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एस्ट्रो धर्म :
Tungnath | Uttarakhand Tourism Development Board | Department of ...

सनातन धर्म में जहां माता शेरावाली को पहाड़ों वाली तो वहीं भगवान शिव को भी कैलाशवासी माना जाता है। सनतान धर्म के इन दोनों ही देवताओं को पहाड़ों में बसने वाला माना गया है। लेकिन इसके बावजूद देश दुनिया में कई देवी देवताओं के हजारों मंदिर काफी ऊंचाई में बसे हुए हैं।
ये मंदिर जहां बसे हैं उनकी ऊंचाई सैकडों से हजारों मीटर है, ऐसे में आज हम आपको दुनिया के सबसे ऊंचे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है, खास बात ये है कि हजारों वर्ष पूराने इस मंदिर का संबंध सनातन धर्म के दो प्रमुख देवताओं से भी है। एक ओर जहां ये मंदिर भगवान शिव का है, वहीं इसका सीधा संबंध श्रीराम से भी है।
वहीं सबसे खास बात ये है कि इस मंदिर में आज भी चमत्कार होते हैं, मान्यता के अनुसार यहां आने वाले भक्तों पर भगवान शिव विशेष कृपा रखते हैं, वहीं यहां मांगी गई तकरीबन हर मनोकामना भी जल्द पूर्ण होती है। ये मंदिर है पंचकेदारों में द्वितीय केदार के नाम से प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर...
तुंगनाथ : यानि चोटियों का स्वामी
तुंगनाथ मंदिर दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर है और यह मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में “टोंगनाथ पर्वत” श्रृंखला में स्थित पांच और सबसे अधिक पंच केदार मंदिर हैं। यह मन्दिर समुद्र तल से लगभग 3,680 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है तुंगनाथ (अर्थात् चोटियों का स्वामी) पर्वतों में मंदाकिनी और अलकनंदा नदी घाटियों का निर्माण होता है।

यह मंदिर 1000 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है और भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में भगवान शिव को “पंचकेदार” रूप में पूजा जाता है। तुंगनाथ मंदिर केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिर के लगभग बीच में स्थित है। यह मंदिर पंचकेदार के क्रम में दूसरे स्थान पर है।
आचार्य अभिमन्यु पाराशर 
शुभ कार्यो में विशेष रुप से त्याज्य
समय के दो पहलू है. पहले प्रकार का समय व्यक्ति को ठीक समय पर काम करने के लिये प्रेरित करता है. तो दूसरा समय उस काम को किस समय करना चाहिए इसका ज्ञान कराता है. पहला समय मार्गदर्शक की तरह काम करता है. जबकि दूसरा पल-पल का ध्यान रखते हुये कभी चन्द्र की दशाओं का तो कभी राहु काल की जानकारी देता है.
राहु-काल का महत्व :
राहु-काल व्यक्ति को सावधान करता है. कि यह समय अच्छा नहीं है इस समय में किये गये कामों के निष्फल होने की संभावना है. इसलिये, इस समय में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाना चाहिए. कुछ लोगों का तो यहां तक मानना है की इससे किये गये काम में अनिष्ट होने की संभावना रहती है.
दक्षिण भारत में प्रचलित:
राहु काल का विशेष प्रावधान दक्षिण भारत में है. यह सप्ताह के सातों दिन निश्चित समय पर लगभग डेढ़ घण्टे तक रहता है. इसे अशुभ समय के रुप मे देखा जाता है. इसी कारण राहु काल की अवधि में शुभ कर्मो को  यथा संभव टालने की सलाह दी जाती है.
राहु काल अलग- अलग स्थानों के लिये अलग-2 होता है. इसका कारण यह है की सूर्य के उदय होने का समय विभिन्न स्थानों के अनुसार अलग होता है. इस सूर्य के उदय के समय व अस्त के समय के काल को निश्चित आठ भागों में बांटने से ज्ञात किया जाता है.
दिन के आठ भाग :
सप्ताह के पहले दिन के पहले भाग में कोई राहु काल नहीं होता है. यह सोमवार को दूसरे भाग में, शनि को तीसरे, शुक्र को चौथे, बुध को पांचवे, गुरुवार को छठे, मंगल को सांतवे तथा रविवार को आंठवे भाग में होता है. यह प्रत्येक सप्ताह के लिये स्थिर है. राहु काल को राहु-कालम् नाम से भी जाना जाता है.
सामान्य रुप से इसमें सूर्य के उदय के समय को प्रात: 06:00 बजे का मान कर अस्त का समय भी सायं काल 06:00 बजे का माना जाता है. 12 घंटों को बराबर आठ भागों में बांटा जाता है. प्रत्येक भाग डेढ घण्टे का होता है. वास्तव में सूर्य के उदय के समय में प्रतिदिन कुछ परिवर्तन होता रहता है.
एक दम सही भाग निकालने के लिये सूर्य के उदय व अस्त के समय को पंचाग से देख आठ भागों में बांट कर समय निकाला जाता है. इससे समय निर्धारण में ग़लती होने की संभावना नहीं के बराबर रहती है.
*संक्षेप में यह इस प्रकार है*:-
1. सोमवार : 
सुबह 7:30 बजे से लेकर प्रात: 9.00 बजे तक का समय इसके अन्तर्गत आता है.

2. मंगलवार : 
राहु काल दोपहर 3:00 बजे से लेकर दोपहर बाद 04:30 बजे तक होता है.

3. बुधवार: 
राहु काल दोपहर 12:00 बजे से लेकर 01:30 बजे दोपहर तक होता है.

4. गुरुवार : 
राहु काल दोपहर 01:30 बजे से लेकर 03:00 बजे दोपर तक होता है.

5. शुक्रवार : 
राहु काल प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक का होता है.

6. शनिवार: 
राहु काल प्रात: 09:00 से 10:30 बजे तक का होता है.

7. रविवार: 
राहु काल सायं काल में 04:30 बजे से 06:00 बजे तक होता है.


राहु काल के समय में किसी नये काम को शुरु नहीं किया जाता है परन्तु जो काम इस समय से पहले शुरु हो चुका है उसे राहु-काल के समय में बीच में नहीं छोडा जाता है. कोई व्यक्ति अगर किसी शुभ काम को इस समय में करता है तो यह माना जाता है की उस व्यक्ति को किये गये काम का शुभ फल नहीं मिलता है. उस व्यक्ति की मनोकामना पूरी नहीं होगी. अशुभ कामों के लिये इस समय का विचार नहीं किया जाता है. उन्हें दिन के किसी भी समय किया जा सकता है.
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श्री गणेशाय नम:
मेष :- सिहं धनु से विशेष मित्रता व मिथुन तुला तथा कंुभ राशी वालो से सामान्य मित्रता रहेगी।
वर्ष :- कन्या व मकर राशी से अच्छी मित्रता तथा कर्क वृश्चिक व मीन राशी से सम मित्रता रहेगी। 
मिथुन :- तुला व कंुभ से अनूकुल मित्रता व मेष सिहं व धनु राशी से मैत्री सम्बन्ध रहेगें।
कर्क :- वृश्चिक व मीन राशी से सुखद मित्रता तथा वृष कन्या व मकर से मित्रता रहेगी।
सिहँ :- मेष व धनु से प्रगाढ मैत्री तथा मिथुन तुला व कंुभ से मित्रता रहेगी।
कन्या:- वृष मकर राशी से विशेष तथा कर्क वृश्चिक मीन जातको से सामान्य मित्रता रहेगी।
तुला :- मिथुन व कंुभ से प्रगाढ मित्रता तथा मेष सिहं तथा धनु राशी वालो से अच्छे मैत्री सम्बन्ध रहेंगे।
वृश्चिक :- कर्क वृश्चिक वर्ष कन्या एवं मकर राशी के जातको से मैत्री सम्बन्ध रहेगें।
धनु :- मेष व सिहं राशी से घनिष्ठता तथा मिथुन तुला और कंुभ राशी से आपसी मित्रता होती है। 
मकर :- कन्या, वृष, कर्क, वृश्चिक तथा मीन राशी के जातको से मित्रता रहेगी।
कंुभ :- मिथुन व तुला से विशेष मित्रता व मेष, सिहं व धनु राशी वालो से सम मित्रता रहेगी।
मीन :- कर्क व वुश्चिक राशी से सुखद मैत्री तथा वृष, कन्या, मकर से सामान्य मित्रता रहेगी।
आचार्य अभिमन्यू पाराशर 
हस्तरेखा गोल्ड मेडलिस्ट
जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान 
बस स्टेण्ड शिमला  जिला – झुंझुनू राजस्थान 
मोे   -9413723865,  8769467161

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आचार्य अभिमन्यू पाराशर
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शादी ब्याह कर घर बसाने वालों के लिए नया साल खुश खबर लेकर आ रहा है। इस साल की तुलना मे वर्ष 2017 मे विवाह मुहुर्तो की भरमार रहेगी। 2017 मे पूरे साल विवाह के 78 शुभ मुहुर्त हैं। वर्ष 2016 की अपेक्षा 40 मुहुर्त अधिक हैं। मौजूदा साल मे विवाह के करीब 48 शुभ मुहुर्त थे। अगले साल जनवरी से जुलाई तक हर माह विवाह मुहुर्त हैं। देव उठनी एकादशी के साथ ही विवाह मुहुर्त शुरू हो जायेंगे। मार्च माह मे 4 मार्च को ही शुभ मुहुर्त हैं हालांकि 15 मार्च के पहले विवाह के 4 मुहुर्त हैं लेकिन होलाष्टक के कारण कई लोग इन मुहुर्तों मे शदीयाँ नही करते हैं। आचार्य अभिमन्यू पाराशर के अनुसार देव उठनी एकादशी 11 नवम्बर को मनाई जायेगी लकिन सूर्य के तुला राशि मे होने के कारण शुभ मुहुर्त 16 नवम्बर से ही प्ररम्भ होगें।

कब कब लगेगा विराम
पाराशर के अनुसार 15 दिसम्बर से 14 जनवरी तक धनु राशि के सूर्य अर्थात खरमास मे होने से विवाह आदी शुभ कार्यो पर विराम लगा रहेगा। 14 मार्च से 17 अप्रेल तक भी मीन राशि के सूर्य अर्थात खरमास मे होने से विवाह आदि कार्य नही होगें।

मई जून मे जमकर होगीं शादीयां
वर्ष 2016 मे मई और जून मे शुक्र अस्त होने से विवाह मुहुर्त नही थे। लेकिन 2017 मे दोनो महिनो मे जमकर शादीयाँ होंगी। मई मे 16 दिन व जून मे 17 दिन विवाह के शुभ मुहुर्त रहेंगे।

देवोत्थापनी अर्थात देवउठनी एकादशी
यद्यपि भगवान क्षणभर भी सोते नही हैं फिर भी भक्तों की भावना - यथा देहे तथा देवे के अनुसार भगवान चार मास शयन करते हैं। भगवान विष्णु के क्षीर शयन के विषय मे यह कथा प्रसिद्ध है कि भगवान ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को मारा था। और उसके बाद थकावट दूर करने के लिए क्षीर सागर मे जाकर सो गये। वे वहाँ चार मास तक सोते रहे और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगे। इसी से इस एकादशी का नाम देवोत्थापनी या देवप्रबोधनी व देव उठनी एकादशी पड गया। इस दिन उपवास करने का विशेष महत्व है।

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