं व कॉलेज में पढ़ने का मौक़ा मिलेगा। मास कम्युनिकेशन, जर्नलिज़्म से जुड़े छात्र सफलता के झंडे गाड़ सकेंगे। आपकी पारिवारिक ज़िंदगी मज़ेदार चलने वाली है। अपने परिवार को आप पूरा समय दे सकेंगे और उनके साथ सुकून के कुछ पल बिता सकेंगे। आपकी कोई संतान इस साल रिकॉर्ड-तोड़ सफलता प्राप्त कर सकती है। अगर अपनी पर्सनल लाइफ से बोर हो चुके हैं तो चिंता न करें, जल्दी ही किसी अनजान व्यक्ति की घुसपैठ आपकी ज़िंदगी में प्यार के रंग भरने वाली है। इन प्यार के रंगों से आप अपने को सराबोर पायेंगे और लाइफ़ काफ़ी हसीन लगने लगेगी। इस साल आपके दोस्तों की गिनती बढ़ेगी और आप उनके साथ ख़ूब हैंगआउट मारेंगे। इस दौरान आप सेहत को लेकर काफ़ी सचेत रहेंगे व अपनी फ़िटनेस का पूरा ध्यान रखेंगे। साइकिलिंग व मैडिटेशन करना आपकी सेहत में चार चांद लगाएगा। 17 अगस्त से 16 सितम्बर तक का समय जीवन में ख़ुशियों की बहार ला सकता है।
मूलांक 4 के लिए उपाय
आपके लिए बुधवार और शनिवार फ़ायदेमंद रहेंगे। अगर इन वारों में 4, 13, 22 व 31 तारीख़ें पड़ जाएँ तो सफलता निश्चित जानिए।
आपके लिए काला व नीला रंग विशेष शुभ है इसलिए इन रंगों के कपड़ों का ज़्यादा उपयोग करें।
जेब में भूरा, काला या नीला रुमाल रखें।


आचार्य रणजीत स्वामी 
मंदिर श्री गिरधारी जी 
किरोड़ी तीर्थ स्थल 
जिला झुंझुनू ( राजस्थान )
अभी हरिद्वार में है 
फ़ोन।  -9412326907
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मूलांक तीन का फलादेश
यह साल आपके लिए सामान्य रहेगा और आप यूरेनस ग्रह की शरण में रहेंगे। आपके साथ कुछ रहस्यमयी व आकस्मिक घटनाएँ घट सकती हैं। जीवन में अचानक उतार-चढ़ाव आने की सम्भावना है। बिज़नेस करने वाले बंधुओं को काम-धंधे में बड़ी इन्वेस्टमेंट करने से पहले सोच लेना चाहिए। अपने बॉस या ऊँचे अधिकारियों से उलझना आपके लिए घाटे का सौदा साबित होगा। अपने भेद किसी को न बताएँ; कोई घर का भेदी आपकी लंका को ढहा सकता है। इसलिए कार्य स्थल पर तालमेल बना कर चलें। अगर आप नौकरी बदलने की सोच रहे हैं तो 15 दिसंबर से 13 जनवरी का टाइम आपके लिए बेहतर रहेगा। बिज़नेस में आपको साधारण लाभ मिलता रहेगा। पढ़ाई की बजाय मौज-मस्ती में आपका ध्यान ज़्यादा रहने की सम्भावना है। अंक विज्ञान के मुताबिक़ जो लोग स्टडीज़ के लिए विदेश जाने की सोच रहे हैं, उन्हें इस साल के अंत में मौक़ा मिल सकता है। अपने जीवनसाथी के साथ बेकार की बहसबाज़ी से बचना ही आपके लिए बेहतर है वरना दाँत खट्टे होने की पूरी-पूरी सम्भावना है। प्रेमी-जोड़ों को गुपचुप प्यार करने के मौक़े मिलते रहेंगे। अपने पार्टनर से कोई बेहतरीन गिफ़्ट मिलेगा। इस साल स्वास्थ्य वैसे तो ठीक रहेगा, मगर पिज़्ज़ा-बर्गर से बचें वरना पेट की समस्याएँ बिना निमंत्रण के आ धमकेंगी। सुबह की ब्रिस्क वॉक और एरोबिक्स करना आपको फ़िट रखेगा। 14 मार्च से 12 अप्रैल तक का समय आपके लिए सुनहरा अवसर लेकर आएगा।
मूलांक 3 के लिए उपाय
आपके लिए गुरुवार, सोमवार और मंगलवार काफ़ी अनुकूल रहेंगे। अगर गुरुवार को 3, 12, 21 व 30 तारीख़ें पड़ जाएँ तो समझ लीजिए आपकी निकल पड़ी।
आपके लिए पीला, सफ़ेद व लाल रंग शुभ है। इन रंगों के कपड़ों को ज़्यादा-से-ज़्यादा पहनें।
जेब में पीला रुमाल हमेशा रखें।
गुरुवार का व्रत रखें।

आचार्य रणजीत स्वामी 
मंदिर श्री गिरधारी जी 
किरोड़ी तीर्थ स्थल 
जिला झुंझुनू ( राजस्थान )
अभी हरिद्वार में है 
फ़ोन।  -9412326907
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आचार्य अभिमन्यु पाराशर 
शुभ कार्यो में विशेष रुप से त्याज्य
समय के दो पहलू है. पहले प्रकार का समय व्यक्ति को ठीक समय पर काम करने के लिये प्रेरित करता है. तो दूसरा समय उस काम को किस समय करना चाहिए इसका ज्ञान कराता है. पहला समय मार्गदर्शक की तरह काम करता है. जबकि दूसरा पल-पल का ध्यान रखते हुये कभी चन्द्र की दशाओं का तो कभी राहु काल की जानकारी देता है.
राहु-काल का महत्व :
राहु-काल व्यक्ति को सावधान करता है. कि यह समय अच्छा नहीं है इस समय में किये गये कामों के निष्फल होने की संभावना है. इसलिये, इस समय में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाना चाहिए. कुछ लोगों का तो यहां तक मानना है की इससे किये गये काम में अनिष्ट होने की संभावना रहती है.
दक्षिण भारत में प्रचलित:
राहु काल का विशेष प्रावधान दक्षिण भारत में है. यह सप्ताह के सातों दिन निश्चित समय पर लगभग डेढ़ घण्टे तक रहता है. इसे अशुभ समय के रुप मे देखा जाता है. इसी कारण राहु काल की अवधि में शुभ कर्मो को  यथा संभव टालने की सलाह दी जाती है.
राहु काल अलग- अलग स्थानों के लिये अलग-2 होता है. इसका कारण यह है की सूर्य के उदय होने का समय विभिन्न स्थानों के अनुसार अलग होता है. इस सूर्य के उदय के समय व अस्त के समय के काल को निश्चित आठ भागों में बांटने से ज्ञात किया जाता है.
दिन के आठ भाग :
सप्ताह के पहले दिन के पहले भाग में कोई राहु काल नहीं होता है. यह सोमवार को दूसरे भाग में, शनि को तीसरे, शुक्र को चौथे, बुध को पांचवे, गुरुवार को छठे, मंगल को सांतवे तथा रविवार को आंठवे भाग में होता है. यह प्रत्येक सप्ताह के लिये स्थिर है. राहु काल को राहु-कालम् नाम से भी जाना जाता है.
सामान्य रुप से इसमें सूर्य के उदय के समय को प्रात: 06:00 बजे का मान कर अस्त का समय भी सायं काल 06:00 बजे का माना जाता है. 12 घंटों को बराबर आठ भागों में बांटा जाता है. प्रत्येक भाग डेढ घण्टे का होता है. वास्तव में सूर्य के उदय के समय में प्रतिदिन कुछ परिवर्तन होता रहता है.
एक दम सही भाग निकालने के लिये सूर्य के उदय व अस्त के समय को पंचाग से देख आठ भागों में बांट कर समय निकाला जाता है. इससे समय निर्धारण में ग़लती होने की संभावना नहीं के बराबर रहती है.
*संक्षेप में यह इस प्रकार है*:-
1. सोमवार : 
सुबह 7:30 बजे से लेकर प्रात: 9.00 बजे तक का समय इसके अन्तर्गत आता है.

2. मंगलवार : 
राहु काल दोपहर 3:00 बजे से लेकर दोपहर बाद 04:30 बजे तक होता है.

3. बुधवार: 
राहु काल दोपहर 12:00 बजे से लेकर 01:30 बजे दोपहर तक होता है.

4. गुरुवार : 
राहु काल दोपहर 01:30 बजे से लेकर 03:00 बजे दोपर तक होता है.

5. शुक्रवार : 
राहु काल प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक का होता है.

6. शनिवार: 
राहु काल प्रात: 09:00 से 10:30 बजे तक का होता है.

7. रविवार: 
राहु काल सायं काल में 04:30 बजे से 06:00 बजे तक होता है.


राहु काल के समय में किसी नये काम को शुरु नहीं किया जाता है परन्तु जो काम इस समय से पहले शुरु हो चुका है उसे राहु-काल के समय में बीच में नहीं छोडा जाता है. कोई व्यक्ति अगर किसी शुभ काम को इस समय में करता है तो यह माना जाता है की उस व्यक्ति को किये गये काम का शुभ फल नहीं मिलता है. उस व्यक्ति की मनोकामना पूरी नहीं होगी. अशुभ कामों के लिये इस समय का विचार नहीं किया जाता है. उन्हें दिन के किसी भी समय किया जा सकता है.
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चार्य रणजीत स्वामी 
नेऋत्य दिशा का स्वामी राहु है । यह काल पुरुष के दोनों पांवो की एड़ियां एवम् नितम्ब को प्रभावित करता है।
1 नेऋत्य हमेशा भारी रहना चाहिए। परंतु यदि वहा खाली जगह है और जन्म कुंडली में राहु अकेला है तो गृहस्वामी का खजाना खली रहेगा।
2 यदि नेऋत्य में रसोई है तो पति पत्नी में नित्य कलह होगा स्त्री को वायु विकार होगा।
3 यदि नेऋत्य में कुआ है तो गृहस्वामी अकारण भयग्रस्त एवम् मानसिक तनाव से पीड़ित रहेगा।
4 यदि गृहस्वामी का बैडरूम है तो एशो आराम की जिंदगी जियेगा।
5 यदि नेऋत्य में स्नानघर है तो गृहस्वामी को प्रतिकूल परिस्थितियों  एवम् दुखो का सामना करना पड़ेगा।
6  दक्षिण नेऋत्य मार्ग प्रहार से घर की नारिया भयंकर व्यधियों से पीड़ित होती है। 
7 दक्षिण  पश्चिम में खाली स्थान हो उत्तर व् पूरब में न हो  और उत्तर पूर्व को सीमा बनाकर निर्माण करवाया जाये तो आर्थिक हानि होने के साथ पुत्र हानि भी होगी
समाधान
1घर जे पूजा स्थल में राहु यन्त्र स्थापित कर उसकी नियमित पूजा की जावे।
2 मुख्य द्वार पर भूरे या मिश्रित रंग के गणपति को प्रतिष्ठित करे।
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आचार्य रणजीत स्वामी 
दक्षिणी दिशा काल पुरूष का बाया सीना, किडनी, बाया फेफड़ा आते है। एवं कुण्डली का दशम घर है। कन्या, कर्कऔर मकर राशि वालो को दक्षिण मुखी भवन बनाना चाहिए।
1 दक्षिणाभिमुखी मकान में सड़क़ से सटा कर मकान बनाना चाहिये। अगर आगे जगह ज्यादा खुल्ली रख दी है तो धन नाश के अलावा महिलाओ की वजह से अस्पतालो में पैसा खर्च होगा।
2  दक्षिणाभिमुखी अगर कुण्डली में काम कर जाये तो अगर कुण्डली दक्षिणाभीमुखी बताती है तो दक्षिणाभिमुखी मकान गृहस्वामी को धन से मालामाल कर देती है।
3 दक्षिण में बच्चो की पढ़ाई का कमरा होगा तो बच्चो की पढ़ाई में व्यवधान होगा।
4 अगर दक्षिण दिशा का फर्श नीचा होगा तो घर की मालकीन बीमार रहेगी।
5 दक्षिण में किसी भी प्रकार का खड्डा, नीचा स्थान, सेफ्टिक टेंक ज्यादा खुल्ला स्थान होने पर महिलाओ को असहाय रोग रहेगा।
6 दक्षिणाभिमुखी मकान का गेट अगर नैऋत्य की तरफ होगा तो घर में अकाल मृत्यु, आत्महत्या, शत्रुभय, धन्धे में घाटा एवं मालिक का दिमाग अस्थिर, चोरी  का भय रहेगा।
7 अगर दक्षिण दिशा में कहीं भी दरार पड़ गई होतो गृहस्वामी का समय उसी दिन से खराब हो जायेगा और धीरे-धीरे समय में परिवर्तन के साथ गृहस्वामी दुःखी होता जायेगा।
8 दक्षिण भाग सबसे ऊँचा होने पर हर जगह विजय होगी। गृहस्वामी कभी भी कर्जदार नहीं रहेगा।
9 दक्षिण में पूजा स्थल होगी तो वह एक नाम मात्र की पूजा होगी। पूजा का फल कभी भी नहीं मिलेगा।
10 दक्षिण दिशा में ख़ाली जगह ज्यादा होने पर आर्थिक हानि एवम् झगडे होंगे। इस कारण यह स्त्रियों के लिए अशांतिकारक सिद्ध होगा।
समाधान
1. मैंन गेट पर स्वास्तिक के चिन्ह लगाये।
2. दक्षिण दीवार पर बड़े पहाड़ की सिनहरी लगाये।
3. दक्षिण का मैंन गेट सुन्दर बनाये।
4. भैरव या हनुमान की उपासना करें।
5. दक्षिणावृति सूंड वाले गणपति द्वार के अन्दर-बाहर लगावें
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आचार्य रणजीत स्वामी 
1 यदि पूर्वी आग्नेय का विस्तार पूर्वाभिमुखी होतो पुरूष संतति की मृत्यु होकर गृहस्वामी महिला सदस्य को मिलता है।
2 आग्नेय ब्लाॅक के लिए यदि पुरब-आग्नेय का मार्ग प्रहार हो, पुरूष चरित्र भ्रष्ट होंगे और ऐसे ग्रहों पर नारी का शासन होगा।
3 अग्नि कोण का स्वामी श्री गणेश है। यह काल पुरूष की बाई भुजा, घुटने एवं बाई नेत्र को प्रभावित करते है। अग्नि कोण में कोई दोष होतो गृहस्वामी की बाई भुजा एवं घुटने सम्बधित परेशानिया हो सकती है।
.4 अग्नि कोण में बाथरूम होने पर पत्नी चंचल होगी परन्तु सास बहू में कभी भी नहीं पटेगी।
5 मकान की लम्बाई से चैड़ाई दो गुना से अधिक होने या रेल के डिब्बे की तरह मकान होगा तो उसमें गृहणी को कभी सुख चेन नहीं मिलेगा।
6 बाथरूम का दरवाजा एवं रसोई का दरवाजा आमने सामने होने पर कई समस्या उत्पन्न होती है।
7 रसोई हमेशा अग्नि कोण में ही बनाना चाहिये। इससे घर की सारी बुराइयाँ जल जाती है। खाने में स्वादिष्टता रहेगी। घर के सभी सदस्यो में प्रेम भावना बनी रहेगी।

8 रसोई के कोण टुटे हो, दीवार में दरार होतो गृहणी अक्सर बीमार ही रहेगी।
9 गैस चुल्हे के पास पानी का मटका होतो घर में छोटी-छोटी बातो के लिये झगड़े होते रहेंगे।
10 आग्नेय ऊँचा, नैऋत्य, वायव्य एवं ईशान निम्न हो तो बदनामी होगी, घर का काई भी एक सदस्य चरित्रहीन होगा और वंश-क्षय होगा।

11 आग्नेय कोण की फर्श नीची होने पर प्रथम सन्तान का एक्सीडेन्ट एवं मालिक का एक्सीडेन्ट जरूर होगा।
12 आग्नेय कोण में सेफ्टिक टेंक या गड्डा होने पर मालिक का एक्सीडेन्ट एवं अकाल मृत्यु जरूर होगी।
13 घर के पूर्व में आग्नेय भाग में द्वार ने बनाये,अन्यथा चोरी व् अग्नि भय के साथ झगड़े भी होंगे।
14 रसोई घर हमेशा आग्नेय में ही होनी चाहिए।
15 घर के द्वार पर आगे पीछे वास्तुदोष नासक हरे रंग के गणपति को स्थान दे।
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आचार्य रणजीत स्वामी 
1 वास्तु के अनुसार घर का पूर्वी भाग अन्य भागों से नीचा होना चाहिये, जिससे कि सूर्य की गर्मी, ऊर्जा और प्रकाश का पूरे घर को लाभ मिल सके।                      
2 घर के पूर्वी भाग को यथासंभव साफ और खाली रखें। साथ ही पूर्व की बाउंड्री वाल दक्षिण और पश्चिम भाग से नीची होनी चाहिए।

3 यदि घर का पूर्वी भाग ऊंचा हो, तो घर में दरिद्रता आती है तथा संतान अस्वस्थ हो जाती है।
4 पूर्वी दिशा में बने हुए मुख्य द्वार तथा अन्य द्वार भी सिर्फ पूर्वाभिमुखी हो तो शुभ परिणाम मिलते हैं।।                                  
5 पूर्वी दिशा में कुंआ, बोरिंग, सैप्टिक टैंक, अंडर ग्राउंड टैंक, बैसमेंट का निर्माण करवाना चाहिए।
6 पूर्वमुखी घर अच्छे माने जाते है। ऐसे घर में रहने वाले धन-धान्य, प्रगति और ऐश्वर्य पाते है। 
7  पूर्वाभिमुखी भवन में चारदीवारी ऊंचा नहीं होनी चाहिए एवं मुख्य द्वार सड़क से दिखना चाहिए। 
8 दिशा दोष निवारणार्थ सूर्य यंत्र की स्थापना करे।
9 सूर्य को अर्ध्य दे एवम् सूर्य उपासना करे।
10 पूर्वी दरवाजे पर वास्तु मंगलकारी तोरण लगाये।
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आचार्य रणजीत स्वामी 
उत्तर रामायण के अनुसार अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण होने के पश्चात भगवान श्रीराम ने बड़ी सभा का आयोजन कर सभी देवताओं, ऋषि-मुनियों, किन्नरों, यक्षों व राजाओं आदि को उसमें आमंत्रित किया। सभा में आए नारद मुनि के भड़काने पर एक राजन ने भरी सभा में ऋषि विश्वामित्र को छोड़कर सभी को प्रणाम किया। ऋषि विश्वामित्र गुस्से से भर उठे और उन्होंने भगवान श्रीराम से कहा कि अगर सूर्यास्त से पूर्व श्रीराम ने उस राजा को मृत्यु दंड नहीं दिया तो वो राम को श्राप दे देंगे। 
इस पर श्रीराम ने उस राजा को सूर्यास्त से पूर्व मारने का प्रण ले लिया। श्रीराम के प्रण की खबर पाते ही राजा भागा-भागा हनुमान जी की माता अंजनी की शरण में गया तथा बिना पूरी बात बताए उनसे प्राण रक्षा का वचन मांग लिया। तब माता अंजनी ने हनुमान जी को राजन की प्राण रक्षा का आदेश दिया। हनुमान जी ने श्रीराम की शपथ लेकर कहा कि कोई भी राजन का बाल भी बांका नहीं कर पाएगा परंतु जब राजन ने बताया कि भगवान श्रीराम ने ही उसका वध करने का प्रण किया है तो हनुमान जी धर्म संकट में पड़ गए कि राजन के प्राण कैसे बचाएं और माता का दिया वचन कैसे पूरा करें तथा भगवान श्रीराम को श्राप से कैसे बचाएं।
धर्म संकट में फंसे हनुमानजी को एक योजना सूझी। हनुमानजी ने राजन से सरयू नदी के तट पर जाकर राम नाम जपने के लिए कहा। हनुमान जी खुद सूक्ष्म रूप में राजन के पीछे छिप गए। जब राजन को खोजते हुए श्रीराम सरयू तट पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि राजन राम-राम जप रहा है। 
प्रभु श्रीराम ने सोचा, "ये तो भक्त है, मैं भक्त के प्राण कैसे ले लूं"। 
श्री राम ने राज भवन लौटकर ऋषि विश्वामित्र से अपनी दुविधा कही। विश्वामित्र अपनी बात पर अडिग रहे और जिस पर श्रीराम को फिर से राजन के प्राण लेने हेतु सरयू तट पर लौटना पड़ा। अब श्रीराम के समक्ष भी धर्मसंकट खड़ा हो गया कि कैसे वो राम नाम जप रहे अपने ही भक्त का वध करें। राम सोच रहे थे कि हनुमानजी को उनके साथ होना चाहिए था परंतु हनुमानजी तो अपने ही आराध्य के विरुद्ध सूक्ष्म रूप से एक धर्मयुद्ध का संचालन कर रहे थे। हनुमानजी को यह ज्ञात था कि राम नाम जपते हु‌ए राजन को कोई भी नहीं मार सकता, खुद मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी नहीं।
श्रीराम ने सरयू तट से लौटकर राजन को मारने हेतु जब शक्ति बाण निकाला तब हनुमानजी के कहने पर राजन राम-राम जपने लगा। राम जानते थे राम-नाम जपने वाले पर शक्तिबाण असर नहीं करता। वो असहाय होकर राजभवन लौट गए। विश्वामित्र उन्हें लौटा देखकर श्राप देने को उतारू हो गए और राम को फिर सरयू तट पर जाना पड़ा। 
इस बार राजा हनुमान जी के इशारे पर जय जय सियाराम जय जय हनुमान गा रहा था। प्रभु श्री राम ने सोचा कि मेरे नाम के साथ-साथ ये राजन शक्ति और भक्ति की जय बोल रहा है। ऐसे में कोई अस्त्र-शस्त्र इसे मार नहीं सकता। इस संकट को देखकर श्रीराम मूर्छित हो गए। तब ऋषि व‌शिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र को सलाह दी कि राम को इस तरह संकट में न डालें। उन्होंने कहा कि श्रीराम चाह कर भी राम नाम जपने वाले को नहीं मार सकते क्योंकि जो बल राम के नाम में है और खुद राम में नहीं है। संकट बढ़ता देखकर ऋषि विश्वामित्र ने राम को संभाला और अपने वचन से मुक्त कर दिया। मामला संभलते देखकर राजा के पीछे छिपे हनुमान वापस अपने रूप में आ गए और श्रीराम के चरणों मे आ गिरे। 
तब प्रभु श्रीराम ने कहा कि हनुमानजी ने इस प्रसंग से सिद्ध कर दिया है कि भक्ति की शक्ति सैदेव आराध्य की ताकत बनती है तथा सच्चा भक्त सदैव भगवान से भी बड़ा रहता है। इस प्रकार हनुमानजी ने राम नाम के सहारे श्री राम को भी हरा दिया। धन्य है राम नाम और धन्य धन्य है प्रभु श्री राम के भक्त हनुमान।
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आचार्य रणजीत स्वामी  
आज के भौतिक युग में एक फैशन सा हो गया है कि लोग उन्हे जाने, पहचाने, मान दे, सम्मान दें अर्थात् हर व्यक्ति चाहता है एक यथोचित प्रसिद्धि।
लोगों मे योग्यता भी होती है, अवसर भी मिलते हैं, प्रयास भी किए जाते हैं परन्तु सबके बावजू़द सफलता नही मिल पाती या कम मिलती है इस कारण कभी-कभी लोग निराश भी हो जाते हैं, कि पूरी मेहनत के बाद भी यथोचित उपलब्धि क्यों नही मिल पा रही है, इन अड़चनो को और मार्ग की बाधाओं को सरल बनाता है घर में वास्तु के अनुसार थोड़ा-बहुत हेर-फेर ।
यदि कोई व्यक्ति भारतीय वास्तुशास्त्र के नीचे लिखे नियमों का पालन अपने निवास स्थान, व्यवसाय स्थल या आफीस मे करे तो वह अपने जीवन मे यथोचित प्रसिद्धि पा सकता है—-
1 निवास एवं व्यवसाय स्थल की उत्तर, पूर्व एवं ईशान दिशा का दबी, कटी एवं गोल होना काफी अशुभ होता है जबकि इसका बड़ा होना बहुत शुभ होता है। अतः यदि दबी, कटी या गोल हो तो इन्हे ठीक करवाकर समकोण करना चाहिये।

2 भवन के उत्तर, पूर्व एवं ईशान में भुमिगत पानी की टंकी, कुआ या बोर होना बहुत शुभ होता है। इससे आर्थिक सम्पन्नता के साथ-साथ प्रसिद्धि भी मिलती है।
उपरोक्त दिशाओं के अलावा अन्य किसी भी दिशा में होना अशुभ होता है। भवन के मध्य मे तो किसी भी प्रकार का गढ्ढा, कुआ, बोरींग इत्यादि होने से गृहस्वामी पर भयंकर आर्थिक संकट एवं अपयश मिलता है। अतः इसको जितना जल्दी हो सके भर देना चाहिये।

3 यदि आप ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में बेडरूम बनाएंगे तो इस कमरे में सोने वाला कम से कम आठ-दस घंटे तो यहां बिताएगा ही।
4 किसी भी व्यक्ति के लिए ऊर्जा से परिपूर्ण इस क्षेत्र में इतने लंबे समय तक रहने का मतलब है खुद का नुकसान। क्योंकि इस जगह पर किसी को भी इतनी देर नहीं रहना चाहिए।

5 यदि आपने यह कमरा अपने बेटे को दिया है तो संभव है उस पर मोटापा हावी हो जाए। जिसके परिणामस्वरूप वह सुस्त और ढीला हो जाएगा। इससे उसमें हीन भावना आ जाएगी।।   
6 अगर बेटी को यह कमरा दिया गया है तो वह चिड़चिड़े स्वभाव की और झगड़ालू हो जाएगी। इतना ही नहीं, उसे कम उम्र में ही स्त्री रोगों से जुड़ी समस्याएं भी झेलना पड़ सकती हैं।

7 किसी दंपत्ति का बेडरूम बनाने के लिए ईशान कोण अशुभ फलदायी जगह है। किसी नव विवाहित दंपत्ति को तो भूलकर भी ईशान कोण में अपना बेडरूम नहीं बनाना चाहिए।
8 नवविवाहिता अगर ईशान कोण पर बने बेडरूम में रहती है तो यह निश्चित है कि या तो वह गर्भधारण ही नहीं कर पाएगी या उसे बार-बार गर्भपात का शिकार होना पड़ेगा।
9 ईशान कोण पर बने बेडरूम में सोने वाले दंपतियों को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और आध्यात्मिक तरह की कठिनाइयां झेलना पड़ सकती हैं।।             
10 आवासीय भवन में ड्रांइग रूम के लिए पूर्व , उत्तर एंव ईशान कोण का क्षेत्र उचित है। ईशान कोण में अधिक से अधिक स्थान खाली रखें। अन्यथा पूर्व और उत्तर दिशा के क्षेत्र को खाली या हल्के रखें। उत्तर एंव पूर्व दिशा की सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि के लिए इन दिशाओं में बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ अथवा स्लाइडिंग दरवाजों का प्रावधान रखें।
11 निवास एवं व्यवसाय स्थल का उत्तर, ईशान व पूर्व का भाग दक्षिण, नैऋत्य व पश्चिम के मुकाबले नीचा होना चाहिये।
12 निवास एवं व्यवसाय स्थल के मुख्य द्वार के सामने द्वार वैध नही होना चाहिये जैसे बिजली का खम्बा, स्तम्भ, वृक्ष, खुली नाली या कोई सामने के भवन का धारदार कोना इत्यादि।
13 व्यक्ति को अफीस या घर मे कही पर भी लटकती बीम या दुछत्ती के नीचे बैठना या लेटना नहीं चाहिये।
14 ईशान कोण मे टायलेट होने से पैसा बर्बाद होता है स्वास्थ्य खराब होता है और अपयश मिलता है।
15 ईशान क्षेत्र में कभी भी बच्चों का बेडरूम न बनाएं। अगर आप ने यहां पूजा घर नहीं बनाया है तो यहां बच्चों के लिए स्टडी रूम बना सकत
16 अगर ईशान ऊँचा हो तो धन हानि,संतान हानि एवम् अनेक परेशानिया हो सकती है।
17 यदि ईशान में रसोई हो तो गृह कलह व् धन हानि होती है
18 पूर्वी दिशा का क्षेत्रफल घट कर पूर्वी  सीमा  पर भवन निर्माण हो तो गृहस्वामी की तीसरी पीढ़ी में वंश ही खत्म हो जाता है।
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कुल-कुटुम्ब सौहार्द और संगठन का परिणाम है और इसमें उत्तरोत्तर विस्तार एवं सुदृढ़ता के साथ समृद्धि पाना इस बात का द्योतक है कि पूर्वजों के साथ वर्तमान पीढ़ी का भी पुण्य प्रभाव बढ़ रहा है और पुरानी पीढ़ी के अनुपात में पुण्य का दौर निरन्तर बना हुआ है। 
हालांकि ऎसा बिरले परिवारों में ही हो पाता है और वे भी वे ही परिवार हुआ करते हैं जो कि वंश परंपरा से आनुवंशिक रूप से पवित्रता का वरण करने वाले हों, कुल परंपरा के अनुरूप जिनका आचरण हो तथा कौटुम्बिक पुरातन सांस्कृतिक, सामाजिक और पारवारिक परंपराओं का विशुद्ध रूप से पालन करने वाले हों अन्यथा इतना एक्य और संगठन होना कभी संभव नहीं है यदि पुण्यों का सम्बल न हो।
देखा यह गया है कि बड़े-बड़े घराने और महान-महान लोगों के परिवार बिखर जाते हैं और पारिवारिक परंपराएं ध्वस्त हो जाती हैं, कइयों की कुल परंपरा को ग्रहण लग जाता है और स्थितियां यहां तक भी आ जाती हैं कि इनका नाम लेवा कोई नहीं बचता। जो कुछ जमा पूंजी और जमीनादि होते हैं उन पर दूसरों का कब्जा हो जाता है और मूल परिवार की बजाय दूसरे लोग मौज उड़ाते रहते हैं। 
यह स्थिति तब आती है जबकि पूर्वजों का संचित पुण्य बरकरार रखते हुए उनके वंशज स्व पराक्रम और पुरुषार्थ से इसमें अभिवृद्धि करते रहें। वे ऎसा न कर पाएं तो एक न एक दिन पूर्वजों द्वारा संचित पुण्य समाप्त हो ही जाता है और इसके बाद वंश-परिवार को एक सूत्र में बांधे रखने वाले सारे ताने-बाने क्षीण होकर टूटने लगते हैं और इस कदर टूटते चले जाते हैं कि इसकी रोक तक संभव नहीं हो पाती। 
यही वह समय होता है कि जब पिता-पुत्र, पिता-माता, पति-पत्नी, भाई-भाई, भाई-बहनों और तमाम प्रकार के रिश्तों में दरार पड़ना शुरू हो जाती है। इसका आरंभिक चरण किसी न किसी बात को लेकर वाद-विवाद से शुरू होता है और संवादहीनता की सीढ़ियां पाकर आक्रोश, मनभेद और प्रतिशोध का पारा सातवें आसमान की ओर ऊँचा उठना शुरू करने लगता है। 
एक बार जब कहीं संवाद खत्म हो गया तो इसका सीधा सा अर्थ है कि सजातीय विकर्षण का भयावह और अनिष्टकारी दौर आरंभ हो ही गया। इसका अंत कोर्ट-कचहरी में चक्कर काटने से शुरू होता है और जीवन भर की अतृप्ति, प्रतिशोध का जखीरा और एक-दूसरे को नुकसान पहुंचा डालने की चरमावस्था को पार करता हुआ अन्ततः असमय गंभीर बीमारियों, तनावों और विषादों के साथ काल के आवाहन की पूर्णता के साथ ही समाप्त हो पाता है। 
अक्सर इंसान को क्रोध, प्रतिशोध तथा दूसरों का सर्वोच्च अपमान एवं अहित कर डालने की आदत बन जाती है और जो एक बार नकारात्मक और विध्वंसक मनोवृत्ति को लेकर रण के मैदान में नंगा और बदहवास होकर आ जाता है उसका इंसान के रूप में लौटना संभव है ही नहीं। या तो किसी न किसी बहाने ऊपर चला जाएगा या फिर मतिभ्रम की अवस्था पाकर ऎसा हो जाएगा कि वह न खुद के किसी काम का रहेगा और न ही दूसरों के।
बहुत सारे लोग हैं जो इन्हीं अवस्थाओं में जी रहे हैं और जिनके लिए जिन्दगी अभिशाप ही हो गई है। बहुतों के लिए जिन्दगी का काफी कुछ हिस्सा अनर्गल अलाप, प्रलाप और विलाप में बीतता है, बहुत से आधे या पूरे पागलों की तरह भटक रहे हैं, काफी सारे हैं जो फर्जी शिकायतों और नुकसान पहुंचाने के दूसरे सारे रास्तों को अपना कर इंसानियत भूल चुके हैं। 
खूब सारे लोग अपने आपको परम विद्वान, ज्ञानी, तत्वज्ञानी और सर्वश्रेष्ठ मानने का भ्रम इस कदर पाले हुए हैं कि इन्हें दुनिया भर में अपने सिवा और कोई अच्छा और सच्चा नहीं दिखता, इसलिए हर किसी के खिलाफ बोलने लगते हैं, निन्दा करते रहते हैं और जो अपने सम्पर्क में आता है उसके सामने किसी न किसी का नाम लेकर रोना रोते रहते हैंं।
इस किस्म में वे लोग अधिक आते हैं जिनके लिए जीवन का कोई सा सुख प्राप्य नहीं है, एक सामान्य इंसान की जिन्दगी से भी महरूम हैं और नैसर्गिक अभावों के कारण विक्षिप्त अवस्था में पहुंच चुके हैं।  इस कारण से इन लोगों का अपने आपको महान और श्रेष्ठ साबित करना एक बीमारी  और अभाव ग्रस्तों की पीड़ा की अभिव्यक्ति के रूप में ही देखा जान चाहिए। 
फिर जब बात परिवार की हो तब यदि किसी कारण से कोई मतभेद सामने आने लगें तब इन्हें हल्के में नहीं लेकर सभी परिवारजनों और कुटुम्बियों को मिलकर गंभीरता से इस बात का चिन्तन करना चाहिए कि जो स्थितियां सामने आ रही हैं उसके लिए हमारे पूर्वज नहीं बल्कि हम स्वयं दोषी हैं क्योंकि हम उनके पुण्यों को सुरक्षित नहीं रख पाए, इनकी बराबरी तक नहीं कर पाए और इस कारण से यह सब हो रहा है। 
पुण्यों के क्षय होने के दौर को यदि आरंभिक चरण में ही नहीं रोका गया तो पुण्यक्षीणता का यह प्रवाह और अधिक तेजी पा लेता है और ऎसा यदि हो गया तो परिवार में बिखराव और प्रतिष्ठा हानि को कोई नहीं रोक पाता। 
पुरखों के मुकाबले अधिक कुछ न कर पाएं तो कम से कम इतना जरूर कर लें कि पूर्वजों के पुण्य, कीर्ति और साख को कम न होने दें, यही काफी है पारिवारिक एवं सामाजिक सौहार्द और संगठन के साथ आगे बढ़ने के लिए। संघे शक्ति कलौयुगे .....।

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