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एस्ट्रो न्यूज़ :



व्‍यक्‍ति के हाथ में भाग्य रेखा के साथ सूर्य रेखा का होना अच्‍छा माना जाता है। यदि व्‍यक्‍ति के हाथ में सूर्य रेखा भी है तो व्‍यक्‍ति तरक्की करता है। अच्छी सूर्यरेखा होने से व्‍यक्‍ति का जीवन समृद्धि से भरा हुआ होता है। ऐसा व्‍यक्‍ति प्रत्‍येक क्षेत्र में सफलता पाता है। हालांकि यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि हाथ में सूर्य रेखा का उदगम कहां से है और कैसा है। पं.अभि भारद्वाज के अनुसार सूर्य रेखा और भाग्‍य रेखा की स्‍थिति व्‍यक्‍ति के जीवन में सफलता के बारे में बहुत कुछ कहती है।
-यदि सूर्य रेखा चन्द्रक्षेत्र से आरम्भ हो तो ऐसे व्‍यक्‍ति का भाग्य तो चमकेगा, लेकिन दूसरों की मदद से। ऐसा व्‍यक्‍ति का मित्र और संबंधियों की सहायता से भाग्‍य का उदय होता है।
-यदि सूर्य-रेखा मणिबन्ध या उसके समीप से आरम्भ होकर भाग्य-रेखा के निकट समानान्तर अपने स्थान को जा रही हो तो हस्‍तरेखा विज्ञान में यह सबसे अच्छी मानी गई है। ऐसी रेखा वाला व्यक्ति जिस काम को भी शुरू करता है उसमें ही सफल होता है।
-यदि कोई रेखा चन्द्रक्षेत्र से आरम्भ होकर अनामिका तक जाए और सूर्य रेखा गहरी हो तो ऐसे व्यक्ति का जीवन अनेक घटनाओं से भरा और संदेहपूर्ण होता है। उसके जीवन में बहुत से परिवर्तन होते हें, लेकिन यही रेखा यदि चन्द्र स्थान से निकलकर भाग्य-रेखा के समानान्तर जाए तो व्‍यक्‍ति का भविष्य सुखमय होता है।
एस्ट्रो शैलजा, एस्ट्रो धर्म।
शनि का खौफ सच या झुठ ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌। नमस्कार दोस्तों आज मैं शनि ग्रह से जुड़े डर को दूर करने की कोशिश करूंगी | ब्रह्माण्ड के सात ग्रहों में से शनि पृथ्वी से सबसे दूर ग्रहों में से एक हैं| इसकी गति धीरे होने की वजह से इसे संस्कृत में शनैश्चर कहा गया और हिन्दी में शनिचर | ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह की प्रकृति तामसिक, ठंडी व रूखी हैं और इसका मूल तत्व वायु हैं | इसे हानिकारक ग्रहों की गिनती में रखा गया हैं | शनि न्याय, मर्यादा,विदेशी भाषा का ज्ञान, विरासत, खेती-बाड़ी का काम, तेल, मृत्यु, डर, दुख , कष्ट,अनुशासन,सेवक, चाचा, नीलम रत्न, काला रंग, लोहा, सेवा, पर असर डालता हैं| शनि अपने मार्ग पर एक चककर को 30 साल में पुरा करता हैं और ढाई साल तक नक्षत्र राशि में रहता हैं जिसे शनि की ढाईया कहते हैं| जब यह कुंडली के तीन उपर्युक्त घरों से गुजरता है तो यह मनुष्य को साढ़े 7 साल तक प्रभावित करता है जब किसी की कुंडली में शनि अशुभ स्थान पर बैठा हुआ हो तो वह उस व्यक्ति को लालची, उदास और रोगी बनाता हैं| बार-बार हानि करवाता है या वायु तत्व होने की वजह से शारीरिक रोग लगाये रखता है| शनि मनुष्यों की सही और गलत के निर्णय पर असर करता हैं| बहुत ही अशुभ दशा में शनि मुकदमे, जेल, बदनामी तक करवा देता हैं| यह अकेलापन, निराशावादी, डरपोक, नशो की लत और आत्महत्या की भावना को जगाता हैं| रुखे स्वभाव व कठोर दिल वाला बनाता हैं| टांग, दाँत, लकवा, कैंसर, दौरे, तनाव, ब्लडप्रेशर, कब्ज, गंजापन शनि के अशुभ असर के कारण होने वाली बीमारीया है| यही कारण है पौराणिक कथाओ में मनुष्य तो क्या भगवान भी शनि के प्रकोप से डरते दिखाये गये है| लेकिन यह आधा सत्य हैं| कुंडली में शनि किस घर में कौनसी राशि में बैठा है यह निर्धारित करता हैं शनि का शुभ और अशुभ असर| कुंडली में शनि तुला राशि व 6, 8 और दसवें घर में शुभ होता हैं| तीसरे और छठे घर में भी शुभ असर देता हैं| ग्यारहवे घर में सबसे शुभ होता हैं| मकर व कुंभ राशि में भी शुभ असर देता हैं| मेष, सिंह, कर्क व वृश्चिक राशि में अशुभ होता हैं| पूर्व जन्म में गरीबों को, सेवको को या कमजोर को प्रताड़ित करना भी वर्तमान जीवन में शनि का अशुभ असर देता हैं| वही शनि शुभ का प्रभाव मनुष्यों को व्यवहारिक, जिम्मेदार, ज्ञानी, ईमानदार, न्यायप्रिय, मोहमाया से दूर, लम्बी उम्र, संगठनात्मक क्षमता, नेतृत्व करने वाला बनाता हैं| अंक विज्ञान के अनुसार जिनका जन्म किसी भी महीने की 8, 17 या 26 को होता हैं उनके देव ग्रह शनि है| ऐसे लोगो के जीवन में प्रेम संबधो को लेकर हमेशा दिक्कत रहती हैं| समाजिक तौर पर ये सबके प्रिय होते हैं| ये कर्मठ होते है और दूसरो की मदद कम लेना पसंद करते हैं| इनकी इच्छा शक्ति और गंभीर सोच इन्हें किसी भी कार्य सफलता से करने की ताकत देती हैं| इनका जीवन संघर्ष से भरा होता हैं लेकीन ये कभी हार नहीं मानते| उपरोक्त जन्मतिथि वाले और अगर आपके जीवन में शनि का अशुभ प्रभाव दिखाई दे रहा हो तो यह उपाय जरूर करे| * अशुभ शनि की स्थित में बबूल या कीकर की दातुन करे| * अशुभ स्थित में अपने से कमजोर लोगो को सम्मान दे| * शनि मंत्र, शनि चालीसा या हनुमान चालीसा का जाप करे| * नौकर, मजदुर या गरीबों से अच्छा व्यवहार करे| * पक्षियों को खास कर कौऐ को रोजाना दाना खिलाए | * शनि की कारक वस्तुएं जैसे तिल या सरसों का तेल, गहरे रंग के कपडे, लोहा, उड़द दाल खुद भी इस्तेमाल करे और कुष्ठ रोगियों को दान भी करे | * शनिवार को पीपल में जल चढ़ाए और तेल का दिया जलाए| * बुजुर्गों की सेवा करे| * मध्य उंगली में लोहे का छल्ला पहने| नीलम भी पहना जा सकता हैं लेकिन बिना परामर्श के ना पहने| * घर में या दफ़्तर में गहरे रंगो का इस्तेमाल करे| Aaj Ki Delhi.in/ The 24x7 news/ Indian news Online/ Prime News.live/Astro Dharm/ Yograaj Sharma/ 7011490810
आचार्य रामगोपाल शुक्ला। एस्ट्रो धर्म। भविष्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के अंशावतार श्री परशुराम जी का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को रात्रि के प्रथम चरण ( प्रदोष काल ) मे हुआ था , तदनुसार 25 अप्रैल शनिवार को भगवान परशुराम का जन्म उत्सव मनाना शुभ होगा । पूर्वान्ह व्यापिनी अक्षय तृतीया के पर्व 26 अप्रैल रविवार को रोहिणी नक्षत्र कालीन मनाना विशेष प्रसस्त होगा । यह स्वयं सिद्धि महूर्त तिथि है । इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में कई जाती है क्योंकि त्रेतायुग ( कल्प भेद से सतयुग ) का शुभारंभ इसी तिथि से हुआ था । इस कारण इस दिन किये गये जप , तप , ध्यान , यज्ञ , दान आदि शुभ कार्यो का अक्षुण्ण ( अक्षय ) फल होता है । इस दिन तीर्थ स्नान , समुद्र स्नान , गंगा स्नान , श्री विष्णु सहस्र नाम का पाठ , ब्राह्मण भोजन , कलश , वस्त्र , फल , चावल आदि अनाज एवं मिष्ठान , दक्षिणा सहित दान यथाशक्ति करने से अनंत गुना फल होता है !! Aaj Ki Delhi.in/ The 24x7 news/ Indian news Online/ Prime News.live/Astro Dharm/ Yograaj Sharma/ 7011490810
एस्ट्रो  धर्म :



ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हर राशि और ग्रह का अपना वृक्ष होता है। वैसे ही हर नक्षत्र का भी अपना वृक्ष होता है। ये वृक्ष अपने नक्षत्र, राशि या ग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस वृक्षों पर नक्षत्र व ग्रहों का प्रभाव रहता है, इसलिये अगर अपने जन्म नक्षत्र के अनुसार वृक्ष लगाए जाएं तो ये बहुत ही फलदायक साबित होते हैं। इससे आपको हर कार्य में सफलता व उन्नति मिलेगी। साथ ही साथ कई अन्य लाभ भी मिलेंगे। तो आइए जानते हैं आपके जन्म नक्षत्र के अनुसार कौन सा वृक्ष लगाना फायदेमंद रहेगा...


1. अश्विनी नक्षत्र में जन्में लोगों के लिये कोचिला वृक्ष लगाना बहुत फायदेमंद रहेगा।
2. जिन जातकों का भरणी नक्षत्र में जन्म हुआ है वे आंवले का पेड़ लगा सकते हैं।
3. कृतिका नक्षत्र में जन्में जातक अगर गुड़हल का पेड़ लगाएंगे तो लाभ मिलेगा।
4. रोहिणी नक्षत्र वाले जातक अपने आसपास या घर में जामुन का पेड़ लगाएं, लाभदायक रहेगा।
5. मृगशिरा नक्षत्र में जन्में जातक खैर का वृक्ष लगा सकते हैं, फालदायक साबित होगा।
6. आर्द्रा नक्षत्र में जन्में जातकों को शीशम का वृक्ष लगाने से बहुत लाभ प्राप्त होगा।
7. जिन जातकों का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ है उन्हें बांस का पेड़ लगाना चाहिये।
8. जिन लोगों का जन्म नक्षत्र पुष्य है उन्हें पीपल का पेड़ लगाना फायदेमंद रहेगा।
9. अश्लेषा नक्षत्र में जन्में जातक अपने घर में नागकेसर का पेड़ लगाएं बहुत लाभप्रद साबित होगा।
10. मघा नक्षत्र में जन्में जातक वट वृक्ष लगाएं बहुत लाभ मिलेगा।
11. जिन लोगों का जन्म पूर्वा नक्षत्र में हुआ है उन्हें पलाश का वृक्ष लगाना चाहिये, लाभ मिलेगा।
12. उत्तरा नक्षत्र में जन्में जातक अपने घर में पाकड़ का पेड़ लगाएं लाभ मिलेगा।
13. कहा जाता है की जो लोग हस्त नक्षत्र में जन्में हैं वे रीठा वृक्ष लगाएं।
14. चित्रा नक्षत्र में जन्में जातकों को बेल का वृक्ष लगाना चाहिये, फायदेमंद रहेगा।
15. स्वाती नक्षत्र में जन्में जातक अर्जुन का पेड़ लगाएं , लाभ मिलेगा।
16. जिन जातकों का जन्म विशाखा नक्षत्र में हुआ है उन्हें कटैया का पेड़ लगाना चाहिये।
17. जो लोग अनुराधा नक्षत्र में जन्में हैं वे लोग भालसरी का वृक्ष लगाएं।
18. ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्में जातक चीर का पेड़ लगाएं, मिलेगा भरपूर लाभ।
19. कहा जाता है की जिन जातकों का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है उन्हें शाल का वृक्ष लगाना चाहिये।
20. पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों को अशोक का पेड़ लगाना चाहिये।
21. उत्तराषाढ़ नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों को कटहल का वृक्ष लगाना शुभ रहेगा।
22. श्रवण नक्षत्र में जन्में लोग अकौन के वृक्ष को लगाएं, लाभ मिलेगा।
23. धनिष्ठा नक्षत्र वाले लोग शमी का वृक्षारोपण करें, फायदेमंद रहेगा।
24. शतभिषा नक्षत्र में जन्में जातक कदंब का वृक्ष लगाएं, शुभ रहेगा।
25. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जन्में लोग आम का पेड़ लगाएं, लाभ मिलेगा।
26. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों के लिये नीम का पेड़ लगाना उत्तम साबित होगा।
27. वहीं रेवती नक्षत्र में जन्में लोगों के लिये महुआ का पेड़ लगाना बहुत शुभ रहेगा।
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ऐस्ट्रो धर्म:


पैसा कमाने के लिये हर व्यक्ति कड़ी मेहनत करता है। लेकिन कुछ लोगों के साथ कई ऐसी परिस्थितियां बनती है जिनके कारण वे मेहनत तो करते हैं परंतु उसके अनुरुप फल उसे नहीं मिल पाता या फिर खर्चे अधिक होने की वजह से उसे बचा नहीं पाता। व्यक्ति के इन सभी कारणों के बीच व्यक्ति के भाग्य व कुंडली में ग्रहों की स्थिती भी निर्भर करती है। ज्योतिष के अनुसार कुंडली में यदि कोई ग्रह बाधा बन रही हो तो भी व्यक्ति को गरीबी झेलना पड़ सकती है।
ज्योतिष शास्त्र में गरीबी दूर करने के लिए कई उपाय उपाय बताए गए हैं। इन उपायों को करने से व्यक्ति हर तरह की समस्याओं से छुटकारा पा सकता है। अगर किसी वजह से उसे धन कमाने या फिर धन बचाने में कोई समस्या आ रही है तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुछ सरल उपाय करने से सभी समस्याएं खत्म हो सकती है। तो आइए जानते हैं क्या करें उपाय


पैसों से संबंधित सभी समस्याएं होंगी दूर
किसी भी शुभ मुहूर्त जैसे पूर्णिमा, अक्षय तृतीया, दीपावली या फिर कोई भी ऐसा शुभ दिन हो उस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद एक लाल रेशमी कपड़ा लें और उस लाल कपड़े में चावल के 21 दानें रखें। चावल के सभी 21 दानें खंडित नहीं होना चाहिए यानि कोई टूटा हुआ दान न रखें। उसके बाद उस कपड़े में उन दानों को बांध दें। इतना हो जाए तब आप देवी माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजन करें। पूजा में यह लाल कपड़े में बंधे चावल भी रखें। पूजन के बाद यह लाल कपड़े में बंधे चावल अपने पर्स में छुपाकर रख लें। ऐसा करने पर कुछ ही समय में धन संबंधी परेशानियां दूर होने लगेंगी।

इन बातों का रखें खास ध्यान
- पर्स में किसी भी प्रकार की अधार्मिक वस्तु नहीं रखनी चाहिए।
- पर्स में कभी भी चाबियां नहीं रखनी चाहिये।
- अपने पर्स में कभी सिक्के और नोट एक साथ ना रखें, दोनों को अलग-अलग व्यस्थित ढंग से रखें।
- किसी भी प्रकार की अनावश्यक या पुरानी व्यर्थ चीज़ें पर्स में न रखें।
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ऐस्ट्रो धर्म 

किसी भी व्यक्ति के चेहरे या फिर शरीर पर तिल होना स्वाभाविक है। हर व्यक्ति के शरीर पर तिल होते हैं और उसकी जगह भी अलग-अलग होती है। किसी के हाथ में तिल होता है तो किसी के पैर, माथे या फिर होठों के पास होता है। लेकिन क्या आपको पता है ये तिल आपके बारे में बहुत कुछ बताते हैं।

जी हां, हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार माना जाता है कि शरीर के कुछ अंगों पर तिल का होना आपके दिल का हाल बताते हैं। ये आपके प्यार के बारे में बताते हैं कि आप प्यार के मामले में कैसे हैं, तो आइए जानते हैं क्या कहता आपका तिल...
अगर आपके माथे पर है तिल
अगर आपके माथे पर तिल है तो यह सामान्यत प्रेम की निशानी है। आप प्यार के मामले में ज्यादा रोमांटिक नहीं हैं। लेकिन एक बात जरुर है की जिन लोगों के माथे पर तिल होता है वो लोग अपने पार्टनर से निस्वार्थ प्रेम करते हैं। प्यार के अलावा माथे पर तिल होना आपको रुपये-पैसों के बारे में भी बहुत कुछ बताता है। आगर आपके माथे में दाईं ओर तिल है तो यह पैसेवाले होते हैं। वहीं अगर आपके दाईं तरफ तिल है तो आपका फिजूलखर्ची स्वभाव है, आपके पास पैसा बिलकुल नहीं टिकता है।

अगर आपकी आंखों में है तिल
हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार जिन लोगों की दाईं आंख में तिल होता है उन लोगों को सच्चा प्यार करने वाला पार्टनर मिलता है। ये लोग प्यार के मामले में बहुत भाग्यशाली होते हैं लेकिन अगर आपकी बाईं आंख में तिल है तो आपको इसके विपरित पार्टनर मिलेगा और आपका पार्टनर से झगड़ा होता रहेगा।

अगर आपके ऊपरी होंठ पर है तिल
ऊपर के होंठ पर तिल का होना व्‍यक्ति के यौन व्‍यवहार को दर्शाता है। जिन स्त्रियों के होठों पर तिल होता है वह बेहद रोमांटिक होती हैं और पार्टनर के साथ उनके संबंध बहुत ही शानदार रहते हैं। लेकिन तिल अगर ठुड्डी पर हो तो ऐसे लोगों को प्‍यार में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। नीचे वाले होंठ के नीचे तिल हो तो व्‍यक्ति को धन संबंधी समस्‍याओं का सामना करना पड़ सकता है।
जिन लोगों के छाती पर होता है तिल
छाती में दाईं तरफ तिल होना बहुत ही शुभ माना जाता है। किसी महिला की गर्दन और हृदय के बीच में तिल होना उसके रोमांटिक स्‍वभाव को दर्शाता है। ऐसी महिलाओं के पति की भी दीर्घायु रहती है और वह सदैव सौभाग्‍यशाली रहती हैं। छाती के मध्‍य में तिल का होना स्‍त्री और पुरुष दोनों के सुखी वैवाहिक जीवन को दर्शाता है।

अगर आपकी जांघ पर तिल है तो
महिला या पुरुष किसी के भी अगर जांघ पर तिल है तो बहुत ही रोमांटिक मिजाज का होता है। ऐसे लोग स्‍वभाव से बहुत ही कामुक माने जाते हैं और इनका यौन जीवन भी हमेशा संतुष्‍ट रहता है।

घुटनों पर तिल होने का मतलब
अगर आपके दाएं घुटने पर तिल है तो आपके पार्टनर के साथ आपका गृहस्‍थ जीवन सुख से बीतेगा और यदि तिल आपके बाएं घुटने पर है तो ऐसे प्रेमी-प्रेमिकाओं का प्‍यार जल्‍द ही विवाह के मुकाम तक पहुंच जाता है।
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ACHARYA RAM GOPAL SHUKLA | ASTRO DHARM | The Laxminarayan Temple, also known as the Birla Mandir is a Hindu temple up to large extent dedicated to Laxminarayan in Delhi, India. Laxminarayan usually refers to Vishnu, Preserver in the Trimurti, also known as Narayan, when he is with his consort Lakshmi. The temple, inaugurated by Mahatma Gandhi, was built by Jugal Kishore Birla[1] from 1933 and 1939. The side temples are dedicated to Shiva, Krishna and Buddha.[2] It was the first large Hindu temple built in Delhi. The temple is spread over 7.5 acres, adorned with many shrines, fountains, and a large garden with Hindu and Nationalistic sculptures, and also houses Geeta Bhawan for discourses. The temple is one of the major attractions of Delhi and attracts thousands of devotees on the festivals of Janmashtami and Diwali. The construction of temple dedicated to Laxmi Narayana started in 1933, built by industrialist and philanthropist, Baldeo Das Birla and his son Jugal Kishore Birla of Birla family, thus, the temple is also known as Birla Temple. The foundation stone of the temple was laid by Jat Maharaj Udaybhanu Singh. The temple was built under guidance of Pandit Vishwanath Shastri.[3] The concluding ceremony and Yagna was performed by Swami Keshavanandji.[4] The famous temple is accredited to have been inaugurated by Mahatma Gandhi in 1939. At that time, Mahatma Gandhi kept a condition that the temple would not be restricted to the upper-caste Hindus and people from every caste would be allowed inside.[2][5] This is the first of a series of temples built by the Birlas in many cities of India, which are also often called Birla Temple.Its architect was Sris Chandra Chatterjee, a leading proponent of the "Modern Indian Architecture Movement."[6] The architecture was influenced heavily by the principles of the Swadeshi movement of the early twentieth century and the canonical texts used. The movement did not reject the incorporation of new construction ideas and technologies. Chatterjee extensively used modern materials in his buildings. The three-storied temple is built in the northern or Nagara style of temple architecture. The entire temple is adorned with carvings depicting the scenes from golden yuga of the present universe cycle. More than hundred skilled artisans from Benares, headed by Acharya Vishvanath Shastri, carved the icons of the temple. The highest shikhara of the temple above the sanctum sanctorum is about 160 feet high. The temple faces the east and is situated on a high plinth. The shrine is adorned with fresco paintings depicting his life and work. The icons of the temple are in marble brought from Jaipur. Kota stone from Makarana, Agra, Kota, and Jaisalmer was used in the construction of the temple premises. The Geeta Bhawan to the north of the temple is dedicated to Lord Krishna. Artificial landscape and cascading waterfalls add to the beauty of the temple. The main temple houses statues of Lord Narayan and Goddess Lakshmi. There are other small shrines dedicated to Lord Shiva, Lord Ganesha and Hanuman. There is also a shrine dedicated to Lord Buddha. The left side temple shikhar (dome) houses Devi Durga, the goddess of Shakti, the power. The temple is spread over an area of 7.5 acres (30,000 m2) approximately he temple is located on the Mandir Marg, situated west of the Connaught Place in New Delhi. The temple is easily accessible from the city by local buses, taxis and auto-rickshaws. Nearest Delhi Metro station is R. K. Ashram Marg metro station, located about 2 km away. Also on the same road lies the New Delhi Kalibari.

खबर - पंकज पोरवाल
भीलवाड़ा। श्री मनोकामनापूर्ण बालाजी सेवा समिति, छोटी हरणी की और से आयोजित “नानी बाई रो मायरो” कथा के द्वितीय दिवस पर कथा प्रवक्ता सुश्री जया किशोरी जी ने धर्मसभा को को संबोधित करते हुए की भगवान को पाने के लिए आज के समय में निष्काम भक्ति बहुत जरुरी हे, आज के समय में लोग प्रभु को केवल अपना कार्य पूरा कराने के लिए याद करते और अपना कार्य पूरा होते ही प्रभु को भूल जाते हे | भक्ति बिना स्वार्थ की होनी चाहिए, निस्वार्थ भक्ति से ही प्रभु की प्राप्ति संभव हे |
पूज्या जी ने कृष्ण सुदामा मिलन प्रसंग का वाचन वाचन करते हुए कहा की मित्रता हो तो सुदामा और कन्हैया के जैसी होनी चाहिए जोकि एक दुसरे की परिस्थिति को बखूबी समझते हो | आपका भगवान पर इतना अटूट विश्वास होना चाहिए कि आपका कोई भी कार्य हो प्रभु पर छोड़ दे और ये विश्वास रखे कि भगवान जो भी करेंगे अच्छा ही करेंगे, उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता हे | भगवान को अपने वश में करने का मंत्र बताते हुए कहा की प्रेम ही एकमात्र ऐसा जरिया हे जिससे प्रभु को बड़े ही आसानी से पाया जा सकता हे, अपने वशीभूत किया जा सकता हे |
समिति उपाध्यक्ष छगनलाल जैन ने बताया की आज के मायरे की शुरुआत मुख्य अतिथि जिला प्रमुख शक्ति सिंह हाडा, कंचन इंडिया के श्री लादूलाल बांगड़, प्रदीप मोहन शर्मा, गोपाल स्वरुप मेवाड़ा, गोपाल शर्मा (गोपी दादा), ने दीप प्रज्वलित कर की व मायरे के अंत में लाल बाबा, श्री प्रकाशानंद जी महाराज, बब्बू बन्ना, जोनी बन्ना, मधुसुदन शर्मा, शिव सेना राज्य प्रमुख आशीष जोशी, शम्भू लाल तेली ने महाआरती कर कथा को विराम दिया | कथा में आज पूज्या जया किशोरी जी ने राधे, राधे, गोविन्द राधे..., अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो..., भगत के वश में हे भगवान..., सांवरिया रे आगे खड़ा हु कर जोड़..., बात मेरी मानले..., गाडी में बिठाले रे कान्हा..., आदि भजनों पर श्रद्धालु झूम उठे | कथा के दौरान कृष्ण सुदामा मिलन, भक्त के वश में हे भगवान भजन, नरसी जी का अंजार नगर की और प्रस्थान आदि प्रसंगों की जीवंत व अनोखी झांकिया प्रदर्शित की गयी | आज मायरे में कृष्ण सुदामा मिलन, नरसी जी का अंजार नगर प्रस्थान आदि प्रसंगों का वाचन जया किशोरी जी द्वारा मारवाड़ी भाषा में किया गया | कथा में अंतिम दिवस अर्थात कल नानी बाई का मायरा भरा जायेगा | मायरे का सञ्चालन सुश्री हंसा व्यास द्वारा किया गया | कथा के दौरान आज विश्व नव निर्माण सेना के सेवा प्रकल्प माता पिता की सेवा का पोस्टर पूज्या जया किशोरी जी द्वारा किया गया | नानी बाई को मायरो कथा का आयोजन 25 से 27 अक्टूम्बर 2017 तक दोपहर 1 से 5 बजे तक छोटी हरणी स्थित काठिया बाबा आश्रम में किया जा रहा हे | 27 अक्टूबर को शाम को भी भीलवाड़ा के स्थानीय कलाकार श्री आशुतोष जी सोनी, मास्टर सुनील, दिनेश मानसिंहका के द्वारा भव्य भक्ति संध्या आयोजित की जाएगी |
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इसे तीसरी आँख पर ध्यान केन्द्रित करने वाला ध्यान माना जाता है. इसके लिए व्यक्ति को अपनी आपको को बंद करके, अपना सारा ध्यान अपने माथे की भौहो के बीच में लगाना होता है. इस ध्यान को करते वक़्त व्यक्ति को बाहर और अंदर पुर्णतः शांति का अनुभव होने लगता है. इन्हें अपने माथे के बीच में ध्यान केन्द्रित कर अंधकार के बीच में स्थित रोशनी की उस ज्वाला की खोज करनी होती है जो व्यक्ति की आत्मा को परमात्मा तक पहुँचाने का मार्ग दिखाती है. जब आप इस ध्यान को नियमित रूप से करते हो तो ये ज्योति आपके सामने प्रकट होने लगती है, शुरुआत में ये रोशनी अँधेरे में से निकलती है, फिर पीली हो जाती है, फिर सफ़ेद होते हुए नीली हो जाती है और आपको परमात्मा के पास ले आती है।
श्रवण ध्यान
इस ध्यान को सुन कर किया जाता है, ऐसे बहुत ही कम लोग है जो इस ध्यान को करके सिद्धि और मोक्ष के मार्ग पर चलते है. सुनना बहुत ही कठिन होता है क्योकि इसमें व्यक्ति के मन के भटकने की संभावनाएं बहुत ही अधिक होती है. इसमें आपको बाहरी नही बल्कि अपनी आतंरिक आवाजो को सुनना होता है, इस ध्यान की शुरुआत में आपको ये आवाजे बहुत धीमी सुनाई देती है और धीरे धीरे ये नाद में प्रवर्तित हो जाती है. एक दिन आपको ॐ स्वर सुनाई देने लगता है. जिसका आप जाप भी करते हो।
प्राणायाम ध्यान
इस ध्यान को व्यक्ति अपनी श्वास के माध्यम से करता है, जिसमे इन्हें लम्बी और गहरी साँसों को लेना और छोड़ना होता है. साथ ही इन्हें अपने शरीर में आती हुई और जाती हुई साँसों के प्रति सजग और होशपूर्ण भी रहना होता है. प्राणायाम ध्यान बहुत ही सरल ध्यान माना जाता है किन्तु इसके परिणाम बाकी ध्यान के जितने ही महत्व रखते है।
मंत्र ध्यान
इस ध्यान में व्यक्ति को अपनी आँखों को बंद करके ॐ मंत्र का जाप करना होता है और उसी पर ध्यान लगाना होता है. क्योकि हमारे शरीर का एक तत्व आकाश होता है तो व्यक्ति के अंदर ये मंत्र आकाश की भांति प्रसारित होता है और हमारे मन को शुद्ध करता है. जब तक हमारा मन हमे बांधे रखता है तब तक हम इस ध्वनि को बोल तो पाते है किन्तु सुन नही पाते लेकिन जब आपके अंदर से इस ध्वनि की साफ़ प्रतिध्वनि सुनाई देने लगती है तो समझ जाना चाहियें कि आपका मन साफ़ हो चूका है. आप ॐ मंत्र के अलावा सो-ॐ, ॐ नमः शिवाय, राम, यम आदि मंत्र का भी इस्तेमाल कर सकते है।
तंत्र ध्यान
इसमें व्यक्ति को अपने मस्तिष्क को सिमित रख कर, अपने अंदर के आध्यात्म पर ध्यान केन्द्रित करना होता है. इसमें व्यक्ति की एकाग्रता सबसे अहम होती है. इसमें व्यक्ति अपनी आँखों को बंद करके अपने हृदय चक्र से निकलने वाली ध्वनि पर ध्यान लगता है. व्यक्ति इसमें दर्द और सुख दोनों बातो का विश्लेषण करता है।
योग ध्यान
क्योकि योग का मतलब ही जोड़ होता है तो इसे करने का कोई एक तरीका नही होता बल्कि इस ध्यान को इनके करने की विधि के अनुसार कुछ अन्य ध्यानो में बांटा गया है. जो निम्नलिखित है 

चक्र ध्यान 
व्यक्ति के शरीर में 7 चक्र होते है, इस ध्यान को करने का तात्पर्य उन्ही चक्रों पर ध्यान लगाने से है. इन चक्रों को शरीर की उर्जा का केंद्र भी माना जाता है. इसको करने के लिए भी आँखों को बंद करके मंत्रो (लम, राम, यम, हम आदि) का जाप करना होता है. इस ध्यान में ज्यादातर हृदय चक्र पर ध्यान केन्द्रित करना होता है।

दृष्टा ध्यान
इस ध्यान को ठहराव भाव के साथ आँखों को खोल कर किया जाता है. इससे अर्थ ये है कि आप लगातार किसी वास्तु पर दृष्टी रख कर ध्यान करते हो. इस स्थिति में आपकी आँखों के सामने ढेर सारे विचार, तनाव और कल्पनायें आती है. इस ध्यान की मदद से आप बौधिक रूप से अपने वर्तमान को देख और समझ पाते हो।
कुंडलिनी ध्यान
इस ध्यान को सबसे मुश्किल ध्यान में से एक माना जाता है. इसमें व्यक्ति को अपनी कुंडलिनी उर्जा को जगाना होता है, जो मनुष्य की रीढ़ की हड्डी में स्थित होती है. इसको करते वक़्त मनुष्य धीरे धीरे अपने शरीर के सभी आध्यात्मिक केन्द्रों को या दरवाजो को खोलता जाता है और एक दिन मोक्ष को प्राप्त हो जाता है. इस ध्यान को करने के कुछ खतरे भी होते है तो इसे करने के लिए आपको एक उचित गुरु की आवश्यकता होती है।
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अध्यात्म जगत में वे ही गुरु हो सकते हैं, जो मनुष्य को ऊपर उठा कर आत्मिक उज्ज्वलता को प्रकाशित कर सकें। इसलिए गुरु वे ही हो सकते हैं, जो महाकाल हैं। अन्य कोई गुरु नहीं हो सकता। और इस आत्मिक स्तर पर गुरु होने के लिए उन्हें साधना का प्रत्येक अंग, प्रत्येक प्रत्यंग, प्रत्येक क्षुद्र, वृहत अभ्यास सभी कुछ सीखना होगा, जानना होगा और सिखलाने की योग्यता रखनी होगी। इसे केवल महाकाल ही कर सकते हैं, अन्य कोई नहीं। जिन्होंने अपने जीवत्व को साधना द्वारा उन्नत कर शिवत्व में संस्थापित किया है, वे ही काल हैं। और जो स्वयं करते हैं तथा दूसरे को उसके बारे में दिग्दर्शन कराने का सामथ्र्य रखते हैं, वे ही महाकाल हैं। अतीत में महाकाल शिव आए थे और आए थे कृष्ण। गुरु होने के लिए महाकाल होना होगा, साधना जगत में सूक्ष्म विवेचन कर सभी चीजों की जानकारी रखनी होगी। केवल इतना ही नहीं, उन्हें शास्त्र-ज्ञान अर्जन करने के लिए जिन सभी भाषाओं को जानने की आवश्यकता है, उन्हें भी जानना होगा। अर्थात् केवल साधना सिखलाने के लिए ही नहीं, वरन् व्यावहारिक जगत के लिए भी सम्पूर्ण तथा चरम शास्त्र ज्ञान भी उनमें रहना होगा और तभी वे अध्यात्म जगत के गुरु की श्रेणी में आएंगे। जो साधना अच्छी जानते हैं, दूसरे की सहायता भी कर सकते हैं, किन्तु उनमें पांडित्य नहीं है, शास्त्र ज्ञान नहीं है, भाषा ज्ञान नहीं है तो वे आध्यात्मिक जगत के भी गुरु हो नहीं सकेंगे। गुरु अगर कहता है कि ‘वैसा करोगे, जैसा मैं कहूंगा’ तो उसे यह भी तो बताना होगा कि शिष्य वैसा क्यों करे। इसी के लिए शास्त्र की उपमा की आवश्यकता पड़ती है।
शास्त्र क्या है? शास्त्र कह कर एक मोटी पुस्तक दिखला दी, ऐसा नहीं है। ‘शासनात् तारयेत् यस्तु स: शास्त्र: परिकीर्तित:।’ जो मनुष्य पर शासन करता है तथा उसके छुटकारे का, मुक्ति का पथ दिखला देता है, उसे शास्त्र कहते हैं। इसलिए गुरु को शास्त्र पंडित होना होगा, अन्यथा वे मानव जाति को ठीक विषय का ज्ञान नहीं दे सकेंगे। ‘शास्त्र’ माने वह वेद, जो मनुष्य को शासन द्वारा रास्ता दिखाए। शास्त्र माने जो मनुष्य को सत् पथ पर चलाए, जिस पथ पर चलने से मनुष्य को ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होगी और कल्याण होगा।
अब यह शासन क्या है? ‘शासन’ यानी जिसे शास्त्र में अनुशासन कहा गया है। ‘हितार्थे शासनम् इति अनुशासनम्।’ कल्याण के लिए जितना शासन किया जाता है, उस विशेष शासन को कहा जाता है अनुशासन। अध्यात्म गुरु को जिस तरह अपनी साधना स्वयं जाननी होगी और दूसरे को उसे बताने का सामथ्र्य रखना होगा, उसी तरह शासन करने का सामथ्र्य रखना होगा। साथ ही पे्रम, ममता, आशीर्वाद करने का भी सामथ्र्य
रखना होगा।
केवल शासन ही किया, प्रेम नहीं किया तो ऐसा नहीं चलेगा। एक साथ दोनों ही चाहिए। और शासन की मात्रा कभी भी प्रेम की सीमा का उल्लंघन न करने पाए। तभी होंगे वे आध्यात्मिक जगत गुरु। ये सारे गुण ईश्वरीय सत्ता में ही हो सकते हैं।


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कलश यात्रा के साथ बख्ताबाबा आश्रम मे भागवत कथा शुरू


भीलवाड़ा 4 फरवरी। चित्रकूट धाम (उत्तरप्रदेश) के कर्मयोगी आनन्द महाराज ने कहा कि श्रीमद् भागवत ऐसा ग्रंथ है जिसमंे व्यक्ति का जन्म होने से लेकर उसके मरण तक किस प्रकार जिया जाए, इसका राज छिपा है। जो व्यक्ति श्रीमद् भागवत के सार को अपने जीवन में उतारकर उसका पालन करते हुए आगे बढ़ता है वह व्यक्ति मनुष्य जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य करता है।
तिलकनगर बख्ताबाबा रोड़ के समस्त क्षैत्रवासियों की और से बख्ताबाबा आश्रम में आयोजित 7 दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के शुभारम्भ पर भागवत महात्म्य प्रसंग का वर्णन करते हुए उपस्थित सैकड़ो श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए उन्होने कहा कि भागवत व्यक्ति को जीवन जीने की कला सिखाती है। साथ ही मोक्षप्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। जो व्यक्ति श्रीमद् भागवत के नियमांे के अनुसार जीवन जीता है उसका जीवन सुखमय व लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर होने वाला होता है।
कथा के शुभारम्भ से पूर्व बख्ताबाबा आश्रम 51 कलशों की भव्य कलश यात्रा निकाली गई जो क्षेत्र के विभिन्न मार्गों से होती हुई पूनः कथास्थल पहंुची जहां विधिविधानपूर्वक श्रीमद् भागवत जी को स्थापित किया गया। कलश यात्रा में पीतवस्त्र व चुनरी पहने महिलाओं के साथ-साथ श्वेत वस्त्र पहने श्रद्धालु भी बारी-बारी से श्रीमद् भागवत जी को सिर पर धारण करे हुए चल रहे थे। वहीं उनके पीछे कर्मयोगी आनन्द महाराज संगीतमय भजनों की धुन के बीच श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हुए चल रहे थे। शोभायात्रा में जगह-जगह श्रद्धालुओं ने पुष्पव्वर्षा कर शोभायात्रा को भव्य बनाया।
आयोजन समिति के ज्ञानमल खटीक एवं जी.पी. खटीक ने बताया कि कथा प्रतिदिन दोपहर 1 से सायं 5 बजे तक चलेगी। उन्होंने कथा में शामिल हो धर्मलाभ लेने की श्रद्धालुओं से अपील की है।


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बीकानेर। पुष्करणा सावे को लेकर शहर में रौनक परवान चढने लग गई है। गल्ली-मोहल्ले  मांगलिक गीतों से  गुंजायमान है। प्रवासियों के आने का सिलसिला शुक्रवार को भी जारी रहा। बड़ी संख्या में प्रवासी कोलकता, चौन्नई,  मुम्बई से बीकानेर पहुंच रहे हैं। शहर में कई मोहल्लों में यज्ञोपवित संस्कार आयोजित किया गया। वहीं मायरे की रस्म   निभाई गई। पुष्करणा समाज का सामूहिक सावा आठ फरवरी को होगा। इसकी तैयारियों में पूरा शहर जुट सा गया है।  सेवा संस्थाएं पूरी तरह से मुस्तैद हो गई है। कंट्रोल रेट पर खाद्य सामग्री का वितरण किया जा रहा है।  शुक्रवार को कई  स्थानों पर यज्ञोपवित संस्कार कार्यक्रम आयोजित हुए। ।  बटुकों के यज्ञोपवित संस्कार के दौरान  घर-घर में  धर्म की  मान्यता के अनुसार यज्ञोपवित धार्मिक अनुष्ठान, पूजन ,हवन हुए।  परम्परा के अनुसार काशी के लिए दौड़ भी लगाई।   हाथ में घोटा, पाटी, लोटडी लेकर भागते हुए बटुकों को पकडने के लिए उनके परिवारजनों ने भी दौड़ लगाई।  
बीरा रमक-झमक होय आयज्यों..........
यज्ञोपवित संस्कार  के दौरान शुक्रवार को शहर में मायरा भरने के भी आयोजन हुए। जिन बटुकों के यज्ञोपवित संस्कार  हुआ उनके ननिहाल से मायरा भरा गया। हर गली-मोहल्ले में मायरा के पारम्परिक गीत श्बीरा रमक-झमक होय  आयज्यों ्य की गूंज रही। ढोल-बाजा के साथ बटुकों के ननिहाल पक्ष के लोग मायरा भरने पहुंचे। वही शहर में शुक्रवार  को बडी संख्या में हुई शादियों के दौरान भी मायरा भरने की रस्म का निर्वहन हुआ। ं दिन में जहा मायरा व खिरोडा की  रस्में हुई,वही देर शाम से बारातों के निकलने का क्रम शुरू हुआ जो देर रात्रि तक चलता रहा।
शान बढाना सभी का दायित्व
पुष्करणा सावे को कैसे बनाएं और खूबसूरत विषय पर शुक्रवार को रमक-झमक संस्था के बैनर तले गोष्ठी का आयोजन  किया गया। इस अवसर पर डॉ.अजय जोशी ने कहा कि सावे की शान व मान को बढाने का दायित्व हम सभी का है।  सावे के दौरान ऐसा कोई भी कार्य न हो जो इसकी पौराणिक संस्कृति के विरूद्ध हो। संस्था के अध्यक्ष प्रहलाद ओझा भैंरू  के साथ ही रतन लाल, चन्द्र शेखर छंगाणी, राजेश रंगा, महादेव बिस्सा, कैलाश ओझा, किशन कोलाणी, निखिल देराश्री,  राजा  ओझा, आर. के. सूरदासाणी, आनन्द मस्ताना, राज कुमार व्यास आदि ने विचार रखे।
दावों की खुल रही है पोल
पुष्करणा सावे से पूर्व परकोटे के अन्दरूनी क्षेत्रों में सफाई, प्रकाश , पेच वर्क व आवारा पशुओं को हटाने के लिए निगम  प्रशासन की ओर से किए लम्बे चौड़े दावे किए थे।  मगर अब जबकि सावे में मात्र एक सप्ताह का ही समय शेष रह गया  है फिर भी सावा वाले क्षेत्रों में न तो उचित प्रकाश व्यवस्था नजर आ रही है न ही सफाई की व्यवस्था। सडको पर पडे गढ्ढें  ,हर चौक -चौराहो पर लड रहे आवारा पशु निगम प्रशासन की पोल खोल रहे है। सावा क्षेत्रों में मुख्य सडकों के साथ  -साथ गली-मोहल्लों में भी अंधेरा पसरा पडा है। अनेक स्थानों पर सडकों पर  फैल रहा कीचड, कचरे के ढेर सफाई  व्यवस्था की पोल खोल रहे है। निगम प्रशासन की इस अनदेखी से लोगो में रोष फैल रहा है। लोगों में इस बात को लेकर  नाराजगी है कि निगम व जिला प्रशासन ने सावे के अवसर पर लम्बे चौडे दावे किये थे जो अब खोखले साबित होते नजर  आ रहे है।
...अब खुली आंख
पुष्करणा सावा अब महज 10 दिन दूर है। इसके बाद भीतरी परकोटे में कई मोहल्लों में अभी भी विकास कार्यों की दरकार  है। तो कुछ मोहल्लों में अभी भी नालियों के दुरुस्त करने का कार्य चल रहा है। सड़कों की मरम्मत अभी भी कई मोहल्लों  में बाकी पड़ा है। साफ-सफाई का भी अभाव है। जगह जगह बिजली केबलें सड़क के बाहर पड़ी है। इसके कारण सड़क भी  क्षतिग्रस्त पड़ी है।
विवाह समारोह की रही धूम
हालांकि सामूहिक सावा आठ फरवरी को प्रस्तावित है लेकिन श्ुाक्रवार रात को भी विवाह समारोह की धूम रही। शाम
ढलने के साथ ही शहर में डीजे
और बैंड बाजों के साथ बाराते निकली।
शहर में विवाह समारोह को लेकर
खासी रौनक रही। बारातों का सिलसिला
देर रात तक चला। विवाह स्थलों पर
लोगों का जमावड़ा रहा। हर ओर मांगलिक गीतों की गूंज रही।
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बीकानेर।  पुष्करणा समाज का सामूहिक ओलम््िपक विवाह समारोह 8 फरवरी को आयोजित होगा। इसके लिए शहरी  क्षेत्र में व्यापक तैयारियां की जा रही है। सरकारी दर पर राशन सामग्री उपलब्ध करवाने के लिए परशुराम सेवा समिति  का कार्यालय पुष्करणा स्टेडियम में खुल गया है। इसके अलावा अन्य संस्थाएं भी सावे की तैयारी में जुटी हैं। परशुराम  सेवा समिति के कार्यालय में वैवाहिक कार्यक्रम आयोजित होने वाले परिवार को राशन सामग्री के रूप में दो टीन तेल, एक  बोरी गेहूं, 50 किलो चीनी, एक कट्टा मैदा दिया जा रहा है। इसके अलावा शुक्रवार को बटुक यज्ञोपवित संस्कार का कार्य  पूर्ण करेंगे। यह कार्य 5 फरवरी को भी आयोजित होगा।

मिलेगी वधु पक्ष को राजकीय सहायता
सामूहिक विवाह में भाग लेने वाले वधु पक्ष को राजकीय सहायता के रूप में दस हजार रुपये की आर्थिक सहायता  मिलेगी। इसके लिए विवाहोपरान्त 15 फरवरी को स्टेडियम में विवाह पंजियन का कार्य किया जाएगा।

सेवा और भी देंगे
सामूहिक विवाह के लिए आयोजनकर्ता परिवार को कपिल जन कल्याण प्रन्यास ट्रस्ट की ओर से कपिल आश्रम परिसर में  जगह की निरूशुल्क व्यवस्था की जाएगी। इसके लिए कमेटी का गठन भी किया गया है। इसके अलावा रमक-झमक  संस्थान के प्रहलाद ओझा श्भैरव्य ने बताया कि दुल्हों व दुल्हनों को विवाह के लिए आवश्यक घोटे, पाटिया, खड़ाऊ, बटुआ  आदि का नि:शुल्क वितरण किया जा रहा है। हब्र्स ब्यूटी पार्लर की संचालिका रचना रंगा ने बताया कि सामूहिक सावे में  विवाह बंधन में बंधने वाली वधु का शृंगार नि:शुल्क किया जाएगा। इसके अलावा दुल्हे व बारातियों के साफा बांधने का  कार्य कृष्णकांत पुरोहित व उनकी टीम द्वारा किया जाएगा।





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बीकानेर।  लोकदेवता बाबा रामदेव का माघ शुक्ल दशमी का निकटवर्ती गांव सुजानदेसर सहित अनेक रामदेव मंदिरों में   मेला भरा । सुबह बाबा रामदेव की पूजा अर्चना के साथ शुरू हुए मेले में बड़ी संख्या में आसपास के क्षेत्रों व ग्रामीण  इलाकों से पहुंचे नर-नारियों ने बाबा के दर्शन किए और घर-परिवार में खुशहाली रहने की कामना की। मंदिर पहुंचे लोगों  ने बाबा की ज्योत के दर्शन किए और आरती में भाग लिया। मेले के चलते मंदिर के आसपास बड़ी संख्या में प्रसाद, फू ल  माला व अन्य खाद्य सामग्री बेचने वाली अस्थाई दुकानें सजी रही। सर्दी का मौसम होने के कारण सुबह मंदिर में  अपेक्षाकृत भीड़ कम रही लेकिन दोपहर बाद भक्तों की संख्या में वृद्वी होती दिखाई दी। एम एम स्कूल के पास स्थित बाबा  रामदेव मंदिर में  विशेष पूजा अर्चना की गई। पुजारी सुंदरलाल  जोशी ने बताया कि बाबा रामदेव की प्रतिमा का पंचामृत  स्नान के बाद श्रृंगार किया गया और महाप्रसाद चढ़ाया गया। सायं काल में महाप्रसादी के बाद जागरण का आयोजन  हुआ। जिसमें शहर के नामचीन कलाकरों ने बाबा के भजनों की प्रस्तुतियां दी।


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कोटपूतली। निकटवर्ती ग्राम कल्याणपुरा कुहाड़ा स्थित श्री छापालावाला भैरूजी के मन्दिर में वार्षिकोत्सव समारोह का आयोजन हुआ। हर वर्ष की भांति ग्रामीणों के द्वारा विशाला भण्डारे व जागरण समारोह का आयोजन किया गया। जागरण समारोह में दाताराम एण्ड पार्टी, रामकुंवार एण्ड पार्टी, शिम्भु एण्ड पार्टी, गोदाराम एण्ड पार्टी आदि लोक गायकों द्वारा रागनी व धमाल प्रस्तुत की गई। जागरण समारोह के माध्यम से गायकों ने बाबा भैरू के महात्मय पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में पधारे आगन्तुकों का मेला कमेटी की ओर से माला व साफा पहनाकर स्वागत किया गया। मेले में भैरू बाबा के स्थान पर हैली कॉप्टर की सहायता से पुष्प वर्षा भी की गई। भण्डारे में हजारों की संख्या में श्रद्वालूओं ने पंगत प्रसादी ग्रहण की।



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बीकानेर। ज्ञान व वाणी की अधिष्ठात्री मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस बसंत पंचमी शनिवार का मनाया गया। मां  सरस्वती के मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना के अलावा शैक्षणिक संस्थाओं में मां वाग्देवी की अराधना की गई। उधर चौथाणी  ओझाओं के चौक में मां लटियाल कला केन्द्र की ओर से आयोजित होने वाली रम्मत का अभ्यास भी नगाड़ा पूजन के साथ  किया गया। राजीव गांधी मार्ग स्थित सरस्वती मंदिर व पब्लिक पार्क स्थित मंदिर में मां शारदे की विशेष पूजा अर्चना कर  पीले फलों का भोग लगाया गया। वसंत पंचमी का आयोजन ब.ज.सि. रामपुरिया महाविद्यालय की एनएसएस इकाई द्वारा  बसंत पंचमी के पावन पर्व पर मां सरस्वती की पूजा वंदना की व ऋतुरात वसंत की सौन्दर्यता, रूप व महत्व आदि को  कविताओं के माध्यम से अपने विचारों में पिरोया। महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. श्रीमती शुक्लाबाला पुरोहित ने बताया कि  मां सरस्वती को ज्ञान बुद्वि, कला  और कौषल की देवी माना जाता है। यही वजह है ज्ञान के पिपासु लोग मां सरस्वती का  आर्षीवाद पाने के लिये उनकी वंदना करते हैं। वसंत का आगमन मां शारदा को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम काल हैै। वसंत  ऋतु में स्कूली व कॉलेज के छात्र-छात्राओं को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्वाध्याय करना चाहिए। अपने मंदिर में या पूजा स्थान  पर पीले वस्त्र पर मां सरस्वती की प्रतिमा को विराजित करके पीले वस्त्र पर धारण कर व पीले पुष्प चढ़ाते है। कार्यक्रम के  अध्यक्ष व एन.एस.एस. प्रभारी प्रो. आत्माराम, प्रो. अनिल लाटा , प्रो. उमेश तंवर, प्रो. नरेन्द्र शर्मा, प्रो. मनीष मोदी ने  अपने विचार रखे। सिस्टर निवेदिता कन्या महविधयालय में मा सरस्वती का पूजन हुआ, सभी छात्राओं ने बढ़ चढ़ कर  हिस्सा लिया, डॉ बलदेव व्यास ओर ब्रह्मदत्त व्यास के सानिध्य में मंत्रोचार के साथ पूजन हुआ। निदेशिका डा श्यामा व्यास  ने अपने उडबोधन में कहा की बसंत पंचमी एक नयी )तु का पैगाम लेकर आती है, मौसम बदलेगा। प्राचार्य रितेश व्यास  ने कहा की छात्राएँ संकल्प ले की हम आज के दिन माँ सरस्वती का आशीर्वाद लेकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति मैं लग जाएँगी.  हम माँ शारदा से यह प्रार्थना करतें हैं की हम पर सरस्वती का आशीर्वाद बना रहे ओर महविधयालय निरंतर प्रगती के पाठ  पेर आगे बढ़ता रहे। कार्यक्रम में श्रीमती रूबी स्वामी, अनुराधा बोहरा,सुषमा व्यास नीलम व्यास उपस्थित थे।

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चमत्कार साबित हुआ तुलसी वितरण- रॉय
जयपुर- साहित्य के अनूठे संसार 'जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल' के दूसरे दिन निशुल्क तुलसी लेनें इतनी भीड़ उमड़ी की दो ही दिनों में पंद्रह सौ से ज्यादा पौधे वितरण किये गए, संस्थान अध्यक्ष विष्णु 'लाम्बा' बताया की पांच दिनों में इक्यावन सौ पौधे वितरण करनें का लक्ष्य है, टीमवर्क आर्ट्स प्रा.ली. के मेनेजिंग डाइरेक्टर संजय के. रॉय और डिग्गी पैलेस के डाइरेक्टर राम प्रताप सिंह भी इस मुहीम से खासे खुश नज़र आये, दोनों नें ही अपनें हाथों से लोगों को तुलसी वितरण करते हुए कहा की संस्थान के तुलसी वितरण नें चमत्कार जैसा कार्य किया है, जिससे दो ही दिनों में देश-विदेश के सेकड़ों लोग जुड़े है,
फ़ेस्टिवल में संस्थान की और से पांच दिन तक चलनें वाले 'निशुल्क तुलसी वितरण कार्यक्रम' के तहत आज भी सेकड़ों हस्तियों को तुलसी के पौधे भेंट कर सम्मानित किया गया. Aaj Ki Delhi.in/ The 24x7 news/ Indian news Online/ Prime News.live/Astro Dharm/ Yograaj Sharma/ 7011490810


जयपुर। गिर्राज संघ परिवार विश्वकर्मा, जयपुर के सोलहवें वार्षिकोत्सव पर सीकर रोड स्थित सनमून के पास चल रहे श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ समारोह के अन्तिम दिन शनिवार को परम श्रद्धेय विश्व विख्यात आचार्य श्री मृदुल कृष्ण जी महाराज ने कहा कि जीवन में कितना भी धन ऐश्वर्य की सम्पदा हो लेकिन यदि मन में शान्ति नहीं है तो वह व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं रह सकता। वही जिसके पास धन की कमी भले ही हो सुख सुविधाओं की कमी हो परन्तु उसका मन यदि शान्त हो तो वह व्यक्ति वास्तव में परम सुखी है। वह हमेशा मानसिक असतुंलन से दूर रहेगा। उन्होने आगे सुदामा चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सुदामा के जीवन में धन की कमी थी निर्धनता थी लेकिन वह स्वयं शान्त ही नहीं बल्कि परम शान्त व्यक्ति थी इसलिये सुदामा जी हमेशा सदैव सुखी रहे। क्योंकि उनके पास प्रभु नाम रूपी धन था धन की उनके जीवन में न्यूनता थी परन्तु उनके पास भाव की पूर्णता थी उनके घर में वस्त्र आभूषण का तो अन्न का एक कण भी नहीं था जिसे लेकर वे प्रभु श्री द्वाराकाधीश के पास जा पहुंचे परन्तु सुदामा की धर्मपत्नि सुशीला के मन में इच्छा थी और बडी भावना थी कि हमारे प्रति भगवान श्री द्वारका जी के पास खाली हाथ न जाये। सुशीला जी चार घर गई और चार मुटठी चावल मांगकर लाई और वही चांवल सुदामाजी भगवान श्री कृष्ण के पास लेकर गये और प्रभु ने उन चावलों का भोग बडे ही भाव के साथ लगाया। उन भाव भक्ति चावलों का भोग लगाकर प्रभु ने कहा कि हमारा भक्त हमें भाव से पुष्प फल अथवा जल ही अर्पण करता है तो उसे मैं आदर के साथ ग्रहण करूंगा। प्रभु ने चांवल ग्रहण कर सुदामा को अपार सम्पत्ति प्रदान की। आज विशेष महोत्सव के तहत फूल होली महोत्सव मनाया गया जिसमें आचार्य श्री ने होली खेल रहे बांके बिहारी.... बांके बिहारी की देख छटा.... जैसे भजनों के द्वारा खूब भक्तिरस बरसाया। Aaj Ki Delhi.in/ The 24x7 news/ Indian news Online/ Prime News.live/Astro Dharm/ Yograaj Sharma/ 7011490810