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आचार्य अभिमन्यु पाराशर 
शुभ कार्यो में विशेष रुप से त्याज्य
समय के दो पहलू है. पहले प्रकार का समय व्यक्ति को ठीक समय पर काम करने के लिये प्रेरित करता है. तो दूसरा समय उस काम को किस समय करना चाहिए इसका ज्ञान कराता है. पहला समय मार्गदर्शक की तरह काम करता है. जबकि दूसरा पल-पल का ध्यान रखते हुये कभी चन्द्र की दशाओं का तो कभी राहु काल की जानकारी देता है.
राहु-काल का महत्व :
राहु-काल व्यक्ति को सावधान करता है. कि यह समय अच्छा नहीं है इस समय में किये गये कामों के निष्फल होने की संभावना है. इसलिये, इस समय में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाना चाहिए. कुछ लोगों का तो यहां तक मानना है की इससे किये गये काम में अनिष्ट होने की संभावना रहती है.
दक्षिण भारत में प्रचलित:
राहु काल का विशेष प्रावधान दक्षिण भारत में है. यह सप्ताह के सातों दिन निश्चित समय पर लगभग डेढ़ घण्टे तक रहता है. इसे अशुभ समय के रुप मे देखा जाता है. इसी कारण राहु काल की अवधि में शुभ कर्मो को  यथा संभव टालने की सलाह दी जाती है.
राहु काल अलग- अलग स्थानों के लिये अलग-2 होता है. इसका कारण यह है की सूर्य के उदय होने का समय विभिन्न स्थानों के अनुसार अलग होता है. इस सूर्य के उदय के समय व अस्त के समय के काल को निश्चित आठ भागों में बांटने से ज्ञात किया जाता है.
दिन के आठ भाग :
सप्ताह के पहले दिन के पहले भाग में कोई राहु काल नहीं होता है. यह सोमवार को दूसरे भाग में, शनि को तीसरे, शुक्र को चौथे, बुध को पांचवे, गुरुवार को छठे, मंगल को सांतवे तथा रविवार को आंठवे भाग में होता है. यह प्रत्येक सप्ताह के लिये स्थिर है. राहु काल को राहु-कालम् नाम से भी जाना जाता है.
सामान्य रुप से इसमें सूर्य के उदय के समय को प्रात: 06:00 बजे का मान कर अस्त का समय भी सायं काल 06:00 बजे का माना जाता है. 12 घंटों को बराबर आठ भागों में बांटा जाता है. प्रत्येक भाग डेढ घण्टे का होता है. वास्तव में सूर्य के उदय के समय में प्रतिदिन कुछ परिवर्तन होता रहता है.
एक दम सही भाग निकालने के लिये सूर्य के उदय व अस्त के समय को पंचाग से देख आठ भागों में बांट कर समय निकाला जाता है. इससे समय निर्धारण में ग़लती होने की संभावना नहीं के बराबर रहती है.
*संक्षेप में यह इस प्रकार है*:-
1. सोमवार : 
सुबह 7:30 बजे से लेकर प्रात: 9.00 बजे तक का समय इसके अन्तर्गत आता है.

2. मंगलवार : 
राहु काल दोपहर 3:00 बजे से लेकर दोपहर बाद 04:30 बजे तक होता है.

3. बुधवार: 
राहु काल दोपहर 12:00 बजे से लेकर 01:30 बजे दोपहर तक होता है.

4. गुरुवार : 
राहु काल दोपहर 01:30 बजे से लेकर 03:00 बजे दोपर तक होता है.

5. शुक्रवार : 
राहु काल प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक का होता है.

6. शनिवार: 
राहु काल प्रात: 09:00 से 10:30 बजे तक का होता है.

7. रविवार: 
राहु काल सायं काल में 04:30 बजे से 06:00 बजे तक होता है.


राहु काल के समय में किसी नये काम को शुरु नहीं किया जाता है परन्तु जो काम इस समय से पहले शुरु हो चुका है उसे राहु-काल के समय में बीच में नहीं छोडा जाता है. कोई व्यक्ति अगर किसी शुभ काम को इस समय में करता है तो यह माना जाता है की उस व्यक्ति को किये गये काम का शुभ फल नहीं मिलता है. उस व्यक्ति की मनोकामना पूरी नहीं होगी. अशुभ कामों के लिये इस समय का विचार नहीं किया जाता है. उन्हें दिन के किसी भी समय किया जा सकता है.
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आचार्य रणजीत स्वामी  
आज के भौतिक युग में एक फैशन सा हो गया है कि लोग उन्हे जाने, पहचाने, मान दे, सम्मान दें अर्थात् हर व्यक्ति चाहता है एक यथोचित प्रसिद्धि।
लोगों मे योग्यता भी होती है, अवसर भी मिलते हैं, प्रयास भी किए जाते हैं परन्तु सबके बावजू़द सफलता नही मिल पाती या कम मिलती है इस कारण कभी-कभी लोग निराश भी हो जाते हैं, कि पूरी मेहनत के बाद भी यथोचित उपलब्धि क्यों नही मिल पा रही है, इन अड़चनो को और मार्ग की बाधाओं को सरल बनाता है घर में वास्तु के अनुसार थोड़ा-बहुत हेर-फेर ।
यदि कोई व्यक्ति भारतीय वास्तुशास्त्र के नीचे लिखे नियमों का पालन अपने निवास स्थान, व्यवसाय स्थल या आफीस मे करे तो वह अपने जीवन मे यथोचित प्रसिद्धि पा सकता है—-
1 निवास एवं व्यवसाय स्थल की उत्तर, पूर्व एवं ईशान दिशा का दबी, कटी एवं गोल होना काफी अशुभ होता है जबकि इसका बड़ा होना बहुत शुभ होता है। अतः यदि दबी, कटी या गोल हो तो इन्हे ठीक करवाकर समकोण करना चाहिये।

2 भवन के उत्तर, पूर्व एवं ईशान में भुमिगत पानी की टंकी, कुआ या बोर होना बहुत शुभ होता है। इससे आर्थिक सम्पन्नता के साथ-साथ प्रसिद्धि भी मिलती है।
उपरोक्त दिशाओं के अलावा अन्य किसी भी दिशा में होना अशुभ होता है। भवन के मध्य मे तो किसी भी प्रकार का गढ्ढा, कुआ, बोरींग इत्यादि होने से गृहस्वामी पर भयंकर आर्थिक संकट एवं अपयश मिलता है। अतः इसको जितना जल्दी हो सके भर देना चाहिये।

3 यदि आप ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में बेडरूम बनाएंगे तो इस कमरे में सोने वाला कम से कम आठ-दस घंटे तो यहां बिताएगा ही।
4 किसी भी व्यक्ति के लिए ऊर्जा से परिपूर्ण इस क्षेत्र में इतने लंबे समय तक रहने का मतलब है खुद का नुकसान। क्योंकि इस जगह पर किसी को भी इतनी देर नहीं रहना चाहिए।

5 यदि आपने यह कमरा अपने बेटे को दिया है तो संभव है उस पर मोटापा हावी हो जाए। जिसके परिणामस्वरूप वह सुस्त और ढीला हो जाएगा। इससे उसमें हीन भावना आ जाएगी।।   
6 अगर बेटी को यह कमरा दिया गया है तो वह चिड़चिड़े स्वभाव की और झगड़ालू हो जाएगी। इतना ही नहीं, उसे कम उम्र में ही स्त्री रोगों से जुड़ी समस्याएं भी झेलना पड़ सकती हैं।

7 किसी दंपत्ति का बेडरूम बनाने के लिए ईशान कोण अशुभ फलदायी जगह है। किसी नव विवाहित दंपत्ति को तो भूलकर भी ईशान कोण में अपना बेडरूम नहीं बनाना चाहिए।
8 नवविवाहिता अगर ईशान कोण पर बने बेडरूम में रहती है तो यह निश्चित है कि या तो वह गर्भधारण ही नहीं कर पाएगी या उसे बार-बार गर्भपात का शिकार होना पड़ेगा।
9 ईशान कोण पर बने बेडरूम में सोने वाले दंपतियों को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और आध्यात्मिक तरह की कठिनाइयां झेलना पड़ सकती हैं।।             
10 आवासीय भवन में ड्रांइग रूम के लिए पूर्व , उत्तर एंव ईशान कोण का क्षेत्र उचित है। ईशान कोण में अधिक से अधिक स्थान खाली रखें। अन्यथा पूर्व और उत्तर दिशा के क्षेत्र को खाली या हल्के रखें। उत्तर एंव पूर्व दिशा की सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि के लिए इन दिशाओं में बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ अथवा स्लाइडिंग दरवाजों का प्रावधान रखें।
11 निवास एवं व्यवसाय स्थल का उत्तर, ईशान व पूर्व का भाग दक्षिण, नैऋत्य व पश्चिम के मुकाबले नीचा होना चाहिये।
12 निवास एवं व्यवसाय स्थल के मुख्य द्वार के सामने द्वार वैध नही होना चाहिये जैसे बिजली का खम्बा, स्तम्भ, वृक्ष, खुली नाली या कोई सामने के भवन का धारदार कोना इत्यादि।
13 व्यक्ति को अफीस या घर मे कही पर भी लटकती बीम या दुछत्ती के नीचे बैठना या लेटना नहीं चाहिये।
14 ईशान कोण मे टायलेट होने से पैसा बर्बाद होता है स्वास्थ्य खराब होता है और अपयश मिलता है।
15 ईशान क्षेत्र में कभी भी बच्चों का बेडरूम न बनाएं। अगर आप ने यहां पूजा घर नहीं बनाया है तो यहां बच्चों के लिए स्टडी रूम बना सकत
16 अगर ईशान ऊँचा हो तो धन हानि,संतान हानि एवम् अनेक परेशानिया हो सकती है।
17 यदि ईशान में रसोई हो तो गृह कलह व् धन हानि होती है
18 पूर्वी दिशा का क्षेत्रफल घट कर पूर्वी  सीमा  पर भवन निर्माण हो तो गृहस्वामी की तीसरी पीढ़ी में वंश ही खत्म हो जाता है।
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वास्तु और फेंगशुई पूरी तरह से सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के सिद्धांतों पर ही काम करता है। घर में सकारात्मक वातावरण और सकारात्मक वस्तुएं रहेंगी, तो निश्चित ही हमें कार्यों में भी सफलता प्राप्त होगी और धन संबंधी परेशानियों से मुक्ति मिलेगी। वास्तु के अनुसार 8 दिशाएं बताई गई हैं। इन आठों दिशाओं का अलग-अलग महत्व है और हर दिशा के लिए अलग-अलग नियम हैं।यदि घर में किसी दिशा में कोई गलत वस्तु रखी है, तो इसका बुरा असर वहां रहने वाले सभी सदस्यों पर पड़ता है। जानिए, घर की किस दिशा में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए…
 उत्तर-पूर्व दिशा                 (ईशान कोण)
यह दिशा दैवीय शक्तियों के लिए श्रेष्ठ होती है। इस दिशा का प्रतिनिधित्व स्वयं दैवीय शक्तियां ही करती हैं। इसलिए यहां मंदिर होना बहुत शुभ रहता है। इस स्थान पर हमेशा साफ-सफाई रहनी चाहिए। इस स्थान पर मंदिर के साथ ही पानी से संबंधित उपकरण भी रखे जा सकते हैं। यदि कोई स्त्री अविवाहित है, तो उसे इस कोने में सोना नहीं चाहिए। इस कोने में कोई अविवाहित स्त्री सोती है तो उसके विवाह में विलंब हो सकता है या स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। घर के इस कोने में बाथरूम और टॉयलेट नहीं होना चाहिए। साथ ही, यहां भारी वस्तुएं भी नहीं रखें।


दक्षिण-पूर्व दिशा।            (आग्नेय कोण)

इस कोण का प्रतिनिधित्व अग्नि करती है। इसलिए इस दिशा में विशेष ऊर्जा रहती है। इस स्थान पर रसोईघर होना सबसे अच्छा रहता है। यहां विद्युत उपकरण भी रखे जा सकते हैं। अग्नि स्थान होने के कारण यहां पानी से संबंधित चीजें नहीं रखनी चाहिए। आग्नेय कोण में खाना भी नहीं खाना चाहिए, यानी इस स्थान पर डायनिंग हॉल अशुभ होता है।
दक्षिण-पश्चिम दिशा          (नैऋत्य कोण)
इस स्थान का प्रतिनिधित्व पृथ्वी तत्व करता है। इसीलिए यहां प्लांट रखना बहुत शुभ होता है। पौधों में यह शक्ति होती है कि वे हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण कर सकते हैं। इस स्थान पर पौधे रखेंगे, तो आपके घर की पवित्रता और सकारात्मकता बनी रहती है।
यहां मुख्य बेडरूम भी शुभ फल देता है। इसके अलावा, यहां स्टोर रूम भी बनाया जा सकता है। नैऋत्य कोण में भारी वस्तुएं भी रखी जा सकती हैं। यहां कार पार्किंग का स्थान का बनाया जा सकता है। इन बातों का ध्यान रखेंगे तो आपके घर में ऊर्जा का संतुलन बना रहेगा।
उत्तर-पश्चिम दिशा             (वायव्य कोण)
वायु इस कोण का प्रतिनिधित्व करती है। इस वजह से यहां खिड़की या रोशनदान का होना बहुत शुभ रहता है। यहां ताजी हवा के लिए स्थान होगा तो हमें स्वास्थ्य संबंधी कई लाभ प्राप्त होते हैं। यहां ताजी हवा आने का स्थान होगा, तो कुछ ही दिनों में पारिवारिक रिश्तों में मधुरता आ जाती है।

घर में किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता है और ना ही स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां रहती हैं। इस स्थान पर कन्या का कमरा बनाया जा सकता है। यहां मेहमानों के रहने की व्यवस्था की जा सकती है। यहां दूसरे फ्लोर पर जाने के लिए सीढ़ियां भी बनाई जा सकती हैं।

पूर्व दिशा
इस दिशा से आपके घर में खुशियां और सकारात्मक ऊर्जा आती है। इस वजह से यहां मुख्य दरवाजा बनाया जा सकता है। यहां खिड़की, बालकनी बनाई जा सकती है। यहां पर बच्चों के लिए कमरा भी बनवाया जा सकता है। यदि आप इस स्थान पर पढ़ाई या अध्ययन संबंधी कार्य करते हैं तो आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। आपके घर में यदि यहां रसोईघर है, तो खाना बनाते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।

यदि यह संभव न हो तो आप अपना मुख पश्चिम दिशा की ओर भी रख सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि इस स्थान पर खाना बनाते समय आपका मुख दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं और यह वास्तु दोष उत्पन्न करता है।

पश्चिम दिशा
वास्तु के अनुसार, इस दिशा के स्वामी वरुण देव हैं। इस स्थान पर डायनिंग हॉल बनवा सकते हैं। यहां सीढ़ियां बनवाई जा सकती हैं। यहां कोई भारी निर्माण कार्य भी करवाया जा सकता है। पश्चिम दिशा में दर्पण लगाना भी बहुत शुभ होता है। यहां बाथरूम भी बनवाया जा सकता है। गेस्ट रूम भी बनवाया जा सकता है। यहां स्टडी रूम भी शुभ फल प्रदान करता है।


उत्तर दिशा

इस दिशा का प्रतिनिधित्व धन के देवता करते हैं। इस वजह से यहां नकद धन और मूल्यवान वस्तुएं रखी जा सकती हैं। यहां मुख्य दरवाजा भी श्रेष्ठ फल देता है। यहां बैठक की व्यवस्था भी की जा सकती है या ओपन एरिया भी रखा जा सकता है। यहां बाथरूम भी बनवा सकते हैं। ध्यान रखें, इस दिशा में बेडरूम नहीं बनवाना चाहिए। यहां स्टोर रूम, स्टडी रूम या भारी मशीनरी नहीं होनी चाहिए।
दक्षिण दिशा

यह स्थान मृत्यु के देवता का स्थान है। यहां भारी सामान रखा जा सकता है। इस स्थान पर रसोईघर भी हो सकता है। यहां पानी का टैंक बनवा सकते हैं और सीढ़ियां बनवा सकते हैं। यहां बच्चों का कमरा नहीं बनवाना चाहिए। स्टडी रूम, बाथरूम और खिड़की नहीं होनी चाहिए। यदि इस स्थान पर बेडरूम है तो सोते समय हमारा सिर दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।

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श्री गणेशाय नम:
मेष :- सिहं धनु से विशेष मित्रता व मिथुन तुला तथा कंुभ राशी वालो से सामान्य मित्रता रहेगी।
वर्ष :- कन्या व मकर राशी से अच्छी मित्रता तथा कर्क वृश्चिक व मीन राशी से सम मित्रता रहेगी। 
मिथुन :- तुला व कंुभ से अनूकुल मित्रता व मेष सिहं व धनु राशी से मैत्री सम्बन्ध रहेगें।
कर्क :- वृश्चिक व मीन राशी से सुखद मित्रता तथा वृष कन्या व मकर से मित्रता रहेगी।
सिहँ :- मेष व धनु से प्रगाढ मैत्री तथा मिथुन तुला व कंुभ से मित्रता रहेगी।
कन्या:- वृष मकर राशी से विशेष तथा कर्क वृश्चिक मीन जातको से सामान्य मित्रता रहेगी।
तुला :- मिथुन व कंुभ से प्रगाढ मित्रता तथा मेष सिहं तथा धनु राशी वालो से अच्छे मैत्री सम्बन्ध रहेंगे।
वृश्चिक :- कर्क वृश्चिक वर्ष कन्या एवं मकर राशी के जातको से मैत्री सम्बन्ध रहेगें।
धनु :- मेष व सिहं राशी से घनिष्ठता तथा मिथुन तुला और कंुभ राशी से आपसी मित्रता होती है। 
मकर :- कन्या, वृष, कर्क, वृश्चिक तथा मीन राशी के जातको से मित्रता रहेगी।
कंुभ :- मिथुन व तुला से विशेष मित्रता व मेष, सिहं व धनु राशी वालो से सम मित्रता रहेगी।
मीन :- कर्क व वुश्चिक राशी से सुखद मैत्री तथा वृष, कन्या, मकर से सामान्य मित्रता रहेगी।
आचार्य अभिमन्यू पाराशर 
हस्तरेखा गोल्ड मेडलिस्ट
जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान 
बस स्टेण्ड शिमला  जिला – झुंझुनू राजस्थान 
मोे   -9413723865,  8769467161

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