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Horoscope March 21, 2020: Check astrology predictions for Pisces ...

ज्योतिष पंडित श्यामनारायण व्यास
मेष राशिफल / Aries Horoscope Today: आप व्यर्थ के दिखावे एवं आडंबरों से दूर रहें, अन्यथा दिक्कते बढ़ सकती है। निजी जीवन में भी ध्यान दें, संतान के रुखे व्यवहार के कारण मन अप्रसन्न रहेगा। व्यापार में मन नहीं लगेगा।
वृषभ राशिफल / Taurus Horoscope Today: आज का दिन कई अनुभवों से युक्त होगा। परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी। आप की सफलता के कारण आपकी कीर्ति बढ़ेगी। निजी खर्च बढ़ेंगे। समय का दुरुपयोग न करें।
मिथुन राशिफल / Gemini Horoscope Today: आय से अधिक खर्च न करें। दांपत्य जीवन सुखद रहेगा। आप के प्रयासों से व्यवसाय का तनाव समाप्त हो सकेगा। कारोबार में नए प्रस्ताव मन में उत्साह पैदा करेंगे। आज खान-पान में विशेष सावधानी रखें।
कर्क राशिफल / Cancer Horoscope Today: आज व्यापार में अधिक लाभ प्राप्ति के योग हैं। जोखिम भरे कार्य से बचना चाहिए। कार्य व्यवसाय में सफलता मिल सकेगी। आज किसी से मजाक न करें, मुसीबत बन सकता है।
सिंह राशिफल / Leo Horoscope Today: अपनी सोच को बदलें। दुसरों को निचा दिखाने का प्रयास न करें। प्रतियोगी परीक्षा में प्रयत्न करें, सफलता मिलेगी। आय में वृद्धि होगी। पिता से मनमुटाव हो सकता है, क्रोध न करें।
कन्या राशिफल / Virgo Horoscope Today: दिन की शुरुआत से ही कार्य प्रभावित होंगे। आय में वृद्धि होगी, अपनी बुद्धिमानी से आर्थिक स्थिति सुधरेंगे। संतान उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर होगी। जल्दबाजी में कोई काम न करें।
तुला राशिफल / Libra Horoscope Today: आज यश, मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। जीवनसाथी की भावनाओं को समझें। व्यापारिक स्थिति आशाजनक रहेगी। दोस्तों से भेंट, उपहार मिलेगा।
वृश्चिक राशिफल / Scorpio Horoscope Today: मित्रों के सहयोग से निजी समस्या का समाधान होगा। व्यापार में प्रगति के योग हैं। अधिकारों का गलत प्रयोग नहीं करें। आर्थिक निवेश लाभदायक रहेगा।
धनु राशिफल / Sagittarius Horoscope Today: लंबे समय के बाद व्यापार में लाभकारी परिवर्तन हो सकते हैं। मानसिक दृढ़ता से निर्णय लेकर काम करें। समय अनुकूल है। उसका सदुपयोग करें।
मकर राशिफल / Capricorn Horoscope Today: आज धार्मिक आस्था बढ़ेगी। कार्य के प्रति दृढ़ता आपको आज कार्य में अनुकूल सफलता दिलवाने वाली है। नौकरी में तबादला तथा पदोन्नति के योग हैं, विरोध होगा।
कुंभ राशिफल / Aquarius Horoscope Today: जीवनसाथी के व्यवहार में उग्रता रहेगी। व्यव्सायिक नवीन गतिविधियां लाभकारक रहेंगी। बुद्धि चातुर्य से अनेक कार्य सफल होंगे। क्रोध न करें।
मीन राशिफल / Pisces Horoscope Today: आज दिन व्यस्ता पूर्वक रहेगा, जीवनसाथी के व्यवहार में उग्रता रहेगी। व्यव्सायिक नवीन गतिविधियां लाभकारक रहेंगी। संतान सुख संभव है।
ऐस्ट्रो  धर्म : 


शनिश्चरी अमावस्‍या, सूर्यदेव और देवी छाया के पुत्र भगवान शनि के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस उत्सव को शनि जयंती भी कहा जाता है। श्री शनि, शनि ग्रह को नियंत्रित करते हैं, और इनकी मुख्यतया शनिवार के दिन पूजा व अर्चना की जाती है। श्री शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है।
श्री हनुमान जी ने रावण की कैद से शनिदेव को मुक्त कराया था, इसलिए शनिदेव के कथनानुसार, जो भी भक्त श्री हनुमंत लाल की पूजा करते हैं, वे भक्त शनि देव के अति प्रिय और कृपा पात्र होते हैं। अतः शनिदेव के साथ-साथ हनुमान जी की पूजा का भी विधान माना गया है।
श्री शनिदेव के नाम
शनि देव को कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, रौद्रान्तक, यम, सौरि, शनैश्चर, मंद, पिप्पलाश्रय नाम से भी जाना जाता है।
मंत्र : ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।, ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।
अमावस्या मुहूर्त...
मई 21, 2020 को 21:38:10 से अमावस्या आरम्भ
मई 22, 2020 को 23:10:10 पर अमावस्या समाप्त
वहीं इसे ज्येष्ठ अमावस्या भी कहते हैं, इसी दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है, अतः इस कारण से ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन शनि देव के पूजन का विशेष विधान है।
सूर्य पुत्र शनि देव हिन्दू ज्योतिष में नवग्रहों में से एक हैं। मंदगति से चलने की वजह से इन्हीं शनैश्चर भी कहा जाता है। शनि जयंती के साथ-साथ उत्तर भारत में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिये इस दिन वट सावित्री व्रत भी रखती हैं।
ज्येष्ठ अमावस्या/शनिश्चरी अमावस्या व्रत और धार्मिक कर्म...
ज्येष्ठ अमावस्या पर दान,धर्म, पिंडदान के साथ-साथ शनि देव का पूजन और वट सावित्री व्रत भी रखा जाता है। इस दिन होने वाले धार्मिक कर्मकांड इस प्रकार हैं-
: इस दिन नदी, जलाशय या कुंड आदि में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देकर बहते जल में तिल प्रवाहित करना चाहिये।
: पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करें और किसी गरीब व्यक्ति को दान-दक्षिणा दें।
: शनि देव को कड़वा तेल, काले तिल, काले कपड़े और नीले पुष्प चढ़ाएं। शनि चालीसा का जाप करें।
: वट सावित्री का व्रत रखने वाली महिलाओं को इस दिन यम देवता की पूजा करनी चाहिए और यथाशक्ति दान-दक्षिणा देना चाहिए।
ऐसे करें व्रत और पूजन
शनिवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद एक साफ स्थान पर बैठें। आप चाहें तो मंदिर जाकर भी शनिदेव की पूजा कर सकते हैं। कई जगहों पर मान्यता है कि शनिदेव की मूर्ति घर में नहीं रखते हैं इसलिए मन ही मन शनिदेव का ध्यान करें। शनिदेव की पूजा के लिए सरसों तेल का दीया जलाएं और शनिदेव को नीले फूल अर्पित करें।
इस चमत्कारी मंत्र का जप है लाभकारी
रुद्राक्ष की माला से शनिदेव के मंत्रों का जप करें। बेहतर होगा कि आप 5 माला जप करें। शनि देव का बीज मंत्र- ओम प्रां प्रीं प्रौं शः शनैश्चराय नमः’ आप चाहें तो शनि पत्नी मंत्र और तांत्रिक मंत्र से भी जप कर सकते हैं।
पितरों को करें प्रसन्‍न
दशरथ कृत शनि स्तोत्र का 11 बार पाठ करना उत्तम रहेगा। इस अवसर पर पितरों को भी प्रसन्न करके आप जीवन में आ रही बाधाओं से मुक्ति पा सकते हैं। इसके लिए पीपल की पूजा करके पीपल के पत्तों पर 5 प्रकार की मिठाइयों को रखकर पितरों का ध्यान पूजन करें। पितरों को अर्पित किया गया प्रसाद घर नहीं लाएं, पूजन स्थल पर मौजूद लोगों में प्रसाद वितरण कर दें।
इन वस्‍तुओं का करें दान
शनि अमावस्या के दिन काले उड़द काले जूते, काले वस्‍त्र, तेल का दान और शनि महाराज की पूजा और दीपदान करना बहुत ही शुभ फलदायी कहा गया है। इससे शनि महाराज अपनी महादशा, अन्तर्दशा और गोचर के दौरान अधिक नहीं सताते हैं और परेशानियों का सामना करने की क्षमता भी देते हैं।
ये उपाय भी हैं काम के...
- इस दिन सुरमा, काले तिल, सौंफ आदि वस्‍तुओं से मिले जल से स्‍नान करने से ग्रहदशा दूर होती है।
- शनि अमावस्‍या के दिन शाम के वक्‍त पीपल के वृक्ष के चारों ओर 7 बार कच्‍चा सूत लपेटें। मन ही मन शनि मंत्र का जप करते रहें।
- यदि आपके ऊपर शनि की दशा चल रही है तो शनि अमावस्‍या के दिन काले घोड़े की नाल या नाव की सजह की कील का छल्‍ला बनाकर मध्‍यमा उंगली में धारण करें।
- शाम के वक्‍त पीपल के वृक्ष के नीचे तिल के तेल या फिर सरसों के तेल का दीपक जलाकर न्‍याय के देवता शनिदेव से क्षमा प्रार्थना करें।
भूलकर भी न करें इस दिन ये गलतियां...
: ऐसे भोजन से करें परहेज :
शनिश्‍चरी अमावस्‍या के दिन तामसिक भोजन जैसे मांस-मदिरा के सेवस से परहेज करना चाहिए और सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। वैसे तो मांस-मदिरा का सेवन कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि जीव-हत्या पापा है। इससे ना सिर्फ आपको पाप लगता है बल्कि आपका मन भी अशुद्ध होता है।
: ऐसे लोगों को न करें परेशान
शनिश्‍चरी अमावस्‍या के दिन कभी भी गरीब व असहाय लोगों को परेशान नहीं करना चाहिए। शनिदेव की कृपा पाने के लिए इसे अपनी आदत में जरूर बना लें। शनिदेव गरीबों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जो गरीबों का अपमान करता है, उस पर शनिदेव की कभी कृपा नहीं रहती है।
: इन चीजों को घर ना लाएं
इस दिन भूलकर भी अपने घर पर लोहा और लोहे से बनी चीजें, नमक, काली उड़द दाल, काले रंग के जूते और तेल घर में नहीं लाना चाहिए। बताया जाता है इनको घर में लाने से दरिद्रता आती है। साथ ही इस दिन पढ़ाई-लिखाई से जुड़ी चीजें भी नहीं खरीदना चाहिए।
: पति-पत्नी ध्यान रखें यह बात
शनिश्‍चरी अमावस्‍या पर स्त्री और पुरुष दोनों को यौन संबंध बनाने से बचना चाहिए। गरुण पुराण के अनुसार, अमावस्या पर यौन संबंध बनाने से पैदा होने वाली संतान को जीवन में कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। इस समय शरीर, बुद्धि तथा मन में समांजस्य बनाए रखना चाहिए।
: इन चीजों को ना खरीदें
शनिवार के दिन भूलकर भी कैंची नहीं खरीदनी चाहिए। इस दिन खरीदी गई कैंची रिश्तों में तनाव लाती है। अगर आपको कैंची खरीदनी है तो शनिवार के अलावा किसी और भी दिन आप खरीद सकते हैं। इस दिन काली मिर्च और काले तिल भी खरीदना अशुभ माना गया है।
: ऐसी जगहों पर जाने से बचें
अमावस्या की रात किसी भी तरह की सुनसान जगह जैसे श्मशान घाट या कब्रिस्तान जाने या उसके आस-पास घूमना से बचना चाहिए। अमावस्या की रात नकारात्मक शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं। अमावस्या की रात ऐसी जगहों पर कई तरह की बुरी शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं।
: सुबह देर तक न सोएं
अमावस्या की सुबह देर तक भूलकर भी नहीं सोना चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठें और काले तिल डालकर स्नान करें। इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पित करके पूजा-पाठ करना चाहिए।
: घर में ना करें ये कार्य
शनिश्‍चरी अमावस्‍या के दिन किसी भी तरह के वाद-विवाद से बचना चाहिए। घर में अशांति का वातावरण हमेशा नकारात्मक शक्ति को जन्म देता है। घर में वाद-विवाद होने से पितरों की कृपा नहीं मिलती है। इस दिन स्नान, दान से मोक्ष फल की प्राप्ति होती है।
ज्येष्ठ अमावस्या और शनि जयंती का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि देव का जन्म हुआ था, इसलिए ज्येष्ठ अमावस्या का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। वैदिक ज्योतिष में शनि देव सेवा और कर्म के कारक हैं, अतः इस दिन उनकी कृपा पाने के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। शनि देव न्याय के देवता हैं उन्हें दण्डाधिकारी और कलियुग का न्यायाधीश कहा गया है। शनि शत्रु नहीं बल्कि संसार के सभी जीवों को उनके कर्मों का फल प्रदान करते हैं।
शनि जन्म कथा
शनि देव के जन्म से संबंधित एक पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है। इस कथा के अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ था और उन्हें मनु, यम और यमुना के रूप में तीन संतानों की प्राप्ति हुई। विवाह के बाद कुछ वर्षों तक संज्ञा सूर्य देव के साथ रहीं लेकिन अधिक समय तक सूर्य देव के तेज को सहन नहीं कर पाईं।
इसलिए उन्होंने अपनी छाया को सूर्य देव की सेवा में छोड़ दिया और कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। हालांकि सूर्य देव को जब यह पता चला कि छाया असल में संज्ञा नहीं है तो वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने शनि देव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद से ही शनि और सूर्य पिता-पुत्र होने के बावजूद एक-दूसरे के प्रति बैर भाव रखने लगे।


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सूर्यदेव को पुत्र शनिदेव को न्याय का देवता भी माना जाता है। सप्ताह के दिनों में इनका दिन शनिवार माना गया है। वहीं इनका रंग काला व रत्न नीलम माना गया है। शनिवार का दिन विशेष रूप से शनिदेव का दिन माना जाता है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार शनि का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों से पड़ सकता है। शानि के नकारात्मक प्रभाव काफी हानिकारक होते हैं जो व्यक्ति के जीवन को पूरी तरह से तहस नहस कर सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति पर शनि की साढ़ेसाती या शनि की ढैय्या चल रही हो तो ऐसे में व्यक्ति शनिवार के दिन कुछ विशेष उपाय करके शनि ग्रह के हानिकारक प्रभावों से खुद को बचा सकता है।
शनिवार के कुछ ऐसे उपाय भी हैं, जिन्हें करने से शनि के काफी हानिकारक प्रभावों से छुटकारा मिलता सकता है। साथ ही माना जाता है कि इन्हें आजमाने से आपका दुर्भाग्य भी सौभाग्य में तब्दील हो सकता है।
इन ख़ास उपायों को करने से मिलता है मनवांछित फल...
: वैदिक ज्योतिष के अनुसार जिनके जीवन पर शनिदेव की कृपा होती है उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में लाभ मिलता है। वहीं दूसरी तरफ यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि अपने हानिकारक प्रभाव डालता है तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति को जीवन में बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
ऐसी मान्यता है कि शनि हर इंसान को उसके कर्मों के अनुसार ही फल देता है। हालाँकि शनिदेव को प्रसन्न कर और शनिवार के दिन कुछ विशेष उपायों को करने से जीवन में आने वाली विभिन्न परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है।
: माना जाता है कि शनि ग्रह के अच्छे फल प्राप्त करने के लिए और बुद्धि एवं ज्ञान में वृद्धि के लिए यदि शनिवार को रात के समय अनार की कलम से किसी भोजपत्र पर चंदन से “ऊं हृीं” लिखकर पूजा अर्चना की जाए तो ये विद्यार्थियों के लिए लाभप्रद साबित होता है।
: जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए यदि शनिवार के दिन चीटियों के आगे काला तिल, आटा और शक्कर मिलाकर रखा जाए तो इससे शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
: शनिदेव के हानिकारक प्रभावों से बचने के लिए, शनिवार को काली गाय को रोटी खिलाना, चिड़िया के आगे दाने डालना और काले कुत्ते को रोटी खिलाने से विशेष लाभ मिलता है।
: माना जाता है कि शनिवार के दिन यदि किसी जरुरतमंद को तेल से बना भोज्य पदार्थ खिलाया जाय तो इससे भी शनिदेव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
: वहीं जीवन पर पड़ने वाली शनि की बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए शनिवार के दिन काले घोड़े की नाल या नाव की कील से बनी अंगूठी धारण करना विशेष फलदायी होता है।
: पंडित शर्मा का कहना है कि यदि आपके मन में कई दिनों से कोई ख़ास कामना है जिसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है तो, इसके लिए शनिवार के दिन यदि आप शाम के वक़्त अपनी लम्बाई के अनुसार रेशमी लाल धागा लेते हैं और उसे पानी से अच्छी तरह से धोकर आम के पत्ते से लपेटने के बाद अपनी कामना का ध्यान करते हुए नदी में प्रवाहित करते हैं तो आपकी कामना पूरी हो सकती है।
: वे लोग जिनकी शनि की साढ़ेसाती या शनि की ढैय्या चल रही हो उन्हें हर शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए और उसके चारों तरफ सात बार परिक्रमा कर “ऊं शं शनैश्चराय नम:” मंत्र का जाप करना चाहिए इससे मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
: शनि के हानिकारक प्रकोप से बचने के लिए शनिवार के दिन यदि विशेष रूप से हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए तो इससे भी अच्छा फल प्राप्त होता है।
: इसके अलावा यदि आप आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं तो शनिवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे चार मुख वाला दिया जलाएं। ऐसा करने से आर्थिक तंगी से निजात मिलती है और घर में सुख शांति का वास होता है।
: शनिवार के दिन गरीबों को यदि काला चना, काली उड़द दाल और काले कपड़े दान किए जाएं तो इससे शनि के हानिकारक प्रभावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
:शनिवार के दिन यदि आप किसी विशेष काम के लिए जा रहे हों तो, उसमें सफलता प्राप्त करने के लिए काले कपड़े पहन कर जाना शुभ फलदायी होता है।
: शनि की साढ़ेसाती या शनि की ढैय्या से मुक्ति पाने के लिए नियमित रूप से प्रत्येक शनिवार के दिन नीले रंग के फूल से शनिदेव की पूजा अर्चना करें और “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मन्त्र का करीबन 108 बार जाप करें।
: शनिवार के दिन यदि तांबे के बर्तन में जल और तिल डालकर उसे शिवजी को अर्पित किया जाए तो इससे व्यक्ति के सभी रोगों का अंत होता है।
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ज्योतिष अर्थात ज्योति-विज्ञानं छह शास्त्रों में से एक है, इसे वेदों का नेत्र कहा गया है… ऐसी मान्यता है की वेदों का सही ज्ञान प्राप्त करने के लिए ज्योतिष में पारंगत होना आवश्यक है… महाप्रतापी त्रिलोकपति रावण जिसे चारो वेद कंठस्थ थे, ज्योतिष का सिद्ध ज्ञाता था.. उसने रावण संहिता जैसा ग्रंथ रचा था जिसके बल पर उसने शनी और यमराज तक को अपना दास बना लिया था… ज्योतिष ज्ञान से ही नारद त्रिकालज्ञ हुए.. भगवान कृष्ण, भीष्म पितामह, कर्ण आदि महान योद्धा भी ज्योतिष के अच्छे जानकर थे..
ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु ने भृगु-संहिता का प्रणयन किया. छठी शताब्दी में वरामिहिर ने वृहज्जातक, वृहत्सन्हिता और पंचसिद्धांतिका लिखी. सातवी सदी में आर्यभट ने ‘आर्यभटीय’ की रचना की जो खगोल और गणित की जानकारियाँ है… ऋषि पराशर रचित होरा शास्त्र ज्योतिष का सिद्ध ग्रन्थ है… नील कंठी वर्षफल देखने का एक अच्छा ग्रन्थ है… मुहूर्त देखने के लिए मुहूर्त चिंतामणि एक अच्छा ग्रन्थ है…भाव प्रकाश, मानसागरी, फलदीपिका, लघुजातकम, प्रश्नमार्ग भी बहुप्रचलित ग्रन्थ है… बाल बोध ज्योतिष, लाल किताब, सुनहरी किताब, काली किताब और अर्थ मार्तंड अच्छी पुस्तकें है… कीरो व बेन्ह्म जैसे अंग्रेज ज्योतिषियों ने भी हस्तरेखा ज्योतिष पर भी किताबें लिखी… नस्त्रेदाम्स की भविष्यवाणी विश्व प्रसिद्ध है…
पंचांग का ज्ञान——-
पंचांग दिन को नामंकित करने की एक प्रणाली है। पंचांग के चक्र को खगोलीय तत्वों से जोड़ा जाता है। बारह मास का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। गणना के आधार पर हिन्दू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है। एक साल में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं।
पंचांग भारतवर्ष की ज्योतिष विधा का प्रमुख दर्पण है । जिससे समय की विभिन्न इकाईयों ज्ञान प्राप्त किया जाता है :- संवत्,महीना,पक्ष,तिथि,दिन आदि का विधाओ को जानने पंचांग एक मात्र साधन है । धार्मिक व सभी प्रकार शादी, मुण्डन,भवन निर्माण आदि तिथियों के समय पर अनुष्ठान का ज्ञान पंचांग द्वारा लगाया सकता है । काल रूपी ईश्वर के विशेष अगंभूत पंचांग है :- तिथि,नक्षत्र,योग,दिन के ज्ञान को सादर प्रणाम किया जाता है । आज इतना दैनिक में विशेष प्रचलित राशि फल ,ग्रह परिवर्तन, त्यौहार व व्रत आदि इसी पंचांग से देखा जाता है । प्राचीन काल में पंचांग के विशेष पांच अग है :- वार, तिथि, नक्षत्र, योग, करण थे । दिन-रात, सूर्य का अस्त-उदय, धडी पल और भारतीय समय का ज्ञान ,मौसम परिवर्तन भी इसीसे देखा जाता है
पंचांग के मुख्यत: तीन सिद्धान्त प्रयोग में लाये जाते हैं—-
सूर्य सिद्धान्त – अपनी विशुद्धता के कारण सारे भारत में प्रयोग में लाया जाता है।
आर्य सिद्धान्त – त्रावणकोर, मलावार, कर्नाटक में माध्वों द्वारा, मद्रास के तमिल जनपदों में प्रयोग किया जाता है, एवं ब्राह्मसिद्धान्त – गुजरात एवं राजस्थान में प्रयोग किया जाता है।
—विशेष—-
—-ब्राह्मसिद्धान्त सिद्धान्त अब सूर्य सिद्धान्त सिद्धान्त के पक्ष में समाप्त होता जा रहा है। सिद्धान्तों में महायुग से गणनाएँ की जाती हैं, जो इतनी क्लिष्ट हैं कि उनके आधार पर सीधे ढंग से पंचांग बनाना कठिन है। अतः सिद्धान्तों पर आधारित ‘करण’ नामक ग्रन्थों के आधार पर पंचांग निर्मित किए जाते हैं, जैसे – बंगाल में मकरन्द, गणेश का ग्रहलाघव। ग्रहलाघव की तालिकाएँ दक्षिण, मध्य भारत तथा भारत के कुछ भागों में ही प्रयोग में लायी जाती हैं।
सिद्धान्तों में अन्तर के दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व महत्त्वपूर्ण हैं —–
वर्ष विस्तार के विषय में। वर्षमान का अन्तर केवल कुछ विपलों का है, और कल्प या महायुग या युग में चन्द्र एवं ग्रहों की चक्र-गतियों की संख्या के विषय में। यह केवल भारत में ही पाया गया है। आजकल का यूरोपीय पंचांग भी असन्तोषजनक है।
— ज्योतिष शास्त्र के महत्वपूर्ण भाग—-
१. पंचांग अध्ययन
२. कुंडली अध्ययन
३. वर्षफल अध्ययन
४. फलित ज्योतिष
५. प्रश्न ज्योतिष
६. हस्त रेखा ज्ञान
७. टैरो कार्ड ज्ञान
८. सामुद्रिक शास्त्र ज्ञान
९. अंक ज्योतिष
१०. फेंगशुई
११. तन्त्र मन्त्र यंत्र ज्योतिष आदि
पंचांग–
ज्योतिष सिखने के लिए पंचांग का ज्ञान होना परम आवश्यक है—- पंचांग अर्थात जिसके पाँच अंग है – तिथि, नक्षत्र, करण, योग, वार, इन पाँच अंगो के माध्यम से गृहों की चाल की गणित दर्शायी जाती है…
सौर मण्डल : —-
सौर मण्डल वह मंडल जिसमे हमारे सभी ग्रह सूर्य के एक निश्चित मार्ग पर पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर सूर्य के गिर्द परिक्रमा करते रहते है ज्योतिस शास्त्र के अनुसार सौर परिवार बुध, शुक्र, पृथ्वी,चन्द्र ,मगंल, बृहस्पति ,शनियूरेनस, नेप्चून,प्लूटो |
बुध सबसे छोटा ग्रह और सूर्य के सबसे ज्यादा नजदीक है । सभी ग्रह स्वंय प्रकशित नही होते व सूर्य से प्रकाश लेकर अपनी कक्षा में सूर्य के गिर्द च्रक लगाते है । सूर्य से हमे प्रकाश,शक्ति, गर्मी,और जीवन मिलता है इस प्रकाश को पृथ्वी पर पहुँचने में साढ़े आठ मिनट लगभग है ।
पृथ्वी को सूर्य के गिर्द घूमते लगभग सवा 365 दिन लगते है तब एक चक्कर पूरा होता है । बुध को 88 दिन में चककर लगाता है । शुक्र 225 दिनों में, मंगल 687 दिनों में, बृहस्पति लगभग पौने बारह वर्षो में, शनि साढ़े 29 वर्षो में, यूरेनस 84 वर्षो में, नेपचून 165 वर्षो में, प्लूटो 248 वर्षो एवं 5 मासो में सूर्य के गिर्द परिक्रमा पूरा करता है । सभी ग्रह अपने पथ पर क्रान्तिवृत से 7-8 दक्षिणोत्तर होकर सूर्य की परिक्रमा कर रहे है|
उपग्रह हमेशा अपने ग्रहो के गिर्द घूमते है । पृथ्वी हमेशा सूर्य के गिर्द घूमती है । इस लिए आकाश गतिशील स्थिति में रहता है । यह गति लगभग 30 किलोमीटर प्रति सेकेन्ड है ।
काल विभाजन—–
सूर्य के किसी स्थिर बिंदु (नक्षत्र) के सापेक्ष पृथ्वी की परिक्रमा के काल को सौर वर्ष कहते हैं। यह स्थिर बिंदु मेषादि है। ईसा के पाँचवे शतक के आसन्न तक यह बिंदु कांतिवृत्त तथा विषुवत्‌ के संपात में था। अब यह उस स्थान से लगभग 23 पश्चिम हट गया है, जिसे अयनांश कहते हैं। अयनगति विभिन्न ग्रंथों में एक सी नहीं है। यह लगभग प्रति वर्ष 1 कला मानी गई है। वर्तमान सूक्ष्म अयनगति 50.2 विकला है। सिद्धांतग्रथों का वर्षमान 365 दिo 15 घo 31 पo 31 विo 24 प्रति विo है। यह वास्तव मान से 8। 34। 37 पलादि अधिक है। इतने समय में सूर्य की गति 8.27″ होती है। इस प्रकार हमारे वर्षमान के कारण ही अयनगति की अधिक कल्पना है। वर्षों की गणना के लिये सौर वर्ष का प्रयोग किया जाता है। मासगणना के लिये चांद्र मासों का। सूर्य और चंद्रमा जब राश्यादि में समान होते हैं तब वह अमांतकाल तथा जब 6 राशि के अंतर पर होते हैं तब वह पूर्णिमांतकाल कहलाता है। एक अमांत से दूसरे अमांत तक एक चांद्र मास होता है, किंतु शर्त यह है कि उस समय में सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में अवश्य आ जाय। जिस चांद्र मास में सूर्य की संक्रांति नहीं पड़ती वह अधिमास कहलाता है। ऐसे वर्ष में 12 के स्थान पर 13 मास हो जाते हैं। इसी प्रकार यदि किसी चांद्र मास में दो संक्रांतियाँ पड़ जायँ तो एक मास का क्षय हो जाएगा। इस प्रकार मापों के चांद्र रहने पर भी यह प्रणाली सौर प्रणाली से संबद्ध है। चांद्र दिन की इकाई को तिथि कहते हैं। यह सूर्य और चंद्र के अंतर के 12वें भाग के बराबर होती है। हमारे धार्मिक दिन तिथियों से संबद्ध है1 चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है उसे चांद्र नक्षत्र कहते हैं। अति प्राचीन काल में वार के स्थान पर चांद्र नक्षत्रों का प्रयोग होता था। काल के बड़े मानों को व्यक्त करने के लिये युग प्रणाली अपनाई जाती है। वह इस प्रकार है:
कृतयुग (सत्ययुग) 17,28,000 वर्ष
द्वापर 12,96,000 वर्ष
त्रेता 8, 64,000 वर्ष
कलि 4,32,000 वर्ष
योग महायुग 43,20,000 वर्ष
कल्प 1000 महायुग 4,32,00,00,000 वर्ष
सूर्यसिद्धांत में बताए आँकड़ों के अनुसार कलियुग का आरंभ 17 फ़रवरी 3102 ईo पूo को हुआ था। युग से अहर्गण (दिनसमूहों) की गणना प्रणाली, जूलियन डे नंबर के दिनों के समान, भूत और भविष्य की सभी तिथियों की गणना में सहायक हो सकती है।
समय की निशिचत आधार होता है । सयम का आधार सूर्य ही है । यह समय ही सूर्य के वश चक्रवत परिवतिर्त होता है । मनुष्य के सुख-दुःख, और जीवन -मरण काल पर आधरित होता है और उसी में लीन हो जाता है । भच्रक में भ्रमण करते हुए सूर्य के एक च्रक को एक वर्ष की संज्ञा दी जाती है । समय का विभाजन धण्टे,मिनट और सेंकिड है ज्योतिष विज्ञानं के रूप अहोरात्र,दिन,घड़ी,पल,विपल आदि है । हिन्दुओं में समय का बटवारा एक विशेष प्रणाली से होता है । यह ततपर से आरम्भ और कल्प पर समाप्त होता है । एक कल्प 4,32,0 000,000 सम्पात वर्षों के बराबर होता है । हिन्दुओं में एक दिन सूर्य उदय से अगले सूर्य उदय पर समाप्त होता है ।
१ पलक छपकना – 1 निमेष
३ निमेष – १ क्षण
५ क्षण – १ काष्ठ
१५ काष्ठा – १ लधु
१५ लधु – १ घटी (24 मिनट )
२ -१/२ घटी – १ घंटा
६० घटी – २४ घण्टे
२ घटी = १ मुहूर्त
३० मुहूर्त = 1 दिन-रात यानि अहोरात
१ याम = एक दिन का चौथा हिस्सा ( 1 प्रहर )
8 प्रहर = 1 दिन -रात
7 दिन -रात = 1 सप्ताह
4 सप्ताह = 1 महीना
12 मास = 1 वर्ष (365 -366 दिनो)
घण्टो- मिनटों को हिन्दुओ धर्मशास्त्र के अनुसार पलों में परिवर्तन करना और उन नियम अनुसार देखना :-
1 मिनट – 2 -1/2 पल
4 मिनट – 10 पल
12 मिनट- 30 पळ
24 मिनट – 1 घटी
60 मिनट – 60 घटी यानि 1 घण्टा
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समय :-
60 विकला = 1 कला
60 कला = 1 अंश
30 अंश = 1 राशि
12 राशि = मगण
सूर्योदय से सूर्यास्त तक = एक दिन या दिनमान
सूर्यास्त अगले दिन सूर्योदय = रात्रिमान
उषाकाल = सूर्याद्य से 8 घटी पहले
प्रात:काल = सूर्यादय से 3 घटी तक
संध्याकाल =सूर्यास्त से 3 घटी तक
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आचार्य रणजीत स्वामी  
आज के भौतिक युग में एक फैशन सा हो गया है कि लोग उन्हे जाने, पहचाने, मान दे, सम्मान दें अर्थात् हर व्यक्ति चाहता है एक यथोचित प्रसिद्धि।
लोगों मे योग्यता भी होती है, अवसर भी मिलते हैं, प्रयास भी किए जाते हैं परन्तु सबके बावजू़द सफलता नही मिल पाती या कम मिलती है इस कारण कभी-कभी लोग निराश भी हो जाते हैं, कि पूरी मेहनत के बाद भी यथोचित उपलब्धि क्यों नही मिल पा रही है, इन अड़चनो को और मार्ग की बाधाओं को सरल बनाता है घर में वास्तु के अनुसार थोड़ा-बहुत हेर-फेर ।
यदि कोई व्यक्ति भारतीय वास्तुशास्त्र के नीचे लिखे नियमों का पालन अपने निवास स्थान, व्यवसाय स्थल या आफीस मे करे तो वह अपने जीवन मे यथोचित प्रसिद्धि पा सकता है—-
1 निवास एवं व्यवसाय स्थल की उत्तर, पूर्व एवं ईशान दिशा का दबी, कटी एवं गोल होना काफी अशुभ होता है जबकि इसका बड़ा होना बहुत शुभ होता है। अतः यदि दबी, कटी या गोल हो तो इन्हे ठीक करवाकर समकोण करना चाहिये।

2 भवन के उत्तर, पूर्व एवं ईशान में भुमिगत पानी की टंकी, कुआ या बोर होना बहुत शुभ होता है। इससे आर्थिक सम्पन्नता के साथ-साथ प्रसिद्धि भी मिलती है।
उपरोक्त दिशाओं के अलावा अन्य किसी भी दिशा में होना अशुभ होता है। भवन के मध्य मे तो किसी भी प्रकार का गढ्ढा, कुआ, बोरींग इत्यादि होने से गृहस्वामी पर भयंकर आर्थिक संकट एवं अपयश मिलता है। अतः इसको जितना जल्दी हो सके भर देना चाहिये।

3 यदि आप ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में बेडरूम बनाएंगे तो इस कमरे में सोने वाला कम से कम आठ-दस घंटे तो यहां बिताएगा ही।
4 किसी भी व्यक्ति के लिए ऊर्जा से परिपूर्ण इस क्षेत्र में इतने लंबे समय तक रहने का मतलब है खुद का नुकसान। क्योंकि इस जगह पर किसी को भी इतनी देर नहीं रहना चाहिए।

5 यदि आपने यह कमरा अपने बेटे को दिया है तो संभव है उस पर मोटापा हावी हो जाए। जिसके परिणामस्वरूप वह सुस्त और ढीला हो जाएगा। इससे उसमें हीन भावना आ जाएगी।।   
6 अगर बेटी को यह कमरा दिया गया है तो वह चिड़चिड़े स्वभाव की और झगड़ालू हो जाएगी। इतना ही नहीं, उसे कम उम्र में ही स्त्री रोगों से जुड़ी समस्याएं भी झेलना पड़ सकती हैं।

7 किसी दंपत्ति का बेडरूम बनाने के लिए ईशान कोण अशुभ फलदायी जगह है। किसी नव विवाहित दंपत्ति को तो भूलकर भी ईशान कोण में अपना बेडरूम नहीं बनाना चाहिए।
8 नवविवाहिता अगर ईशान कोण पर बने बेडरूम में रहती है तो यह निश्चित है कि या तो वह गर्भधारण ही नहीं कर पाएगी या उसे बार-बार गर्भपात का शिकार होना पड़ेगा।
9 ईशान कोण पर बने बेडरूम में सोने वाले दंपतियों को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और आध्यात्मिक तरह की कठिनाइयां झेलना पड़ सकती हैं।।             
10 आवासीय भवन में ड्रांइग रूम के लिए पूर्व , उत्तर एंव ईशान कोण का क्षेत्र उचित है। ईशान कोण में अधिक से अधिक स्थान खाली रखें। अन्यथा पूर्व और उत्तर दिशा के क्षेत्र को खाली या हल्के रखें। उत्तर एंव पूर्व दिशा की सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि के लिए इन दिशाओं में बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ अथवा स्लाइडिंग दरवाजों का प्रावधान रखें।
11 निवास एवं व्यवसाय स्थल का उत्तर, ईशान व पूर्व का भाग दक्षिण, नैऋत्य व पश्चिम के मुकाबले नीचा होना चाहिये।
12 निवास एवं व्यवसाय स्थल के मुख्य द्वार के सामने द्वार वैध नही होना चाहिये जैसे बिजली का खम्बा, स्तम्भ, वृक्ष, खुली नाली या कोई सामने के भवन का धारदार कोना इत्यादि।
13 व्यक्ति को अफीस या घर मे कही पर भी लटकती बीम या दुछत्ती के नीचे बैठना या लेटना नहीं चाहिये।
14 ईशान कोण मे टायलेट होने से पैसा बर्बाद होता है स्वास्थ्य खराब होता है और अपयश मिलता है।
15 ईशान क्षेत्र में कभी भी बच्चों का बेडरूम न बनाएं। अगर आप ने यहां पूजा घर नहीं बनाया है तो यहां बच्चों के लिए स्टडी रूम बना सकत
16 अगर ईशान ऊँचा हो तो धन हानि,संतान हानि एवम् अनेक परेशानिया हो सकती है।
17 यदि ईशान में रसोई हो तो गृह कलह व् धन हानि होती है
18 पूर्वी दिशा का क्षेत्रफल घट कर पूर्वी  सीमा  पर भवन निर्माण हो तो गृहस्वामी की तीसरी पीढ़ी में वंश ही खत्म हो जाता है।
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वास्तु और फेंगशुई पूरी तरह से सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के सिद्धांतों पर ही काम करता है। घर में सकारात्मक वातावरण और सकारात्मक वस्तुएं रहेंगी, तो निश्चित ही हमें कार्यों में भी सफलता प्राप्त होगी और धन संबंधी परेशानियों से मुक्ति मिलेगी। वास्तु के अनुसार 8 दिशाएं बताई गई हैं। इन आठों दिशाओं का अलग-अलग महत्व है और हर दिशा के लिए अलग-अलग नियम हैं।यदि घर में किसी दिशा में कोई गलत वस्तु रखी है, तो इसका बुरा असर वहां रहने वाले सभी सदस्यों पर पड़ता है। जानिए, घर की किस दिशा में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए…
 उत्तर-पूर्व दिशा                 (ईशान कोण)
यह दिशा दैवीय शक्तियों के लिए श्रेष्ठ होती है। इस दिशा का प्रतिनिधित्व स्वयं दैवीय शक्तियां ही करती हैं। इसलिए यहां मंदिर होना बहुत शुभ रहता है। इस स्थान पर हमेशा साफ-सफाई रहनी चाहिए। इस स्थान पर मंदिर के साथ ही पानी से संबंधित उपकरण भी रखे जा सकते हैं। यदि कोई स्त्री अविवाहित है, तो उसे इस कोने में सोना नहीं चाहिए। इस कोने में कोई अविवाहित स्त्री सोती है तो उसके विवाह में विलंब हो सकता है या स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। घर के इस कोने में बाथरूम और टॉयलेट नहीं होना चाहिए। साथ ही, यहां भारी वस्तुएं भी नहीं रखें।


दक्षिण-पूर्व दिशा।            (आग्नेय कोण)

इस कोण का प्रतिनिधित्व अग्नि करती है। इसलिए इस दिशा में विशेष ऊर्जा रहती है। इस स्थान पर रसोईघर होना सबसे अच्छा रहता है। यहां विद्युत उपकरण भी रखे जा सकते हैं। अग्नि स्थान होने के कारण यहां पानी से संबंधित चीजें नहीं रखनी चाहिए। आग्नेय कोण में खाना भी नहीं खाना चाहिए, यानी इस स्थान पर डायनिंग हॉल अशुभ होता है।
दक्षिण-पश्चिम दिशा          (नैऋत्य कोण)
इस स्थान का प्रतिनिधित्व पृथ्वी तत्व करता है। इसीलिए यहां प्लांट रखना बहुत शुभ होता है। पौधों में यह शक्ति होती है कि वे हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण कर सकते हैं। इस स्थान पर पौधे रखेंगे, तो आपके घर की पवित्रता और सकारात्मकता बनी रहती है।
यहां मुख्य बेडरूम भी शुभ फल देता है। इसके अलावा, यहां स्टोर रूम भी बनाया जा सकता है। नैऋत्य कोण में भारी वस्तुएं भी रखी जा सकती हैं। यहां कार पार्किंग का स्थान का बनाया जा सकता है। इन बातों का ध्यान रखेंगे तो आपके घर में ऊर्जा का संतुलन बना रहेगा।
उत्तर-पश्चिम दिशा             (वायव्य कोण)
वायु इस कोण का प्रतिनिधित्व करती है। इस वजह से यहां खिड़की या रोशनदान का होना बहुत शुभ रहता है। यहां ताजी हवा के लिए स्थान होगा तो हमें स्वास्थ्य संबंधी कई लाभ प्राप्त होते हैं। यहां ताजी हवा आने का स्थान होगा, तो कुछ ही दिनों में पारिवारिक रिश्तों में मधुरता आ जाती है।

घर में किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता है और ना ही स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां रहती हैं। इस स्थान पर कन्या का कमरा बनाया जा सकता है। यहां मेहमानों के रहने की व्यवस्था की जा सकती है। यहां दूसरे फ्लोर पर जाने के लिए सीढ़ियां भी बनाई जा सकती हैं।

पूर्व दिशा
इस दिशा से आपके घर में खुशियां और सकारात्मक ऊर्जा आती है। इस वजह से यहां मुख्य दरवाजा बनाया जा सकता है। यहां खिड़की, बालकनी बनाई जा सकती है। यहां पर बच्चों के लिए कमरा भी बनवाया जा सकता है। यदि आप इस स्थान पर पढ़ाई या अध्ययन संबंधी कार्य करते हैं तो आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। आपके घर में यदि यहां रसोईघर है, तो खाना बनाते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।

यदि यह संभव न हो तो आप अपना मुख पश्चिम दिशा की ओर भी रख सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि इस स्थान पर खाना बनाते समय आपका मुख दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं और यह वास्तु दोष उत्पन्न करता है।

पश्चिम दिशा
वास्तु के अनुसार, इस दिशा के स्वामी वरुण देव हैं। इस स्थान पर डायनिंग हॉल बनवा सकते हैं। यहां सीढ़ियां बनवाई जा सकती हैं। यहां कोई भारी निर्माण कार्य भी करवाया जा सकता है। पश्चिम दिशा में दर्पण लगाना भी बहुत शुभ होता है। यहां बाथरूम भी बनवाया जा सकता है। गेस्ट रूम भी बनवाया जा सकता है। यहां स्टडी रूम भी शुभ फल प्रदान करता है।


उत्तर दिशा

इस दिशा का प्रतिनिधित्व धन के देवता करते हैं। इस वजह से यहां नकद धन और मूल्यवान वस्तुएं रखी जा सकती हैं। यहां मुख्य दरवाजा भी श्रेष्ठ फल देता है। यहां बैठक की व्यवस्था भी की जा सकती है या ओपन एरिया भी रखा जा सकता है। यहां बाथरूम भी बनवा सकते हैं। ध्यान रखें, इस दिशा में बेडरूम नहीं बनवाना चाहिए। यहां स्टोर रूम, स्टडी रूम या भारी मशीनरी नहीं होनी चाहिए।
दक्षिण दिशा

यह स्थान मृत्यु के देवता का स्थान है। यहां भारी सामान रखा जा सकता है। इस स्थान पर रसोईघर भी हो सकता है। यहां पानी का टैंक बनवा सकते हैं और सीढ़ियां बनवा सकते हैं। यहां बच्चों का कमरा नहीं बनवाना चाहिए। स्टडी रूम, बाथरूम और खिड़की नहीं होनी चाहिए। यदि इस स्थान पर बेडरूम है तो सोते समय हमारा सिर दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।

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श्री गणेशाय नम:
मेष :- सिहं धनु से विशेष मित्रता व मिथुन तुला तथा कंुभ राशी वालो से सामान्य मित्रता रहेगी।
वर्ष :- कन्या व मकर राशी से अच्छी मित्रता तथा कर्क वृश्चिक व मीन राशी से सम मित्रता रहेगी। 
मिथुन :- तुला व कंुभ से अनूकुल मित्रता व मेष सिहं व धनु राशी से मैत्री सम्बन्ध रहेगें।
कर्क :- वृश्चिक व मीन राशी से सुखद मित्रता तथा वृष कन्या व मकर से मित्रता रहेगी।
सिहँ :- मेष व धनु से प्रगाढ मैत्री तथा मिथुन तुला व कंुभ से मित्रता रहेगी।
कन्या:- वृष मकर राशी से विशेष तथा कर्क वृश्चिक मीन जातको से सामान्य मित्रता रहेगी।
तुला :- मिथुन व कंुभ से प्रगाढ मित्रता तथा मेष सिहं तथा धनु राशी वालो से अच्छे मैत्री सम्बन्ध रहेंगे।
वृश्चिक :- कर्क वृश्चिक वर्ष कन्या एवं मकर राशी के जातको से मैत्री सम्बन्ध रहेगें।
धनु :- मेष व सिहं राशी से घनिष्ठता तथा मिथुन तुला और कंुभ राशी से आपसी मित्रता होती है। 
मकर :- कन्या, वृष, कर्क, वृश्चिक तथा मीन राशी के जातको से मित्रता रहेगी।
कंुभ :- मिथुन व तुला से विशेष मित्रता व मेष, सिहं व धनु राशी वालो से सम मित्रता रहेगी।
मीन :- कर्क व वुश्चिक राशी से सुखद मैत्री तथा वृष, कन्या, मकर से सामान्य मित्रता रहेगी।
आचार्य अभिमन्यू पाराशर 
हस्तरेखा गोल्ड मेडलिस्ट
जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान 
बस स्टेण्ड शिमला  जिला – झुंझुनू राजस्थान 
मोे   -9413723865,  8769467161

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पूर्णिमा और अमावस्या के मध्य के चरण को हम कृष्ण पक्ष कहते हैं। कृष्ण पक्ष का आरम्भ पूर्णिमा के अगले दिन से माना जाता है। पूर्णिमा के बाद चन्द्रमा जब घटना आरम्भ हो जाता है वह कृष्ण पक्ष होता है। इन रातों को  धेरी रातें भी कहा जाता है। कृष्ण पक्ष को वदी भी कहा जाता है। इन दोनों पक्षो की अपनी अलग आध्यात्मिक  विशेषता होती है। जिस कार्यकलाप को कृष्ण पक्ष में बढ़ाना नहीं चाहते उस पर ज़्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए जैसे- सर्जरी आदि। जानकारी  
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अमावस्या और पूर्णिमा के मध्य के चरण को हम शुक्ल पक्ष कहते हैं। अमावस्या के बाद चन्द्रमा की कलाएँ जब बढ़नी आरम्भ हो जाती हैं तब इसे शुक्ल पक्ष कहा जाता है। इन रातों को चाँदनी रातें कहा जाता है। किसी भी शुभ कर्म में शुक्ल पक्ष को शुभ माना जाता है। इन दोनों पक्षो की अपनी अलग आध्यात्मिक विशेषता होती है। शुक्ल पक्ष को सुदी भी कहा जाता है। नये कार्य की शुरुआत तथा व्यवसाय के विस्तार के लिए शुक्ल पक्ष उपयुक्त होता है।
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हिन्दू पंचांग हिन्दू समाज द्वारा माने जाने वाला कैलेंडर है। इसके भिन्न-भिन्न रूप मे यह लगभग पूरे नेपाल और भारत मे माना जाता है। पंचांग (पंच + अंग = पांच अंग) हिन्दू काल-गणना की रीति से निर्मित पारम्परिक कैलेण्डर या कालदर्शक को कहते हैं। पंचांग नाम पाँच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, यह है- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। इसकी गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है।
एक साल में १२ महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में १५ दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में २७ नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं।१२ मास का एक वर्ष और ७ दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्यचंद्रमा की गति पैर रखा जाता है। यह १२ राशियाँ बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि मे प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र मे होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से ११ दिन ३ घड़ी ४८ पल छोटा है। इसीलिए हर ३ वर्ष मे इसमे एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास कहते हैं।

तिथि

एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक की होती है। चंद्र मास में ३० तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं। शुक्ल पक्ष में एक से चौदह और फिर पूर्णिमा आती है। पूर्णिमा सहित कुल मिलाकर पंद्रह तिथि। कृष्ण पक्ष में एक से चौदह और फिर अमावस्या आती है। अमावस्या सहित पंद्रह तिथि।
तिथियों के नाम निम्न हैं- पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)।

वार

एक सप्ताह में सात दिन होते हैं:-सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार,रविव मंगलवार

नक्षत्र

आकाश में तारामंडल के विभिन्न रूपों में दिखाई देने वाले आकार को नक्षत्र कहते हैं। मूलत: नक्षत्र 27 माने गए हैं। ज्योतिषियों द्वारा एक अन्य अभिजित नक्षत्र भी माना जाता है। चंद्रमा उक्त सत्ताईस नक्षत्रों में भ्रमण करता है। नक्षत्रों के नाम नीचे चंद्रमास में दिए गए हैं-

योग

योग 27 प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं:- विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातीपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति।
27 योगों में से कुल 9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है। ये अशुभ योग हैं: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतीपात, परिघ और वैधृति

करण

एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

पक्ष

प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। तीस दिनों को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है। एक पक्ष में लगभग पंद्रह दिन या दो सप्ताह होते हैं। एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कलाएँ बढ़ती हैं और कृष्ण पक्ष में घटती हैं।

महीनों के नाम

इन बारह मासों के नाम आकाशमण्डल के नक्षत्रों में से १२ नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। जिस मास जो नक्षत्र आकाश में प्राय: रात्रि के आरम्भ से अन्त तक दिखाई देता है या कह सकते हैं कि जिस मास की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है। चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास (मार्च-अप्रैल), विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई), ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास (मई-जून), आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई), श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास (जुलाई-अगस्त), भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद मास (अगस्त-सितम्बर), अश्विनी के नाम पर आश्विन मास (सितम्बर-अक्तूबर), कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास (अक्तूबर-नवम्बर), मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष (नवम्बर-दिसम्बर), पुष्य के नाम पर पौष (दिसम्बर-जनवरी), मघा के नाम पर माघ (जनवरी-फरवरी) तथा फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) का नामकरण हुआ है।
महीनों के नामपूर्णिमा के दिन चन्द्रमा इस नक्षत्र होता है
चैत्रचित्रा , स्वाति
वैशाखविशाखा , अनुराधा
ज्येष्ठज्येष्ठा , मूल
आषाढ़पूर्वाषाढ़ , उत्तराषाढ़
श्रावणश्रवण , धनिष्ठा, शतभिषा
भाद्रपदपूर्वभाद्र , उत्तरभाद्र
आश्विनरेवती , अश्विन , भरणी
कार्तिककृतिका , रोहणी
मार्गशीर्षमृगशिरा , आर्द्रा
पौषपुनवर्सु ,पुष्य
माघअश्लेशा, मघा
फाल्गुनपूर्व फाल्गुन , उत्तर फाल्गुन , हस्त

सौरमास

सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौरमास कहलाता है। यह मास प्राय: तीस, इकतीस दिन का होता है। कभी-कभी अट्ठाईस और उन्तीस दिन का भी होता है। मूलत: सौरमास (सौर-वर्ष) 365 दिन का होता है।
12 राशियों को बारह सौरमास माना जाता है। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। इस राशि प्रवेश से ही सौरमास का नया महीना ‍शुरू माना गया है। सौर-वर्ष के दो भाग हैं- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का। जब सूर्य उत्तरायण होता है तब हिंदू धर्म अनुसार यह तीर्थ यात्रा व उत्सवों का समय होता है। पुराणों अनुसार अश्विन, कार्तिक मास में तीर्थ का महत्व बताया गया है। उत्तरायण के समय पौष-माघ मास चल रहा होता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है जबकि सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है तब सूर्य दक्षिणायन होता है। दक्षिणायन व्रतों का और उपवास का समय होता है जबकि चंद्रमास अनुसार अषाढ़ या श्रावण मास चल रहा होता है। व्रत से रोग और शोक मिटते हैं।दक्षिणायन में विवाह और उपनयन आदि संस्कार वर्जित है,जब कि अग्रहायण मास में ये सब किया जा सकता है अगर सूर्य वृश्चिक राशि में हो।और उत्तरायण सौर मासों में मीन मास मै विवाह वर्जित है।
सौरमास के नाम : मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्‍चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन।
सूर्य के धनुसंक्रमण से मकरसंक्रमण तक मकर राशी में रहता हे। इसे धनुर्मास कहते है। इस माह का धार्मिक जगत में विशेष महत्व है।

चंद्रमास

चंद्रमा की कला की घट-बढ़ वाले दो पक्षों (कृष्‍ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है वही चंद्रमास कहलाता है। यह दो प्रकार का शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला 'अमांत' मास मुख्‍य चंद्रमास है। कृष्‍ण प्रतिपदा से 'पूर्णिमात' पूरा होने वाला गौण चंद्रमास है। यह तिथि की घट-बढ़ के अनुसार 29, 30 व 28 एवं 27 दिनों का भी होता है।
पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। सौर-वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है चंद्र-वर्ष इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है।
सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बड़े हुए दिनों को 'मलमास' या 'अधिमास' कहते हैं।
चंद्रमास के नाम : चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन

नक्षत्रमास

आकाश में स्थित तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चंद्रमा के पथ से जुडे हैं। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है। नक्षत्र हमारे आकाश मंडल के मील के पत्थरों की तरह हैं जिससे आकाश की व्यापकता का पता चलता है। वैसे नक्षत्र तो 88 हैं किंतु चंद्र पथ पर 27 ही माने गए हैं।
चंद्रमा अश्‍विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है वह काल नक्षत्रमास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्रमास कहलाता है।
महीनों के नाम पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है:
  1. चैत्र : चित्रा, स्वाति।
  2. वैशाख : विशाखा, अनुराधा।
  3. ज्येष्ठ : ज्येष्ठा, मूल।
  4. आषाढ़ : पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, सतभिषा।
  5. श्रावण : श्रवण, धनिष्ठा।
  6. भाद्रपद : पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र।
  7. आश्विन : अश्विन, रेवती, भरणी।
  8. कार्तिक : कृतिका, रोहणी।
  9. मार्गशीर्ष : मृगशिरा, उत्तरा।
  10. पौष : पुनर्वसु, पुष्य।
  11. माघ : मघा, अश्लेशा।
  12. फाल्गुन : पूर्वाफाल्गुन, उत्तराफाल्गुन, हस्त।
नक्षत्रों के गृह स्वामी 
  1. केतु : अश्विन, मघा, मूल।
  2. शुक्र : भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़।
  3. रवि : कार्तिक, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़।
  4. चंद्र : रोहिणी, हस्त, श्रवण।
  5. मंगल : मॄगशिरा, चित्रा, श्रविष्ठा।
  6. राहु : आद्रा, स्वाति, शतभिषा ।
  7. बृहस्पति : पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वभाद्रपदा।
  8. शनि . पुष्य, अनुराधा, उत्तरभाद्रपदा।
  9. बुध : अश्लेशा, ज्येष्ठा, रेवती।


साभार
http://hi.wikipedia.org/wiki