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एस्ट्रो धर्म:
Shani Jayanti (Shani Birthday) 2020: Shani Birthday Know Shani ...
इस साल 2020 में शनि देव की जयंती का पर्व 22 मई को मनाया जाएगा। शनि जयंती के दिन शनि देव की पूजा अर्चना के श्रद्धापूर्वक शनि देव की इस आरती का गायन करने से प्रसन्न हो जाते हैं। जानें शनि जंयती के दिन शनि देव की आरती और उसे करने का विधान।
शनि देव की आरती करते समय इतना ध्यान रखें-
बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन के सिर्फ आरती नहीं की जा सकती। हमेशा किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति पर ही आरती करना श्रेष्ठ होता है। आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक, दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित कर आरती की जा सकती है। अगर मंदिर में दीपक से आरती करें तो यह पंचमुखी दीपक होना चाहिए।
ऐसे करें शनि देव की आरती
आरती की थाल को इस प्रकार घुमाएं कि ॐ की आकृति बन सके। आरती को भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाना चाहिए। आरती से ऊर्जा लेते समय सर ढंका रखें। दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर नेत्रों पर और सर के मध्य भाग पर लगायें। आरती लेने के बाद कम से कम पांच मिनट तक जल का स्पर्श नहीं करना चाहिए। आरती की थाल में दक्षिणा या अक्षत जरूर डालना चाहिए। कहा जाता है कि शनिदेव की आरती और भजनों का श्रद्धा पूर्वक गायन करने से शनि देव व्यक्ति की हर तरह की विपत्तियों से रक्षा करते हैं।
।। आरती शनि देव की ।।
1- जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।

2- निलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
क्रीट मुकुट शीश सहज दिपत है लिलारी।

3- मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
मोदक और मिष्ठान चढ़े, चढ़ती पान सुपारी।

4- लोहा, तिल, तेल, उड़द महिषी है अति प्यारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान हम हैं शरण तुम्हारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
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एस्ट्रो धर्म। स्त्री का मातृत्व ही उसकी महत्ता का द्योतक है। अत: गर्भधारण संस्कार अत्यधिक गौरवशाली संस्कार माना गया है।

गर्भ: सन्धार्यते येन कर्मणा तत् गर्भाधानम्।
गृहस्थ जीवन की सार्थकता संतानोत्पत्ति में ही मानी गई है, क्योंकि इसी से तो सृष्टि का विकास होता है। अत: गर्भाधान संस्कार में सात्त्विकता एवं तामसिकता का ध्यान रखना चाहिए। माता-पिता की प्रवृत्ति का प्रभाव ही उनकी भावी पीढ़ी पर पड़ेगा।
2. पुंसवन संस्कार
गर्भस्थ शिशु पर माता-पिता, परिवार एवं वातावरण का प्रभाव अवश्य पड़ता है। महाभारत का अभिमन्यु तो गर्भावस्था में ही अपने पिता अर्जुन द्वारा बताए चक्रव्यूह-भेदन की क्रिया को सीख गया था। अत: गर्भस्थ शिशु के कल्याण के लिए गर्भवती मां को पौष्टिक व सात्त्विक आहार के साथ सुसंस्कारक साहित्य, शास्त्रोक्त सदुपदेश, चरित्र, आचरण के निखार विषयक कथाएं सुनानी चाहिए। यह संस्कार गर्भाधान के तीसरे या चौथे महीने में किया जाता है—
गर्भे तृतीये तु मासि पुंसवनं भवेत्।
3. सीमंतोन्नयन संस्कार
गर्भस्थ शिशु को किसी प्रकार की क्षति न हो। बाह्य आपदाएं, पैशाचिक प्रकोप अथवा इसी प्रकार की अन्य आकस्मिक शिशु घातक घटनाओं से बचाने के प्रयास के क्रम में इस संस्कार की महत्ता है। प्राय: असामयिक गर्भपात की घटनाएं सुनने में आती हैं। वैसे भी गर्भावस्था में स्त्रियां कहीं दूर आना-जाना पसंद नहीं करतीं, जबकि भूत-प्रेत बाधा का डर भी रहता है। अत: गर्भस्थ शिशु की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता इस संस्कार में दिए जाने का संकेत लक्षित होता है। गर्भस्थ शिशु की दीर्घायु एवं सुरक्षा के विषय में तो बताया गया है—
सीमन्तोन्नयनं कार्य तत्स्त्री संस्कार इष्यते।
यह संस्कार छठे या आठवें महीने में किए जाने का प्रावधान है, क्योंकि तब तक शिशु उदर में चलने लगता है। इस संस्कार मे गर्भवती स्त्री के केश संवारने के भाव से यही प्रतीत होता है कि उसकी देख-रेख बड़ी सावधानी से की जानी चाहिए। अधिक श्रम, रात्रि-जागरण, दिवा-शयन आदि न करें।
4. जातकर्म संस्कार
नवजात शिशु के मुख में घी-मधु का स्पर्श कराते हैं। इसी के साथ यह मंत्र-वाचन भी किया जाता है— 
मन्त्रवत्प्राशनं चास्य हिरण्यमधुसर्पिषाम्।

शिशु के कान में भी दीर्घायु-यशस्वी होने के लिए मंत्र पढ़े जाते हैं। नवजात शिशु के नाल-छेदन (नाल काटने की) क्रिया की जाती है, जच्च-बच्चा की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाता है।
5. नामकरण संस्कार
शिशु के नामकरण संस्कार के विषय में शास्त्रोक्त कथन है-
एकादशे अहनि पिता नाम कुर्यादिति।
जन्म के ग्यारहवें दिन नवजात शिशु का नामकरण होना चाहिए। नामकरण संस्कार की महत्ता भी शास्त्रों में बताई गई है। नाम का मनुष्य के काम पर तथा व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है, अत: शिशु के शुभाशुभ के परिप्रेक्ष्य में नामकरण संस्कार किया जाना चाहिए। ‘शतपथब्राह्मण’ में भी बताया गया है—
तस्मात्पुत्रस्य जातस्य नाम कुर्यात्।
6. निष्क्रमण संस्कार
नवजात शिशु को अच्छे मुहूर्त में अनुष्ठानों के साथ घर से प्रथम बार निकालने को ‘निष्क्रमण संस्कार’ कहते हैं। निष्क्रमण संस्कार प्राय: गांवों में संपन्न किए जाने पर गाय के गोबर से आंगन को लीपकर, चौक पूरकर, विविध अनुष्ठानों के साथ नवजात शिशु को प्रसूतिका-गृह से बाहर लाकर चौक में रखे अनाज का स्पर्श कराया जाता है तथा सूर्य और चंद्रमा  के दर्शन शुभ तिथियों पर कराए जाते हैं।
7. अन्नप्राशन संस्कार
शिशु के मुख में सर्वप्रथम अन्न का स्पर्श कराने को ‘अन्नप्राशन संस्कार’ कहा जाता है। यह प्राय: छह महीने के पश्चात् किया जाता है, क्योंकि तब तक बच्चा बड़ा हो जाता है और उसकी तृप्ति मां के दूध से नहीं हो पाती। ‘चरक संहिता’ में भी छह महीने पश्चात् बच्चों को पथ्य भोजन दिए जाने को श्रेयस्कर बताया गया है। इस अवधि में बच्चों को दांत भी आने लगते हैं तथा पाचनक्रिया भी प्रभावित होती है।
8. चूड़ाकर्म/मुंडन संस्कार
बच्चों के प्रथम वर्ष के अंत में अथवा तृतीय वर्ष के अंत में मुंडन संस्कार कराया जाता है, जिसमें विविध अनुष्ठानों के साथ बच्चों के सिर के बाल उतारे जाते हैं। प्राय: यह संस्कार किसी देवस्थान पर कराने की परंपरा है।
9. कर्णवेध संस्कार
इस संस्कार में कानों को छेदने की प्रथा है। कर्ण-छेदन का संस्कार प्राय: छठे, सातवें, आठवें या ग्यारहवें वर्ष में संपन्न कराया जाता है।  लड़के के दाहिने कान को छेदने तथा लड़कियों के दोनों कानों को छेदने की प्रथा प्रचलित है।
10. विद्यारंभ संस्कार
बच्चे का विद्याध्ययन के लिए प्रारंभ किए जाने वाले इस संस्कार को ‘अक्षरारंभ संस्कार’ भी कहते हैं। अच्छे मुहूर्त के साथ इस संस्कार का शुभारंभ विधि-विधान के साथ कराया जाता है, जिससे बच्चा पढ़-लिखकर यशस्वी बने। यह बच्चे के भविष्य के लिए यह अत्यधिक महत्वपूर्ण संस्कार है।
11. उपनयन संस्कार
इस संस्कार को यज्ञोपवीत अथवा ‘जनेऊ संस्कार’ भी कहते हैं। अथर्ववेद में इसे ‘ब्रह्मचारी’ शब्द से समलंकृत किया गया है, जबकि सामान्य अर्थ में इसे प्राचीन काल के ‘दीक्षादान’ से जाना जाता है। आज भी लोग यज्ञोपवीत संस्कार हर्षोल्लास के साथ संपन्न कराते हैं।
12. वेदारंभ संस्कार
प्राचीन काल में उपनयन संस्कार के साथ ही वेदारंभ अर्थात् वेदों के अध्ययन का संस्कार कराया जाता था, किंतु परवर्ती काल में जब संस्कृत बोलचाल की भाषा नहीं रही तो इसका प्रचलन बहुत कम हो गया। आंशिक रूप से कहीं-कहीं यह संस्कार आज भी संपन्न कराया जाता है।
13. केशांत अथवा गोदान संस्कार
प्राचीन काल में इसके अंतर्गत ब्रह्मचारी (वेदाभ्यासी) के श्मश्रुओं का क्षौर किया जाता था तथा गोदान कराया जाता था।
14. समावर्तन संस्कार
प्राचीन काल में वेदाध्ययन के पश्चात् गुरुकुल से अपने घर प्रत्यावर्तन (लौटने) को ‘समावर्तन संस्कार’ कहा जाता था। इसे ‘दीक्षांत संस्कार’ भी कहा जाता था। आज दीक्षांत समारोह उसी परंपरा का रूप कहा जा सकता है।
15. विवाह संस्कार
इस संस्कार का अत्यधिक महत्व है। आज भी प्रत्येक परिवार में वैवाहिक कार्यक्रम अत्यधिक हर्षोल्लास एवं अपनी-अपनी सामथ्र्य के अनुसार संपन्न कराया जाता है। वैदिक वा्मय में भी विवाह संस्कार की महत्ता सर्वाविदित है।
16. अंत्येष्टि संस्कार
मृत्यु के बाद यह संस्कार अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार संपन्न कराया जाता है। ऐहिक जीवन का अंतिम संस्कार परलोकवास की प्रार्थना के साथ किया जाता है। लोक-परलोक दोनों सुधारने का सतत प्रयास मनुष्य करता है और मोक्ष-प्राप्ति उसका अंतिम उद्देश्य होता है। इस परिप्रेक्ष्य में भी संस्कार की अत्यधिक महत्ता है। जीवन की सार्थकता के लिए संस्कारों से स्वयं को, अपनी संतानों को एवं समाज को संवारना आवश्यक है
अंक ज्योतिष की दृष्टि से इस वर्ष आप पर शनि देव शासन करेंगे। अपनी नौकरी व बिज़नेस को लेकर आप काफी सीरियस रहेंगे। आपका प्लानिंग करके काम करना नौकरी में अचानक तरक़्क़ी दे सकता है। जोश व उत्साह से आप भरपूर रहेंगे। नौकरी में अपने टैलेंट के चलते इस दौरान आप विरोधियों की ईंट-से-ईंट बजा सकते हैं। स्टील, लोहा, मशीनरी, लेदर, प्रॉपर्टी, ऑयल व जूतों से जुड़ा बिज़नेस अगर कर रहे हैं तो सफलता मिलने की पूर्ण सम्भावना है। बिज़नेस में ईमानदारी बरतें व छल-कपट से दूर रहें। अगर आप रिसर्च, साइंस, जियोग्राफ़ी से जुड़े स्टूडेंट हैं तो ज़बरदस्त सफलता आपका इंतज़ार कर रही है। आर्कियोलॉजी से जुड़े लोगों को भी मन चाहा परिणाम मिल सकता है। इस साल आपकी आध्यात्मिक क्रियाशीलता बढ़ेगी। इससे जुड़ी कोई ट्रिप भी संभव है। जीवनसाथी व बच्चों के साथ किसी मल्टीप्लेक्स में मनपसंद मूवीज़ देखने का मौक़ा मिलता रहेगा। बच्चों के साथ किसी ऐतिहासिक म्यूज़ियम्स की यात्राएँ भी संभव हैं। लव लाइफ़ अगर बे-जान हुई पड़ी है तो किसी रेस्टोरेंट में अपने प्रेमी से आपका सामना हो सकता है। पुराने प्रेमी पैसों का इंतज़ाम करके रखें क्योंकि गर्लफ्रेंड की शॉपिंग आप पर भारी पड़ सकती है; भले ही खाएँ-पीएँ कुछ नहीं मगर गिलास पूरे बारह आने का ही टूटेगा। हेल्थ का थोड़ा ख़्याल रखें। बाहर पिज़्ज़ा, बर्गर खाने की आदत पर लगाम लगाएँ। अगर जिम जाने का टाइम नहीं है तो घर पर ही साइकिल मंगा लें या फिर योग का सहारा लेना बेहतर होगा। 16 जुलाई से 16 अगस्त तक का समय यादगार साबित हो सकता है।
मूलांक 7 के लिए उपाय
आपके लिए गुरुवार व शनिवार शुभ हैं। अगर इन वारों को 7, 16, 25 तारीख़ें पड़ जाएँ तो समझिए आपकी निकल पड़ी।
आपके लिए नीला, क्रीम, पीला, हल्का हरा व गुलाबी रंग शुभ है। इन रंगों के कपड़ों को ज़्यादा पहनें।
पॉकेट में नीला, पीला या क्रीम कलर का रुमाल हमेशा रखें।
शनि देव की रोज़ाना पूजा करें।


आचार्य रणजीत स्वामी 
मंदिर श्री गिरधारी जी 
किरोड़ी तीर्थ स्थल 
जिला झुंझुनू ( राजस्थान )
अभी हरिद्वार में है 
फ़ोन।  -9412326907
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मूलांक छः का फलादेश
इस साल आप पर नेपच्यून ग्रह का दबदबा रहेगा। 2017 का यह समय आपके लिए अच्छा है। आप अपनी नौकरी व बिज़नेस मीटिंग्स के चलते काफ़ी व्यस्त रहने वाले हैं। कोई नया बिज़नेस शुरू करने की प्लानिंग भी आप करने वाले हैं, जिससे आप अच्छा-ख़ासा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। किसी बड़े प्रोजेक्ट को समय से पूरा करने के कारण आप अपने बॉस की वाहवाही लूटेंगे। नौकरी में आपका अनुशासन देखकर आपके विरोधी भी आपकी तारीफ़ करने पर मजबूर हो जायेंगे। अपने बॉस के साथ आप बड़ी-बड़ी बिज़नेस मीटिंग्स अटेंड करेंगे। पढ़ाई को लेकर आप काफ़ी संजीदा रहेंगे व अपने दोस्तों के साथ भी ख़ूब आउटिंग करेंगे। पिछले साल जिस इंजीनियरिंग कॉलेज में आपका दाख़िला होते-होते रह गया था, इस साल उसी कॉलेज में आपका एडमिशन होने की सम्भावना है। अपने जीवनसाथी व बच्चों के साथ आप कुछ रोमांचक जगहों पर घूमेंगे। बच्चों के साथ वॉटर व एम्यूज़मेंट पार्क का आनंद उठाना आपको सुखद अनुभव व मानसिक शांति दे सकता है। फ़ेसबुक व व्हाट्सएप पर अपने जिस ख़ास दोस्त से आजकल आप बात कर रहे हैं, मुमकिन है कि वह आपको चाहने लगा हो। इसलिए प्यार के मामले में परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि कुआँ ख़ुद प्यासे के पास चलकर आने वाला है। अंक ज्योतिष 2017 के मुताबिक़ इस दौरान हेल्थ बढ़िया रहेगी। अपनी दिनचर्या से समय निकालकर थोड़ा वर्क-आउट भी करिए क्योंकि आपका बढ़ा हुआ पेट आपकी आकर्षक व्यक्तित्व को सूट नहीं करेगा। 13 मई से 14 जून तक का समय आपके लिए कुछ अच्छे सरप्राइज़ ला सकता है।
मूलांक 6 के लिए उपाय
आपके लिए सफ़ेद व नीला रंग अनुकूल है। इसलिए इन रंगों के कपड़ों को ज़्यादा पहनें।
जेब में सफ़ेद रुमाल रखें।
आपके लिए बुधवार, शुक्रवार व शनिवार शुभ हैं, अगर इन वारों में 6, 15 व 24 तारीख़ें पड़ जाएँ तो लाभदायक रहेंगी।
शुक्रवार का व्रत रखना आपके लिए फ़ायदेमंद है।

आचार्य रणजीत स्वामी 
मंदिर श्री गिरधारी जी 
किरोड़ी तीर्थ स्थल 
जिला झुंझुनू ( राजस्थान )
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मूलांक चार का फलादेश
इस अवधि में आपके ऊपर बुध ग्रह की कृपा रहेगी। आपके दिमाग़ में नए-नए आइडिया आने वाले हैं, जिनसे आप कुछ अलग करके दिखायेंगे। इस साल अपनी क्रिएटिविटी से आप काफ़ी सफलता प्राप्त करेंगे। नौकरी व बिज़नेस में आप कुछ हटकर करने वाले हैं जिससे आपके विरोधियों को भी जलन होगी। आपके ऊपर अपने बॉस की कृपा बनी रहेगी। अंक विज्ञान 2017 कहता है कि आप अपनी बातों के जादू से अपने सहकर्मियों को इम्प्रेस कर देंगे जिससे कई नए लोग भी आपके मुरीद बनेंगे। अगर आप सेल्स, एकाउंट्स, ऑडिट व कम्युनिकेशन से जुड़ा बिज़नेस या नौकरी कर रहे हैं तो दोनों हाथों में लड्डू लेने के लिए तैयार हो जाइए। आप कोई नया बिज़नेस भी शुरू कर सकते हैं जिसमें सफलता मिलेगी। इस साल पढ़ाई में आपका ख़ूब मन लगेगा। मनचाहे विषय मिल सकते हैं व कॉलेज में पढ़ने का मौक़ा मिलेगा। मास कम्युनिकेशन, जर्नलिज़्म से जुड़े छात्र सफलता के झंडे गाड़ सकेंगे। आपकी पारिवारिक ज़िंदगी मज़ेदार चलने वाली है। अपने परिवार को आप पूरा समय दे सकेंगे और उनके साथ सुकून के कुछ पल बिता सकेंगे। आपकी कोई संतान इस साल रिकॉर्ड-तोड़ सफलता प्राप्त कर सकती है। अगर अपनी पर्सनल लाइफ से बोर हो चुके हैं तो चिंता न करें, जल्दी ही किसी अनजान व्यक्ति की घुसपैठ आपकी ज़िंदगी में प्यार के रंग भरने वाली है। इन प्यार के रंगों से आप अपने को सराबोर पायेंगे और लाइफ़ काफ़ी हसीन लगने लगेगी। इस साल आपके दोस्तों की गिनती बढ़ेगी और आप उनके साथ ख़ूब हैंगआउट मारेंगे। इस दौरान आप सेहत को लेकर काफ़ी सचेत रहेंगे व अपनी फ़िटनेस का पूरा ध्यान रखेंगे। साइकिलिंग व मैडिटेशन करना आपकी सेहत में चार चांद लगाएगा। 17 अगस्त से 16 सितम्बर तक का समय जीवन में ख़ुशियों की बहार ला सकता है।
मूलांक 4 के लिए उपाय
आपके लिए बुधवार और शनिवार फ़ायदेमंद रहेंगे। अगर इन वारों में 4, 13, 22 व 31 तारीख़ें पड़ जाएँ तो सफलता निश्चित जानिए।
आपके लिए काला व नीला रंग विशेष शुभ है इसलिए इन रंगों के कपड़ों का ज़्यादा उपयोग करें।
जेब में भूरा, काला या नीला रुमाल रखें।


आचार्य रणजीत स्वामी 
मंदिर श्री गिरधारी जी 
किरोड़ी तीर्थ स्थल 
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मूलांक तीन का फलादेश
यह साल आपके लिए सामान्य रहेगा और आप यूरेनस ग्रह की शरण में रहेंगे। आपके साथ कुछ रहस्यमयी व आकस्मिक घटनाएँ घट सकती हैं। जीवन में अचानक उतार-चढ़ाव आने की सम्भावना है। बिज़नेस करने वाले बंधुओं को काम-धंधे में बड़ी इन्वेस्टमेंट करने से पहले सोच लेना चाहिए। अपने बॉस या ऊँचे अधिकारियों से उलझना आपके लिए घाटे का सौदा साबित होगा। अपने भेद किसी को न बताएँ; कोई घर का भेदी आपकी लंका को ढहा सकता है। इसलिए कार्य स्थल पर तालमेल बना कर चलें। अगर आप नौकरी बदलने की सोच रहे हैं तो 15 दिसंबर से 13 जनवरी का टाइम आपके लिए बेहतर रहेगा। बिज़नेस में आपको साधारण लाभ मिलता रहेगा। पढ़ाई की बजाय मौज-मस्ती में आपका ध्यान ज़्यादा रहने की सम्भावना है। अंक विज्ञान के मुताबिक़ जो लोग स्टडीज़ के लिए विदेश जाने की सोच रहे हैं, उन्हें इस साल के अंत में मौक़ा मिल सकता है। अपने जीवनसाथी के साथ बेकार की बहसबाज़ी से बचना ही आपके लिए बेहतर है वरना दाँत खट्टे होने की पूरी-पूरी सम्भावना है। प्रेमी-जोड़ों को गुपचुप प्यार करने के मौक़े मिलते रहेंगे। अपने पार्टनर से कोई बेहतरीन गिफ़्ट मिलेगा। इस साल स्वास्थ्य वैसे तो ठीक रहेगा, मगर पिज़्ज़ा-बर्गर से बचें वरना पेट की समस्याएँ बिना निमंत्रण के आ धमकेंगी। सुबह की ब्रिस्क वॉक और एरोबिक्स करना आपको फ़िट रखेगा। 14 मार्च से 12 अप्रैल तक का समय आपके लिए सुनहरा अवसर लेकर आएगा।
मूलांक 3 के लिए उपाय
आपके लिए गुरुवार, सोमवार और मंगलवार काफ़ी अनुकूल रहेंगे। अगर गुरुवार को 3, 12, 21 व 30 तारीख़ें पड़ जाएँ तो समझ लीजिए आपकी निकल पड़ी।
आपके लिए पीला, सफ़ेद व लाल रंग शुभ है। इन रंगों के कपड़ों को ज़्यादा-से-ज़्यादा पहनें।
जेब में पीला रुमाल हमेशा रखें।
गुरुवार का व्रत रखें।

आचार्य रणजीत स्वामी 
मंदिर श्री गिरधारी जी 
किरोड़ी तीर्थ स्थल 
जिला झुंझुनू ( राजस्थान )
अभी हरिद्वार में है 
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इसे तीसरी आँख पर ध्यान केन्द्रित करने वाला ध्यान माना जाता है. इसके लिए व्यक्ति को अपनी आपको को बंद करके, अपना सारा ध्यान अपने माथे की भौहो के बीच में लगाना होता है. इस ध्यान को करते वक़्त व्यक्ति को बाहर और अंदर पुर्णतः शांति का अनुभव होने लगता है. इन्हें अपने माथे के बीच में ध्यान केन्द्रित कर अंधकार के बीच में स्थित रोशनी की उस ज्वाला की खोज करनी होती है जो व्यक्ति की आत्मा को परमात्मा तक पहुँचाने का मार्ग दिखाती है. जब आप इस ध्यान को नियमित रूप से करते हो तो ये ज्योति आपके सामने प्रकट होने लगती है, शुरुआत में ये रोशनी अँधेरे में से निकलती है, फिर पीली हो जाती है, फिर सफ़ेद होते हुए नीली हो जाती है और आपको परमात्मा के पास ले आती है।
श्रवण ध्यान
इस ध्यान को सुन कर किया जाता है, ऐसे बहुत ही कम लोग है जो इस ध्यान को करके सिद्धि और मोक्ष के मार्ग पर चलते है. सुनना बहुत ही कठिन होता है क्योकि इसमें व्यक्ति के मन के भटकने की संभावनाएं बहुत ही अधिक होती है. इसमें आपको बाहरी नही बल्कि अपनी आतंरिक आवाजो को सुनना होता है, इस ध्यान की शुरुआत में आपको ये आवाजे बहुत धीमी सुनाई देती है और धीरे धीरे ये नाद में प्रवर्तित हो जाती है. एक दिन आपको ॐ स्वर सुनाई देने लगता है. जिसका आप जाप भी करते हो।
प्राणायाम ध्यान
इस ध्यान को व्यक्ति अपनी श्वास के माध्यम से करता है, जिसमे इन्हें लम्बी और गहरी साँसों को लेना और छोड़ना होता है. साथ ही इन्हें अपने शरीर में आती हुई और जाती हुई साँसों के प्रति सजग और होशपूर्ण भी रहना होता है. प्राणायाम ध्यान बहुत ही सरल ध्यान माना जाता है किन्तु इसके परिणाम बाकी ध्यान के जितने ही महत्व रखते है।
मंत्र ध्यान
इस ध्यान में व्यक्ति को अपनी आँखों को बंद करके ॐ मंत्र का जाप करना होता है और उसी पर ध्यान लगाना होता है. क्योकि हमारे शरीर का एक तत्व आकाश होता है तो व्यक्ति के अंदर ये मंत्र आकाश की भांति प्रसारित होता है और हमारे मन को शुद्ध करता है. जब तक हमारा मन हमे बांधे रखता है तब तक हम इस ध्वनि को बोल तो पाते है किन्तु सुन नही पाते लेकिन जब आपके अंदर से इस ध्वनि की साफ़ प्रतिध्वनि सुनाई देने लगती है तो समझ जाना चाहियें कि आपका मन साफ़ हो चूका है. आप ॐ मंत्र के अलावा सो-ॐ, ॐ नमः शिवाय, राम, यम आदि मंत्र का भी इस्तेमाल कर सकते है।
तंत्र ध्यान
इसमें व्यक्ति को अपने मस्तिष्क को सिमित रख कर, अपने अंदर के आध्यात्म पर ध्यान केन्द्रित करना होता है. इसमें व्यक्ति की एकाग्रता सबसे अहम होती है. इसमें व्यक्ति अपनी आँखों को बंद करके अपने हृदय चक्र से निकलने वाली ध्वनि पर ध्यान लगता है. व्यक्ति इसमें दर्द और सुख दोनों बातो का विश्लेषण करता है।
योग ध्यान
क्योकि योग का मतलब ही जोड़ होता है तो इसे करने का कोई एक तरीका नही होता बल्कि इस ध्यान को इनके करने की विधि के अनुसार कुछ अन्य ध्यानो में बांटा गया है. जो निम्नलिखित है 

चक्र ध्यान 
व्यक्ति के शरीर में 7 चक्र होते है, इस ध्यान को करने का तात्पर्य उन्ही चक्रों पर ध्यान लगाने से है. इन चक्रों को शरीर की उर्जा का केंद्र भी माना जाता है. इसको करने के लिए भी आँखों को बंद करके मंत्रो (लम, राम, यम, हम आदि) का जाप करना होता है. इस ध्यान में ज्यादातर हृदय चक्र पर ध्यान केन्द्रित करना होता है।

दृष्टा ध्यान
इस ध्यान को ठहराव भाव के साथ आँखों को खोल कर किया जाता है. इससे अर्थ ये है कि आप लगातार किसी वास्तु पर दृष्टी रख कर ध्यान करते हो. इस स्थिति में आपकी आँखों के सामने ढेर सारे विचार, तनाव और कल्पनायें आती है. इस ध्यान की मदद से आप बौधिक रूप से अपने वर्तमान को देख और समझ पाते हो।
कुंडलिनी ध्यान
इस ध्यान को सबसे मुश्किल ध्यान में से एक माना जाता है. इसमें व्यक्ति को अपनी कुंडलिनी उर्जा को जगाना होता है, जो मनुष्य की रीढ़ की हड्डी में स्थित होती है. इसको करते वक़्त मनुष्य धीरे धीरे अपने शरीर के सभी आध्यात्मिक केन्द्रों को या दरवाजो को खोलता जाता है और एक दिन मोक्ष को प्राप्त हो जाता है. इस ध्यान को करने के कुछ खतरे भी होते है तो इसे करने के लिए आपको एक उचित गुरु की आवश्यकता होती है।
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