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एस्ट्रो धर्म :



एक जून को गंगा दशहरा है। इस दिन साधक गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं। धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा माता धरा पर अवतरित हुई है। इस दिन पितरों को तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। चिरकाल में राजा भगीरथ ने अपने पितरों को भी इस दिन मोक्ष दिलाई थी। आइए, गंगा अवतरण की कथा को जानते हैं-


गंगा माता की उत्पत्ति
पौराणिक कथानुसार, चिरकाल में इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर की दो पत्नियां थीं, लेकिन दोनों निःसंतान थीं। इसके बाद राजा सगर ने ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या की, जिससे ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर सगर को दो वरदान दिया। इसमें एक वरदान से 60 हजार अभिमानी पुत्र और दूसरे से वंश वृद्धि हेतु संतान की प्राप्ति हुई, लेकिन इंद्र उन बच्चों को कपिल मुनि के आश्रम में छोड़ आए।
जब राजा सगर अपने बच्चों को ढूंढते-ढूंढते कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्हें अपने बच्चे दिखे। जब वह लेने पहुंचे तो उनके इस कार्य से कपिल मुनि की तपस्या भंग हो गई। इसके बाद कपिल मुनि के शाप से सभी बच्चे जलकर राख हो गए। उस समय राजा सगर ने ब्रह्मा जी का आह्वान कर उपाय बताने को कहा। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि इन्हें मोक्ष दिलाने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाना होगा।
कालांतर में राजा सगर ने कठिन तपस्या की लेकिन गंगा को लाने में असफल रहे। इसके बाद राजा भगीरथ ने गंगा माता की कठिन तपस्या की। तब जाकर गंगा माता ने जलधारा की वेग को रोकने का उपाय ढूंढ़ने को कहा।
फिर भगीरथ ने शिव जी की तपस्या की। इससे गंगा के पृथ्वी पर आने का मार्ग मिल गया। भगवान शिव ने गंगा माता को अपनी जटाओं में स्थान दिया। कालांतर में शिव जी की जटाओं से गंगा माता का उद्धभव हुआ, जिससे भगीरथ के वंशजों को मोक्ष की प्राप्ति हुई।
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आरती एवं दान के  शुभ फल: 
  • मोक्ष की प्राप्ति होती है। 
  • विपदाओं का निवारण होता है। 
  • जीवन में संघर्ष की समाप्ति होती है। 
  • कुशल स्वास्थ प्राप्त होता है। 
  • घर धन एवं सुख - सुविधाओं से परिपूर्ण रहता है।
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गंगा दशहरा का पर्व भारत में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन माँ गंगा के अवतरण की महत्वता को दर्शातें हुए पूजनीय माना जाता है। इस दिन माँ गंगा के पूजन से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जातें है। गंगा दशहरा के दिन ही राजा भागीरथी के कठोर तप से प्रसन्न होकर माँ गंगा धरती पर पधारी थी। माँ गंगा भारत की सबसे पवित्र नदी के रूप में पूजी जाती है। इनके पूजन से व्यक्ति का तन - मन एवं जीवन शुद्ध हो जाता है तथा उसके कार्यों में कभी भी कोई बाधा का वास नहीं रहता।
दीप दान का आशय घोर अंधकार को मिटाकर प्रकाश के आगमन से है। दीप दान करने से व्यक्ति दिव्य कांति से युक्त हो जाता है। इससे जीवन का अंधकार छट जाता है। दीप दान से व्यक्ति को स्वर्ग समान जीवन की प्राप्ति होती है। व्यक्ति को धन , यश एवं कीर्ति का लाभ होता है। दीप का दान प्रत्येक व्यक्ति के जीवन से अशुभता एवं  दरिद्रता का अंधकार समाप्तकर उन्हें सुख - समृद्धि एवं शांति का आश्रय प्रदान करता है।
हमारी सेवाएं :-
हमारे युगान्तरित पंडित जी द्वारा  आपके नाम से माँ गंगा का पूर्ण विधि -विधान से पूजन एवं आरती संपन्न की जाएगी। तथा माँ गंगा को दीप दान भी किया जाएगा।
प्रसाद :-
  • फुलियाँ 
  • गंगाजल