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Shani Jayanti 2020 Impact On Taurus Horoscope Vrish Rashi - शनि ...

26 अक्टूबर से शनि देव कस गृह बदल रहा है। कुछ को राहत मिलेगी। कुछ पर शनिदेव की साढ़े साती और ढैय्या आएगी। डरिए मत। किसी का बुरा मत करिये। सही सही चलते रहे। शनि की कृपा बनी रहेगी।।
भय की उत्पत्ति कैसे हुई? भय का कारक मन है। मन चंचल है। शंकालु है। भय के बिना प्रीति नहीं होती। यदि कहें कि ईश्वर नहीं है। तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। तुम नहीं मरोगे। घर में क्लेश नहीं होगा। धन-धान्य के साथ तुम सदा ही सुख शांति से जीवन व्यतीत करोगे। तो शायद कोई भी ईश्वर की शरण में न जाए। लेकिन यह कपोलकल्पित अवधारणा होगी। जो शाश्वत है, उसको स्वीकारना होगा। सत्य है कि जो आया है, वह जाएगा भी। इसी प्रकार यह भी सत्य है कि लोक-प्रशासन फूलों से नहीं चला करता। अगर फूलों से चला होता तो दंड की आवश्यकता ही नहीं होती। न अदालतें होतीं, न सामाजिक पंचायतें होतीं, न कानून होता, न जेल होती और न होती पुलिस-सेना। यानि सत्ता-प्रशासन के लिए दंड को प्रबल माना गया। संभवतया यही कारण रहा होगा कि दंड (लाठी-डंडा-स्टिक-शस्त्र-अस्त्र) राजा-महाराजा से लेकर पुलिस और सेना तक आजतक है। किसी भी सैन्य और पुलिसकर्मी की पहचान उसके दंड से है। राजा की भी पहचान दंड से है। सत्ता की पहचान भी दंड से है। देश की पहचान वहां की सामाजिक व्यवस्था और दंड विधान से है। हर देश की दंड संहिता है। ऐसे में यदि तीनों लोकों की दंड संहिता शनिदेव के पास है, तो वह क्रूर कैसे हुए? 
एक बार लक्ष्मी जी ने यही सवाल शनि देव से किया। लक्ष्मी जी ने पूछा-शनिदेव, आपको लोग क्रूर कहते हैं? कहते हैं कि आप किसी के साथ भी रियायत नहीं करते। ऐसा क्यों है? शनिदेव ने कहा कि मुझको तीनों लोकों का दंडाधिकारी बनाया गया है। मैं ही रियायत करने लगा तो प्रशासन कैसे चलेगा। लक्ष्मी जी बोली-मृत्युलोक तो ठीक है, लेकिन तुम तो देवताओं पर भी कृपा नहीं करते। शनिजी ने प्रत्युत्तर दिया-मृत्युलोक से अधिक दंड का प्रावधान तो देवलोक में होना चाहिए। 
शनि महाराज दंडाधिकारी तो हैं लेकिन क्रूर शासक नहीं। दुर्भाग्यवश, उनको आज क्रूर शासक कहकर प्रचारित किया जाता है। क्रूर शासक कभी भी अत्याचारी, अनाचारी, पापियों को सजा नहीं देता। वह स्वयं ही गलत होता है तो वह गलत लोगों को ही प्रश्रय देता है। लेकिन शनि महाराज तो ऐसे नहीं हैं? वह तो गलत चीज को सहन ही नहीं करते। वह अनाचारी और पापियों को सजा देते हैं। दंड तो उन्होंने सभी को दिया। देवताओं को भी दिया। शंकर जी के वह प्रिय हैं, लेकिन शंकर जी भी शनि महाराज से नहीं बच सके। राजा दशरथ भी नहीं बच सके। रावण और कंस को भी नहीं बख्शा। कहते हैं, शनि और राहू की युति से ही भगवान श्रीकृष्ण किसी एक स्थान पर नहीं रहे, उनको विचरण करना पड़ा। शनिजी के चरित का एक ही सार है-परहित सरिस धर्म नहीं भाई। परहित करने वाले से वह प्रसन्न होते हैं। परपीड़ा सहन नहीं। राजा हो या दंडाधिकारी-उसका चरित्र ऐसा ही होना चाहिए। धर्म की तीसरी अवधारणा ही दंड है। भाव यह है कि दंड बिना धर्म की भी रक्षा नहीं होती। 
शनि के स्वभाव
शनि महाराज सूर्य के पुत्र हैं। सूर्य से इनकी पटती नही है। खगोलीय हिसाब से भी देखें तो इन दोनों (पिता-पुत्र) ग्रहों के बीच बहुत दूरी (८८ करोड़ 61 लाख मील) है। एक पूरब तो एक पश्चिम। इनका रंग काला और दिन शनिवार है। इसकी गति बेहद मंद है। इस कारण समस्त काम मंद गति से ही पूरे होते हैं। बनते-बनते काम बिगड़ जाते हैं। अनावश्यक भय और शत्रु पीड़ा होती है। जमीन-जायदाद के झगड़े, व्यापार में नुकसान, विवाह में अड़चन और प्राकृतिक आपदा होती है। शारीरिक कष्टï खासतौर पर हड्डिïयों से संबंधित रोग होते हैं। 
शनि करे सबकी खैर
आजकल, शनिदेव को लेकर कई भ्रांतियां हैं। लगता है, मानो शनि सबका काम बिगाडऩे के लिए ही हैं। शनि से भयभीत लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही है। शनि किसी को भयभीत करने के लिए नहीं है। भय तो जातक के अंतर मेंं है। उससे बेहतर कौन जान सकता है कि उसके कर्म क्या हैं? वह लोगों को धोखा दे रहा है या अपना हित साध रहा है। स्वार्थी, परपीड़क, भोगी-विलासी, क्रूर, अनाचारी पर अंकुश रखते हैं शनिदेव। आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक तीनों के केंद्र में रहने वाले शनि देव मुख्यतया प्रकृति और प्रवृत्ति के देवग्रह हैं। फिर चाहे, वह समाज हो या व्यवस्था। वह संतुलन के देव हैं। नेतृत्व करने वाले, समायोजक और दंडाधिकारी। इसको इस प्रकार भी कह सकते हैं कि वह सुुप्रीम कोर्ट है। जिस प्रकार सर्वोच्च अदालत विधि संहिता का पालन करते हुए गुण-दोष की विवेचना करते हुए अपना फैसला सुनाती है और दंड निर्धारित करती है, उसी प्रकार शनि देव की अदालत है। किसी के साथ रियायत नहीं। राजा हो या रंक। 
शनि देव के लिये उपाय
शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनि, काली, भैरव, भगवान शंकर और हनुमानजी की पूजा करें। 
(ये समस्त देव कल्याण, मोक्ष और संकटमोचक हैं। आपकी पैरवी करने वाले वकील जानिए। ) 
-प्रति शनिवार कांसे की कटोरी में सरसो का तेल डालकर उसमें अपनी छवि देखकर छाया दान करें। 
(भाव यह हैकि अपना चेहरा देख लीजिए, कैसे हैं आप? याचना करिए, शनिमहाराज,मेरे पापों को दूर करो।)
पीपल के वृक्ष पर सरसो के तेल का दीपक जलाएं।
(यह मोक्ष का आधार है। पीपल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास है। जीवन की तीन अवस्था और त्रिदेव।)
-पीपल पर ग्यारह लोटे जल चढ़ाएं। 
-शनिवार का व्रत करें। लोहे का छल्ला पहनें।
-शनि चालीसा, शनि कवच और सुंदरकांड का पाठ करें। 
-शनि की काले तिलों और गुड़ से पूजन करें। 
-गरीबों की मदद करे। बेसहारों को सहारा दें
- बुरे कामों से बचे, झूठ न बोलें, धोखा न दें

दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल। दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज। करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज

जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति-मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥

दोहा
पाठ शनिश्चर देव को, की हों 'भक्त' तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

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