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एस्ट्रो धर्म:



शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित होता है। इस दिन लोग शनि देव की पूजा-उपासना करते हैं। साथ ही हुनमान जी की भी पूजा की जाती है। शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। लोग शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन सच्ची श्रद्धा और विधिपूर्वक पूजा-पाठ और उपासना करते हैं। हालांकि, शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन कुछ चीज़े भूलकर नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से शनि देव नाराज हो जाते हैं, जिससे उनके जीवन से सुख और शांति छिन जाती है। अगर आपको इन चीजों के बारे में नहीं पता है तो आइए जानते हैं-
-शनिवार के दिन भूलकर भी तामसी भोजन नहीं करना चाहिए। इस दिन आसुरी प्रवृति से भी बचना चाहिए।
-शनिवार के दिन घर में कोई कलह पैदा न करें। अगर मन में कोई चिंता है तो उसे शनि देव से साझा करें।
-इस दिन किसी विवाद में न फंसे, न ही किसी से कोई विवाद करें। शनिदेव को शांति प्रिय लोग अति प्रिय होते हैं।
-ऐसी मान्यता है कि इस दिन सरसों तेल नहीं खरीदना चाहिए। इससे शनि देव रुष्ट हो जाते हैं।
-लोहे से बनी चीज़ें भी न खरीदें। इससे भी शनि देव नाराज होते हैं।
शनिवार को क्या करें
-इस दिन पूजा जप तप और दान का अति विशेष महत्व है। शनिवार के दिन काले कपड़े, सरसों का तेल, लोहे, उड़द दाल आदि का दान करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। इस दिन गरीबों एवं जरूरतमंदों को अनाज दान देने से शनि देव जल्दी प्रसन्न होते हैं। इस दिन निम्न मंत्र का जाप जरूर करें।
ॐ श्री शनिदेवाय: नमों नमः
ॐ श्री शनिदेवाय: शुभम फलः
ॐ श्री शनिदेवाय: फलः प्राप्ति फलः
ॐ श्री शनिदेवाय: शान्ति भवः
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन पीपल वृक्ष को जल का अर्घ्य देना और दीपक जलाना अति शुभ होता है। इससे व्रती की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूरी होती है।
एस्ट्रो धर्म :




शनिदेव को ज्योतिष में न्याय का देवता माना जाता है। न्यायकारी होने के कारण उनके दंड के विधान के चलते हर कोई इनसे खौफ खाता है। ज्योतिष में जहां शनि को क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है। वहीं जानकारों का कहना है कि शनि केवल आपके कर्मों के आधार पर ही फल देते हैं, ऐसे में यदि आपके द्वारा गलत कर्म किए गए हैं तो आपको न्याय के विधान के तहत दंड मिलेगा। वहीं यदि आपके कर्म काफी अच्छे रहे हैं तो शनिदेव इसका फल पुरस्कार के रूप में भी देते हैं।
शनिदेव की निगाह को हमेशा घातक माना जाता है, ऐसे में ही एक कथा के अनुसार द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण ने घरती पर अवतरण लिया तो सभी देव उनके बाल रूप के दर्शन के लिए नंद गांव में आए। ऐसे में एक बार शनि भी श्रीकृष्ण से मिलने आए तो मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने उन्हें नंद गांव से करीब 2 किमी दूर ही कोकिलावन में रोक दिया और कहा कि समय आने पर मैं स्वयं तुमसे मिलने आउंगा।
कृष्‍ण ने कहा कि वे नंद गांव के निकट वन में ही तपस्‍या करें, वे वहीं दर्शन देने प्रकट होंगे। तब शनि ने इस स्‍थान पर पर तप किया और प्रसन्‍न श्रीकृष्‍ण ने कोयल रूप में उन्‍हें दर्शन दिए।
इसीलिए इस स्‍थान का नाम कोकिला वन पड़ा। साथ ही कृष्‍ण ने शनिदेव को आर्शीवाद दिया कि वे वहीं विराजमान हों और इस स्‍थान पर जो उनके दर्शन करेगा उस पर शनि की दृष्‍टि वक्र नहीं होगी, बल्‍की उनकी इच्‍छापूर्ति होगी।
मिलता है इच्छित वरदान
श्रीकृष्‍ण ने स्‍वयं भी वहीं पास में राधा के साथ मौजूद रहने का वादा किया। यही स्थान आगे चल कर शनिदेव का प्रसिद्ध धाम बन गया, जो आज शनिदेव के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। जहां हर शनिवार को हजारों की संख्या में भक्त शनिदेव के दर्शन करने व इच्‍छित वरदान मांगने आते हैं।
दुनिया के प्राचीन शनि मंदिरों में से एक
जानकारों के अनुसार उत्तर प्रदेश में कृष्‍ण के ब्रजमंडल में शनिदेव का एक सिद्ध स्‍थान कोसीकलां गांव के पास कोकिलावन के नाम से प्रसिद्ध है। यह स्‍थान कोसी से लगभग 6 किलोमीटर दूर है और नंद गांव से करीब 2 किमी की दूरी पर है। यह शनि मंदिर दुनिया के प्राचीनतक शनि मंदिरों में से एक माना जाता है। यहां शनिदेव दंड देने की जगह पर इच्‍छित वरदान देने वाले की भूमिका में आ जाते हैं। कहा जाता है यहां मांगी मुराद शीघ्र पूरी होती है।
शनि को नंद बाबा ने रोका...
इस मंदिर से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार कहते हैं कि भगवान कृष्ण के समय से स्थापित इस मंदिर को स्‍वयं कान्‍हा के वरदान के बाद यहां स्‍थान मिला था। इस कथा के अनुसार जब कृष्‍ण जन्‍म पर अन्‍य देवताओं के साथ उनके बाल रूप के दर्शन के लिए अन्‍य देवताओं के साथ गए शनि को नंद बाबा ने रोक दिया, क्‍योंकि वे उनकी वक्र दृष्‍टि से भयभीत थे।
तब दुखी शनि को सांत्‍वना देने के लिए कृष्‍ण ने संदेश दिया कि वे नंद गांव के निकट वन में उनकी तपस्‍या करें, वे वहीं दर्शन देने प्रकट होंगे। तब शनि ने इस स्‍थान पर पर तप किया और प्रसन्‍न श्रीकृष्‍ण ने कोयल रूप में उन्‍हें दर्शन दिए। इसीलिए इस स्‍थान का नाम कोकिला वन पड़ा। साथ ही कृष्‍ण ने शनिदेव को आर्शीवाद दिया कि वे वहीं विराजमान हों और इस स्‍थान पर जो उनके दर्शन करेगा उस पर शनि की दृष्‍टि वक्र नहीं होगी, बल्‍की उनकी इच्‍छापूर्ति होगी। कृष्‍ण ने स्‍वयं भी वहीं पास में राधा के साथ मौजूद रहने का वादा किया।
मिलती है शनि की कृपा
तब से शनि धाम के बाईं ओर कृष्‍ण, राधा जी के साथ विराजमान हैं और भक्त किसी भी प्रकार की परेशानी लेकर जब यहां आते हैं, तो उनकी इच्‍छा शनि पूरी करते हैं। मान्‍यता है कि यहां राजा दशरथ द्वारा लिखा शनि स्तोत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करने से शनि की कृपा प्राप्त होती है।
ऐसे पहुंचे शनि के धाम...
मथुरा-दिल्ली नेशनल हाइवे पर मथुरा से 21 किलोमीटर दूर कोसीकलां गांव पड़ता है। यहां से एक रास्‍ता नंदगांव तक आता है, वहीं से कोकिला वन शुरू हो जाता है।
एस्ट्रो धर्म :
Know About Famous Shani Dev Temples In India | शनि देव को ...
आज शुक्रवार 22 मई को शनि देव की जयंती मनाई जा रही है। हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। आज का दिन शनि पूजा के सर्वोत्तम दिन माना जाता है, अगर आपके जीवन में बार-बार एक के बाद दूसरी समस्या आ रहो ही हो, या फिर सालों से कोई ऐसी समस्या है जो दूर होने का नाम ही नहीं ले रही तो अब घबराने की जरूरत नहीं। आज शनि अमावस्या शनि जयंती के दिन ये उपाय जरूर करें।
वैसे तो कुछ लोग हर दिन या फिर शनिवार-मंगलवार के दिन शनि देव की कृपा एवं शुभ फल पाने के लिए विशेष पूजा अर्चना करते हैं, लेकिन शनि जयंती का दिन शनि पूजा के लिए बहुत खास माना जाता है। अगर इस दिन शनि के चरणों में उनको अधिक प्रिय लगने वाले इन फूलों के चढाने से वे शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों को समस्याओं से मुक्त कर कामनाएं भू पूरी कर देते हैं।
शनि जयंती के दिन शनि शाम के समय शनि मंदिर या अपने घर में ही विधिवत पूजन करने के बाद शनि देव के चरणों में केवल नीले रंग के 5 फूल एवं काले तिल के 21 दाने चढ़ा दें। ऐसा करने से शनि देव शीघ्र प्रसन्न होकर हर मनोकामना पूरी कर देते हैं।
ये चीजें चढ़ाएं शनि के चरणों में-
1- शमी के पत्ते- शनि देव को शमी के पत्ते सबसे अदिक प्रिय है, ये पत्ते से शनिदेव तुरंत खुश हो जाते हैं।
2- नीले फूल- शनि को अपराजिता के फूल चढ़ाएं। ये फूल नीले होते हैं। शनि नीले वस्त्र धारण किए रहते हैं और उन्हें नीला रंग प्रिय है। इसी वजह से शनि को ये फूल चढ़ायें जाते हैं।
3- काले तिल- काले तिल का कारक शनि है। शनि को काली चीजें प्रिय है। इसी वजह से शनि की पूजा में काले तिल भी चढ़ाए जाते हैं।
4- सरसों का तेल- शनि को तेल चढ़ाने की परंपरा बहुत पुराने समय से चली आ रही है और अधिकतर लोग शनिवार को तेल का दान भी करते हैं और शनि का अभिषेक भी करते हैं।

एस्ट्रो धर्म:
Shani Jayanti (Shani Birthday) 2020: Shani Birthday Know Shani ...
इस साल 2020 में शनि देव की जयंती का पर्व 22 मई को मनाया जाएगा। शनि जयंती के दिन शनि देव की पूजा अर्चना के श्रद्धापूर्वक शनि देव की इस आरती का गायन करने से प्रसन्न हो जाते हैं। जानें शनि जंयती के दिन शनि देव की आरती और उसे करने का विधान।
शनि देव की आरती करते समय इतना ध्यान रखें-
बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन के सिर्फ आरती नहीं की जा सकती। हमेशा किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति पर ही आरती करना श्रेष्ठ होता है। आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक, दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित कर आरती की जा सकती है। अगर मंदिर में दीपक से आरती करें तो यह पंचमुखी दीपक होना चाहिए।
ऐसे करें शनि देव की आरती
आरती की थाल को इस प्रकार घुमाएं कि ॐ की आकृति बन सके। आरती को भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाना चाहिए। आरती से ऊर्जा लेते समय सर ढंका रखें। दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर नेत्रों पर और सर के मध्य भाग पर लगायें। आरती लेने के बाद कम से कम पांच मिनट तक जल का स्पर्श नहीं करना चाहिए। आरती की थाल में दक्षिणा या अक्षत जरूर डालना चाहिए। कहा जाता है कि शनिदेव की आरती और भजनों का श्रद्धा पूर्वक गायन करने से शनि देव व्यक्ति की हर तरह की विपत्तियों से रक्षा करते हैं।
।। आरती शनि देव की ।।
1- जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।

2- निलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
क्रीट मुकुट शीश सहज दिपत है लिलारी।

3- मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
मोदक और मिष्ठान चढ़े, चढ़ती पान सुपारी।

4- लोहा, तिल, तेल, उड़द महिषी है अति प्यारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान हम हैं शरण तुम्हारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
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एस्ट्रो धर्म :
Shani Dev Temple Kharsali, Mythological Importance, Timings
सनातन धर्म में शनि को न्याय का देवता माना गया है। ऐसे में हिंदू धर्म में शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। माना जाता है कि शनि हमारे जीवन को अत्यधिक प्रभावित करते हैं।
वहीं ज्योतिष के अनुसार जो लोग अपनी कुंडली से शनि की दशा को सुधारना चाहते हैं वे शनिवार के दिन शनि मंदिर जरूर जाएं। वैसे तो हमारे भारत देश में ऐसे बहुत से मंदिर स्थापित हैं, जिनकी मान्यताएं दूर-दूर तक फैली हुई हैं। लेकिन आज हम आपको शनिदेव के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां साल में एक बार चमत्कार जरूर होता है।
समुद्री तल से लगभग 7000 फुट की ऊंचाई पर
बताया जाता है कि यह मंदिर समुद्री तल से लगभग 7000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार न्याय के देवता शनिदेव को हिंदू देवी यमुना का भाई है। देवभूमि उत्तराखंड के खरसाली में शनिदेव का धाम स्थित है। बताया जाता है कि यहां लोग अपने कष्टों को दूर करने के लिए हर साल बड़ी संख्या में आते हैं और शनिदेव का दर्शन करते हैं।
मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था। यह मंदिर पांच मंजिला है, लेकिन बाहर से देखने से पता नहीं चल पाता कि यह मंदिर पांच मंजिला है। जानकारों के अनुसार इस मंदिर के निर्माण में पत्थर और लकड़ी का उपयोग किया गया है।
अखंड ज्योति : जो दूर करती है जीवन के सारे दुख
वहीं इस मंदिर में शनिदेव की कांस्य की मूर्ति विराजमान है और साथ ही यहां एक अखंड ज्योति भी मौजूद है। मान्यता है कि इस अखंड ज्योति के दर्शन मात्र से ही जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं और शनि दोष से मुक्ति मिल जाती है। कहते हैं कि इस मंदिर में साल में एक बार चमत्कार होता है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन मंदिर के ऊपर रखे घड़े खुद बदल जाते हैं। बताया जाता है कि इस दिन जो भक्त शनि मंदिर में आता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
शनिदेव यहां आते हैं बहन यमुना से मिलने
यहां प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार प्रतिवर्ष अक्षय तृतीय पर शनि देव यमुनोत्री धाम में अपनी बहन यमुना से मिलकर खरसाली लौटते हैं। भाईदूज या यम द्वितिया के त्यौहार यमुना को खरसाली ले जा सकते हैं, ये पर्व दिवाली के दो दिन बाद आता है।
शनिदेव और देवी यमुना को पूजा-पाठ कर के एक धार्मिक यात्रा के साथ लाया ले जाया जाता है। मंदिर में शनि देव 12 महीने तक विराजमान रहते हैं और सावन की संक्रांति में खरसाली में तीन दिवसीय शनि देव मेला भी आयोजित किया जाता है।



ऐस्ट्रो धर्म :
Shani Jayanti 2020 Impact On Taurus Horoscope Vrish Rashi - शनि ...

26 अक्टूबर से शनि देव कस गृह बदल रहा है। कुछ को राहत मिलेगी। कुछ पर शनिदेव की साढ़े साती और ढैय्या आएगी। डरिए मत। किसी का बुरा मत करिये। सही सही चलते रहे। शनि की कृपा बनी रहेगी।।
भय की उत्पत्ति कैसे हुई? भय का कारक मन है। मन चंचल है। शंकालु है। भय के बिना प्रीति नहीं होती। यदि कहें कि ईश्वर नहीं है। तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। तुम नहीं मरोगे। घर में क्लेश नहीं होगा। धन-धान्य के साथ तुम सदा ही सुख शांति से जीवन व्यतीत करोगे। तो शायद कोई भी ईश्वर की शरण में न जाए। लेकिन यह कपोलकल्पित अवधारणा होगी। जो शाश्वत है, उसको स्वीकारना होगा। सत्य है कि जो आया है, वह जाएगा भी। इसी प्रकार यह भी सत्य है कि लोक-प्रशासन फूलों से नहीं चला करता। अगर फूलों से चला होता तो दंड की आवश्यकता ही नहीं होती। न अदालतें होतीं, न सामाजिक पंचायतें होतीं, न कानून होता, न जेल होती और न होती पुलिस-सेना। यानि सत्ता-प्रशासन के लिए दंड को प्रबल माना गया। संभवतया यही कारण रहा होगा कि दंड (लाठी-डंडा-स्टिक-शस्त्र-अस्त्र) राजा-महाराजा से लेकर पुलिस और सेना तक आजतक है। किसी भी सैन्य और पुलिसकर्मी की पहचान उसके दंड से है। राजा की भी पहचान दंड से है। सत्ता की पहचान भी दंड से है। देश की पहचान वहां की सामाजिक व्यवस्था और दंड विधान से है। हर देश की दंड संहिता है। ऐसे में यदि तीनों लोकों की दंड संहिता शनिदेव के पास है, तो वह क्रूर कैसे हुए? 
एक बार लक्ष्मी जी ने यही सवाल शनि देव से किया। लक्ष्मी जी ने पूछा-शनिदेव, आपको लोग क्रूर कहते हैं? कहते हैं कि आप किसी के साथ भी रियायत नहीं करते। ऐसा क्यों है? शनिदेव ने कहा कि मुझको तीनों लोकों का दंडाधिकारी बनाया गया है। मैं ही रियायत करने लगा तो प्रशासन कैसे चलेगा। लक्ष्मी जी बोली-मृत्युलोक तो ठीक है, लेकिन तुम तो देवताओं पर भी कृपा नहीं करते। शनिजी ने प्रत्युत्तर दिया-मृत्युलोक से अधिक दंड का प्रावधान तो देवलोक में होना चाहिए। 
शनि महाराज दंडाधिकारी तो हैं लेकिन क्रूर शासक नहीं। दुर्भाग्यवश, उनको आज क्रूर शासक कहकर प्रचारित किया जाता है। क्रूर शासक कभी भी अत्याचारी, अनाचारी, पापियों को सजा नहीं देता। वह स्वयं ही गलत होता है तो वह गलत लोगों को ही प्रश्रय देता है। लेकिन शनि महाराज तो ऐसे नहीं हैं? वह तो गलत चीज को सहन ही नहीं करते। वह अनाचारी और पापियों को सजा देते हैं। दंड तो उन्होंने सभी को दिया। देवताओं को भी दिया। शंकर जी के वह प्रिय हैं, लेकिन शंकर जी भी शनि महाराज से नहीं बच सके। राजा दशरथ भी नहीं बच सके। रावण और कंस को भी नहीं बख्शा। कहते हैं, शनि और राहू की युति से ही भगवान श्रीकृष्ण किसी एक स्थान पर नहीं रहे, उनको विचरण करना पड़ा। शनिजी के चरित का एक ही सार है-परहित सरिस धर्म नहीं भाई। परहित करने वाले से वह प्रसन्न होते हैं। परपीड़ा सहन नहीं। राजा हो या दंडाधिकारी-उसका चरित्र ऐसा ही होना चाहिए। धर्म की तीसरी अवधारणा ही दंड है। भाव यह है कि दंड बिना धर्म की भी रक्षा नहीं होती। 
शनि के स्वभाव
शनि महाराज सूर्य के पुत्र हैं। सूर्य से इनकी पटती नही है। खगोलीय हिसाब से भी देखें तो इन दोनों (पिता-पुत्र) ग्रहों के बीच बहुत दूरी (८८ करोड़ 61 लाख मील) है। एक पूरब तो एक पश्चिम। इनका रंग काला और दिन शनिवार है। इसकी गति बेहद मंद है। इस कारण समस्त काम मंद गति से ही पूरे होते हैं। बनते-बनते काम बिगड़ जाते हैं। अनावश्यक भय और शत्रु पीड़ा होती है। जमीन-जायदाद के झगड़े, व्यापार में नुकसान, विवाह में अड़चन और प्राकृतिक आपदा होती है। शारीरिक कष्टï खासतौर पर हड्डिïयों से संबंधित रोग होते हैं। 
शनि करे सबकी खैर
आजकल, शनिदेव को लेकर कई भ्रांतियां हैं। लगता है, मानो शनि सबका काम बिगाडऩे के लिए ही हैं। शनि से भयभीत लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही है। शनि किसी को भयभीत करने के लिए नहीं है। भय तो जातक के अंतर मेंं है। उससे बेहतर कौन जान सकता है कि उसके कर्म क्या हैं? वह लोगों को धोखा दे रहा है या अपना हित साध रहा है। स्वार्थी, परपीड़क, भोगी-विलासी, क्रूर, अनाचारी पर अंकुश रखते हैं शनिदेव। आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक तीनों के केंद्र में रहने वाले शनि देव मुख्यतया प्रकृति और प्रवृत्ति के देवग्रह हैं। फिर चाहे, वह समाज हो या व्यवस्था। वह संतुलन के देव हैं। नेतृत्व करने वाले, समायोजक और दंडाधिकारी। इसको इस प्रकार भी कह सकते हैं कि वह सुुप्रीम कोर्ट है। जिस प्रकार सर्वोच्च अदालत विधि संहिता का पालन करते हुए गुण-दोष की विवेचना करते हुए अपना फैसला सुनाती है और दंड निर्धारित करती है, उसी प्रकार शनि देव की अदालत है। किसी के साथ रियायत नहीं। राजा हो या रंक। 
शनि देव के लिये उपाय
शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनि, काली, भैरव, भगवान शंकर और हनुमानजी की पूजा करें। 
(ये समस्त देव कल्याण, मोक्ष और संकटमोचक हैं। आपकी पैरवी करने वाले वकील जानिए। ) 
-प्रति शनिवार कांसे की कटोरी में सरसो का तेल डालकर उसमें अपनी छवि देखकर छाया दान करें। 
(भाव यह हैकि अपना चेहरा देख लीजिए, कैसे हैं आप? याचना करिए, शनिमहाराज,मेरे पापों को दूर करो।)
पीपल के वृक्ष पर सरसो के तेल का दीपक जलाएं।
(यह मोक्ष का आधार है। पीपल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास है। जीवन की तीन अवस्था और त्रिदेव।)
-पीपल पर ग्यारह लोटे जल चढ़ाएं। 
-शनिवार का व्रत करें। लोहे का छल्ला पहनें।
-शनि चालीसा, शनि कवच और सुंदरकांड का पाठ करें। 
-शनि की काले तिलों और गुड़ से पूजन करें। 
-गरीबों की मदद करे। बेसहारों को सहारा दें
- बुरे कामों से बचे, झूठ न बोलें, धोखा न दें
एस्ट्रो धर्म :
Shani Dev Positive Tips Brings Happiness - शनिदेव कष्ट ...
ज्योतिषशास्त्र या वास्तु शास्त्र के अनुसार व्यक्ति जब भी परेशानी में होता है तो वह सबसे पहले उपाय की तलाश करता है। क्योंकि इस दोनों ही शास्त्रों में आसानी से उपाय मिल जाते हैं, जो की व्यक्ति के लिए करना बहुत आसान होता है। कभी कोई पूजा करते हैं तो कभी रत्‍न पहनते हैं या फिर अंगूठियां धारण करते हैं। 
यदि किसी व्यक्ति को सभी प्रयासों के बाद भी हर कार्य में निराशा मिल रही हो तो उनके लिए ज्‍योतिष और वास्‍तु शास्‍त्र में ऐसी ही 6 खास तरह की अंगूठियां बताई गई हैं, जो जीवन में सुख-समृद्धि लेकर आती हैं। साथ ही व्यक्ति की धन संबंधी समस्याएं भी जल्द खत्म होने लगेगी। आइए जानते हैं...
धन-संपदा व आय में बढ़ोतरी के लिए करें धारण
वास्तुशास्त्र के अनुसार कछुए वाली अंगूठी व्यक्ति के जीवन के सारे दुखों का खात्मा करती है और कुंडली में मौजूद दोषों से मुक्ति दिलाती है। इसलिए कछुए वाली अंगूठी किसी व्यक्ति की किस्‍मत चमकाने के लिए पहनाई जाती है। इसके अलावा इसे पहनने से आत्‍मविश्‍वास में भी वृद्धि होती है। वास्‍तु के मुताबिक कछुए वाली अंगूठी से धन-संपदा में भी वृद्धि होती है।
पद-प्रतिष्‍ठा और सम्‍मान पाने के लिए पहनें तांबे की अंगूठी

ज्‍योतिषशास्‍त्र में माना जाता है की तांबे की अगूंठी पहनने से सूर्य दोषों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही जिस किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य की स्थिति शुभ नहीं होती उन व्यक्तियों को तांबे की अंगूठी धारण करना चाहिए। यह अंगूठी व्‍यक्ति को समाज में मान-सम्मान और पद-प्रतिष्‍ठा दिलाती है। इसके अलावा तांबे में औषधीय गुण तो होते ही हैं। इसके चलते शरीर के चर्म रोग जैसे कई विकार दूर होते हैं। 
घोड़े की नाल दिलाती है शनि दोषों से मुक्ति
जिन जातकों को शनि दोष होता है व शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही होती है उन लोगों के लिए घोड़े की नाल बहुत लाभकारी होती है। काले घोड़े की नाल से बनी अंगूठी पहनने से व्यक्ति को बहुत राहत मिलती है। साथ ही शनि की पीड़ा से भी जल्द मुक्ति मिलती है।
आर्थिक संकटो से मुक्ति दिलाती है हाथी की अंगूठी
ज्‍योतिष शास्‍त्र के अनुसार जिन जातकों को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ रहा हो ऐसे व्यक्तियों हाथी वाली अंगूठी धारण करनी चाहिए। हाथी वाली अंगूठी पहनने से जातक आर्थिक संकटों से मुक्ति पाकर धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है।

दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल। दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज। करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज

जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति-मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥

दोहा
पाठ शनिश्चर देव को, की हों 'भक्त' तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

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॥दोहा॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥

जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्ो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गतिमति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजीमीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देवलखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
॥दोहा॥ पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥