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एस्ट्रो धर्म 

नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा के समान ही अष्‍ट सिद्धि नौ निधि के दाता हनुमान जी का पूजन भी विशेष माना गया है। श्रीराम के समान ही हनुमान के देवी के साथ होने की भी कई कथाएं हैं। यहां वे देवी मां के रक्षक के तौर पर मौजूद दिखते हैं।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार नवरात्रि के समय में हनुमान जी की पूजा आराधना विशेष फल प्रदान करती है। वैसे तो यह भी माना जाता है कि हनुमान जी सिर्फ़ जय सियाराम बोल देने से ही प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन हमारे धर्म ग्रंथों में हनुमान जी की पूजा आराधना की कुछ खास विधियां बतायी गईं हैं।
जिनके द्वारा उन्हें प्रसन्नकर उनसे मनचाहा वरदान प्राप्त करने के अलावा उनके दर्शनों की इच्छा भी पूरी हो सकती है। हनुमान जी को कलयुग का देवता भी माना जाता है। वहीं इनका एक नाम संकटमोचन भी है, इसका कारण यह है कि इन्हें समस्त संकटों को दूर करने वाला माना जाता है। इसके अलावा शास्त्रों में हनुमान जी को शिव का रूद्रावतार माना गया है।
नवरात्रि में ऐसे करें हनुमान जी की पूजा
1. नवरात्रि में हनुमान चालीसा का पाठ रामबाण के समान माना जाता है, मान्यता के अनुसार हर रोज हनुमान चालीसा का पाठ करने से आप हनुमान जी की विशेष कृपा का पात्र बन सकते हैं। यह भी माना जाता है कि ऐसा करने वाले पर किसी प्रकार के जादू टोने का असर नहीं होता है साथ ही उस पर किसी प्रकार की कोई परेशानी भी नहीं आ सकती।
2. इसके अलावा श्री हनुमान जी की कृपा पाने के लिए यह भी माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास की हनुमान चालीसा का उनके भक्त को 108 बार पाठ करना चाहिए। वहीं हनुमान चालीसा का पाठ शुरू करने से पहले रामरक्षा स्त्रोत का पाठ करना आवश्यक माना जाता है। इसके अलावा यदि एक ही बैठक में 108 बार पाठ मुमकिन न हो सके, तो ऐसी स्थिति में आप दूसरी बैठक लगाकर भी इसे पूरा कर सकते हैं।
हनुमान जी : पूजन विधि
हनुमान जी की पूजा के संबंध में ये मान्यता है कि उनकी प्रतिमा पर सिंदूर व तेल चढ़ाया जाता है। उनकी पूजा के समय ये बात खास ध्यान रखने वाली होती है कि उन्हें फूल भी पुरुषवाचक जैसे गैंदा, गुलाब आदि ही चढ़ाए जाएं। रामायण और सुंदरकांड का पाठ हनुमान जी को अति प्रिय है, माना जाता है कि इससे प्रसन्न होकर वह तुरंत आशीर्वाद देते हैं। वहीं प्रसाद के तौर पर हनुमान जी को चना, गुड, केला, अमरूद या लड्डू आदि चढ़ाने का विधान है।
हनुमानजी को लाल वस्तुएं चढ़ाना शुभ माना जाता है। हनुमान जी की आराधना पूर्व दिशा की ओर मुंह करके करनी चाहिए।
बजरंगबली की 'अष्टसिद्धियां', असंभव को भी बना देती हैं संभव...
'अष्‍ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस-वर दीन्‍ह जानकी माता'। गोस्‍वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखी गई हनुमान चालीसा के इस दोहे को आपने ना जाने कितनी ही बार दोहराया होगा लेकिन, हम में से अधिकतर यह नहीं जानते हैं कि आखिर वे यहां किन-किन सिद्धियों की बात कर रहे हैं।
कौन सी हैं वो अष्‍ट सिद्धियां जिनके दाता महाबली हनुमान बताए गए हैं। क्‍या वास्‍तव में इस संसार में ऐसी सिद्धियां भी मौजूद हैं, जिनसे असंभव को संभव बनाया जा सकता है। महाबली हनुमान ना सिर्फ 'अष्‍ट सिद्धियां' प्रदान करते हैं बल्‍कि नौ निधियों के प्रदाता भी हनुमान जी ही हैं। इन आठ प्रकार की सिद्धियों के बल पर इंसान ना सिर्फ भय और बाधाओं पर विजय प्राप्‍त करता है, बल्‍कि कई असंभव से लगने वाले कार्यों को भी बड़ी ही आसानी से पूरा कर सकता है।
ये हैं आठ प्रकार की सिद्धियां
महाबली हनुमान द्वारा उपासकों को प्रदान की जाने वाली आठ प्रकार की सिद्धियां इस प्रकार हैं। (1) अणिमा (2) महिमा (3) गरिमा (4) लघिमा (5) प्राप्‍ति (6) प्राकाम्‍य (7) ईशित्‍व (8) वशित्‍व ।
1. अणिमा
महाबली हनुमान जी द्वारा प्रदान की जाने वाली ये सिद्धि बड़ी ही चमत्‍कारिक है। इस सिद्धि के पूर्ण हो जाने पर इंसान कभी भी अति सूक्ष्‍म रूप धारण कर सकता है। इस सिद्धि का उपयोग स्‍वयं महाकपि ने भी किया था। हनुमान जी ने इस सिद्धि का प्रयोग करते हुए ही राक्षस राज रावण की लंका में प्रवेश किया था। महाकपि ने अणिमा सिद्धि के बल पर ही अति लघु रूप धारण करके पूरी लंका का निरीक्षण किया था। यही नहीं सुरसा नामक राक्षसी के मुंह में बजरंगबली ने इसी सिद्धि के माध्‍यम से प्रवेश किया और बाहर निकल आये।
2. महिमा
बजरंगबली द्वारा प्रदान की जाने वाली यह सिद्धि भी अत्‍यंत चमत्‍कारी है। इस सिद्धि को साध लेने वाला मनुष्‍य अपने शरीर को कई गुना विशाल बना सकता है। ये वही सिद्धि है जिसके प्रयोग से मारुतिनंदन ने सुरसा के मुंह से दुगना शरीर विस्‍तार किया था। महिमा सिद्धि के बल पर ही महाकपि ने अपने शरीर को सौ योजन तक लंबा कर लिया था। और तो और लंका के अशोक वाटिका में उदास बैठी माता सीता को वानर सेना पर विश्‍वास दिलाने के लिए भी बजरंगबली ने इस सिद्धि का प्रयोग किया था। 
3. गरिमा
अष्‍ट सिद्धियों के क्रम में तीसरी सिद्धि है 'गरिमा'। ये वो सिद्धि है जिसके पूर्ण होते ही इसके साधक अपना वजन किसी विशाल पर्वत से भी ज्‍यादा कर सकता है। महाभारत ग्रंथ में उल्‍लेख मिलता है कि अपने बल के घमंड में चूर कुंती पुत्र भीम के गर्व को हनुमान जी ने चूर-चूर कर दिया था। हनुमान जी एक वृद्ध वानर का रूप धारण कर के भीम के रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे।
भीम ने देखा कि एक वानर की पूंछ रास्ते में पड़ी हुई है, तब भीम ने वृद्ध वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ रास्ते से हटा लें। तब वृद्ध वानर ने कहा कि मैं वृद्धावस्था के कारण अपनी पूंछ हटा नहीं सकता, आप स्वयं हटा दीजिए। इसके बाद भीम वानर की पूंछ हटाने लगे, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस प्रकार भीम का घमंड टूट गया।
4. लघिमा
चौथी सिद्धि है 'लघिमा'। इस सिद्धि के पूर्ण हो जाने पर साधक अपना भार मयूर पंख से भी हल्‍का कर सकता है। अष्‍ट सिद्धियों के प्रदाता स्‍वयं हनुमान जी ने भी अशोक वाटिका में किया था, जब वह अशोक के पेड़ की शाखाओं में पत्‍तियों के बीच अपने शरीर को बेहद हल्‍का करते हुए राक्षसियों और रावण की नजर से छिपाए रखा था।
5. प्राप्ति
अष्‍ट सिद्धियों में से पांचवीं सिद्धि है 'प्राप्‍ति'। इसके बल पर साधक भविष्‍य में झांक सकता है और पशु-पक्षियों की भाषा समझ सकता है। सीता माता की तलाश में निकले महाबली हनुमान जी ने इसी सिद्धि को साधते हुए कई जंगली पशु-पक्षियों से माता सीता का पता भी पूछा था।

रक्षा बंधन के पर्व की वैदिक विधि
.वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि

इसके लिए 5 वस्तुओं की आवश्यकता होती है .
1 दूर्वा ;घासद्ध
2 अक्षत ;चावलद्ध
3 केसर
4 चन्दन
5 सरसों के दाने ।

इन 5 वस्तुओं को रेशम के कपड़े में लेकर उसे बांध दें या सिलाई कर देंए फिर  उसे कलावा में पिरो दें, इस प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी ।
इन पांच वस्तुओं का महत्त्व .
1 दूर्वा . जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेज़ी से फैलता है और  हज़ारों की संख्या में उग जाता हैए उसी प्रकार मेरे भाई का वंश और उसमे  सदगुणों का विकास तेज़ी से हो । सदाचारए मन की पवित्रता तीव्रता से बदता  जाए । दूर्वा गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैंए उनके  जीवन में विघ्नों का नाश हो जाए ।
2 अक्षत . हमारी गुरुदेव के प्रति श्रद्धा कभी क्षत.विक्षत ना हो सदा अक्षत रहे ।
3 केसर . केसर की प्रकृति तेज़ होती है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैंए वह  तेजस्वी हो । उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेजए भक्ति का तेज कभी कम  ना हो ।
4 चन्दन . चन्दन की प्रकृति तेज होती है और यह सुगंध देता है । उसी प्रकार  उनके जीवन में शीतलता बनी रहेए कभी मानसिक तनाव ना हो । साथ ही उनके  जीवन में परोपकारए सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे ।
5 सरसों के दाने . सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है अर्थात इससे यह संकेत  मिलता है कि समाज के दुर्गुणों कोए कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें  ।
इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम भगवान .चित्र  पर अर्पित करें । फिर बहनें अपने भाई कोए माता अपने बच्चों कोए दादी अपने  पोते को शुभ संकल्प करके बांधे ।
इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार  बांधते हैं हम पुत्र.पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्ष भर सूखी रहते हैं ।
राखी बाँधते समय बहन यह मंत्र बोले
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलरू
तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल मा चल
शिष्य गुरु को रक्षासूत्र बाँधते समय
ष्अभिबन्धामि ष् के स्थान पर ष्रक्षबन्धामिष् कहे

और चाकलेट ना खिलाकर भारतीय मिठाई या गुड से मुहं मीठा कराएँ।


 प्रभा बिस्सा
  बीकानेर
बाजार में राखी खरीदती महिलाये

रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रक्षाबन्धन  हिन्दुओ का  त्यौहार है । श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी  या सलूनो भी कहते हैं।  रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बन्धियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है। हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है।[क] इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ, तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।"


कैसे बांधते है रक्षासूत्र
रक्षाबन्धन का  अनुष्ठान


प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर लड़कियाँ और महिलाएँ पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक, मिठाई और कुछ पैसे भी होते हैं। लड़के और पुरुष तैयार होकर टीका करवाने के लिये पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। पहले अभीष्ट देवता की पूजा की जाती है, इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर छिड़का जाता है, उसकी आरती उतारी जाती है, दाहिनी कलाई पर राखी बाँधी जाती है और पैसों से न्यौछावर करके उन्हें गरीबों में बाँट दिया जाता है। भारत के अनेक प्रान्तों में भाई के कान के ऊपर भोजली या भुजरियाँ लगाने की प्रथा भी है। भाई बहन को उपहार या धन देता है। इस प्रकार रक्षाबन्धन के अनुष्ठान को पूरा करने के बाद ही भोजन किया जाता है। प्रत्येक पर्व की तरह उपहारों और खाने-पीने के विशेष पकवानों का महत्व रक्षाबन्धन में भी होता है। आमतौर पर दोपहर का भोजन महत्वपूर्ण होता है और रक्षाबन्धन का अनुष्ठान पूरा होने तक बहनों द्वारा व्रत रखने की भी परम्परा है। पुरोहित तथा आचार्य सुबह सुबह यजमानों के घर पहुँचकर उन्हें राखी बाँधते हैं और बदले में धन वस्त्र और भोजन आदि प्राप्त करते हैं। यह पर्व भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फ़िल्में भी इससे अछूते नहीं हैं।


राखी के धागों का संबंध मन की पवित्र भावनाओं से हैं।
 
राखी के इन धागों ने अनेक कुरबानियाँ कराई हैं। चित्तौड़ की राजमाता कर्मवती ने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर अपना भाई बनाया था और वह भी संकट के समय बहन कर्मवती की रक्षा के लिए चित्तौड़ आ पहुँचा था। आजकल तो बहन भाई को राखी बाँध देती है और भाई बहन को कुछ उपहार देकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेता है। लोग इस बात को भूल गए हैं कि राखी के धागों का संबंध मन की पवित्र भावनाओं से हैं।


राजस्थान में  राखी

राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बाँधने का रिवाज़ है। रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुँदना लगा होता है। यह केवल भगवान को ही बाँधी जाती है। चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बाँधी जाती है। जोधपुर में राखी के दिन केवल राखी ही नहीं बाँधी जाती, बल्कि दोपहर में पद्मसर और मिनकानाडी पर गोबर , मिट्टी और भस्मी से स्नान कर शरीर को शुद्ध किया जाता है। इसके बाद धर्म तथा वेदों के प्रवचनकर्त्ता अरुंधती, गणपति, दुर्गा, गोभिला तथा सप्तर्षियों के दर्भ के चट (पूजास्थल) बनाकर उनकी मन्त्रोच्चारण के साथ पूजा की जाती हैं। उनका तर्पण कर पितृॠण चुकाया जाता है। धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद घर आकर हवन किया जाता है, वहीं रेशमी डोरे से राखी बनायी जाती है। राखी को कच्चे दूध से अभिमन्त्रित करते हैं और इसके बाद ही भोजन करने का प्रावधान है।
होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते है। दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं, और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही, पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्योहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। किसानों का ह्रदय ख़ुशी से नाच उठता है। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है। होली के दिन आम्र मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा माहात्म्य है।

भगवान नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध

होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।

मौज मस्ती और खुशियां मनाने की पंजाबी संस्कृति की झलक हर साल तेरह जनवरी को मनाए जाने वाले लोहडी पर्व में पूरे शबाब पर दिखाई देती है। लोहडी का त्योहार पंजाब में ही नहीं बल्कि पडोसी हरियाणा,दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और अन्य उत्तरी राज्यों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। पंजाब में गेहूं की फसल अक्टूबर में बोई जाती है और मार्च में काटी जाती है। लोहडी पर्व तक यह पता चल जाता है कि फसल कैसी होगी इसलिए लोहडी के समय लोग उत्साह से भरे रहते हैं। पंजाब में लोहडी के दिन सरसों का साग, मक्के की रोटी तथा गन्ने के रस और चावल से बनी खीर बनाई जाती है। नृत्य पंजाब की संस्कृति का एक अहम हिस्सा होता है। लोहडी के दिन लोग खूब भांगडा करते हैं और शाम होते ही सूखी लकड़ियां जलाकर नाचते-गाते हैं। यह सिलसिला देर रात तक चलता है। ढोल की थाप पर थिरकते लोग रेवडी,मूंगफली का स्वाद लेते हुए नाचते-गाते हैं। लोहडी को लेकर युवाओं में कुछ अधिक ही उत्साह रहता है। युवक-युवतियां शाम होते ही सजधज कर अग्नि प्रज्ज्वलित करके नाचते-गाते हैं। इस दिन उन्हें नाचते-गाते हैं। उनकी खुशी देखते ही बनती है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी लोहडी बडे उत्साह के साथ मनाई जाती है। दिल्ली में पंजाबी लोगों की अच्छी खासी तादाद है और इस पर्व को राजधानी में भी मौजमस्ती के साथ मनाया जाता है। केवल पंजाबी समुदाय के लोग ही नहीं बल्कि हर समुदाय के लोग इस पर्व को मनाते है और इसका पूरा लुत्फ उठाते है। लोहडी के दिन लकडियां प्रज्ज्वलित करके लोग उसके चारों और नाचते गाते और मूंगफली तथा गजक खाते हुए चक्कर लगाते हैं। लोहडी के दिन कुछ विशेष गीत भी गाये जाते है। इन गीतों में ये गीत भी शामिल है: सुन्दर मुन्द्ररिये हो तेरा कौन वेचारा हो। दुल्ला भट्टी वाला हो। दुल्ले धी बिआई हो सेर सकर पाई हो। लोहडी के दिन यह गीत भी खूब गाया जाता है देह माई लोहडी जीवे तेरी जोडी तेरे कोठे ऊपर मोर. रब्ब पुत्तर देवे होर साल नूं फेर आवां। लोहडी पर्व आग और सूर्य को समर्पित होता है। इस दौरान सूर्य मकर राशि से उत्तर की आ॓र आ जाता है। अग्नि देवता का आध्यात्मिक महत्व भी होता है। लोग पापकार्न,मूंगफली,रेवडी,गज्जक,मिठाइयां आदि प्रसाद के रूप में चढ़ात हैं। किसानों के लिए लोहडी का विशेष महत्व है। वे इसे रबी की फसल पकने की खुशी में मनाते है। इस अवसर पर अग्नि को नमन करते हुए किसान अच्छी फसल की कामना करते हैं।

नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है नौ रातें । यह पर्व साल में चार बार आता है।चैत्र,आषाढ,अश्विन,पोषप्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातो में तीन देवियों - महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वतीया सरस्वतीकि तथा दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं ।

नौ देवियाँ है :-

    श्री शैलपुत्री
    श्री ब्रह्मचारिणी
    श्री चंद्रघंटा
    श्री कुष्मांडा
    श्री स्कंदमाता
    श्री कात्यायनी
    श्री कालरात्रि
    श्री महागौरी
    श्री सिद्धिदात्री

शक्ति की उपासना का पर्व शारदेय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की । तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं । नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। नवदुर्गा और दस महाविधाओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविधाएँ अनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।


 
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