Articles by "श्री लक्ष्मी"
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एस्ट्रो न्यूज़ :



कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो अपने घर में मां लक्ष्मी का आगमन नहीं चाहता होगा। जिस घर में मां लक्ष्मी का निवास होता है वहां कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होती। जहां देवी लक्ष्मी धन, सुख और संपदा की देवी हैं और उनकी पूजा-अर्जना करने से धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, दूसरी तरफ गरीबी, बीमारी और दरिद्रता की भी देवी हैं जिनका नाम अलक्ष्मी है। देवी अलक्ष्मी माता लक्ष्मी की बड़ी बहन है। कुछ कारणों से घर पर देवी लक्ष्मी की जगह उनकी बड़ी बहन और दरिद्रता की देवी अलक्ष्मी अपना निवास स्थान बना लेती हैं।
- देवी अलक्ष्मी उन ही घरों में जाती हैं जहां गंदगी रहती है।
- जिन घरों में हमेशा लोग लड़ाई- झगड़े करते हैं वहां पर दरिद्रता की देवी मां लक्ष्मी अपना डेरा जमा लेती हैं। इस कारण से इन घर में हमेशा आर्थिक परेशानियां रहती है।
- जो लोग गंदे कपड़े पहनते हैं और जीवों को परेशान करते हैं उन घरों पर अलक्ष्मी निवास करती हैं।
-  देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने के बावजूद जिन लोगों को हमेशा पैसों की हानि होती रहती है, ऐसे लोगों पर देवी अलक्ष्मी का प्रभाव होता है। 

कैसे पाएं देवी लक्ष्मी की कृपा
- कभी भी देवी लक्ष्मी की ऐसी मूर्ति या फोटो को नहीं रखनी चाहिए जिसमें वह उल्लू पर बैठी हों।
- देवी लक्ष्मी की खड़ी हुई मूर्ति रखने से बचना चाहिए।
- कमल के फूल पर बैठी देवी लक्ष्मी की मूर्ति और तस्वीर शुभ मानी जाती जाती है। घर और दुकान पर ऐसी मूर्ति रखना धन लाभ के लिए शुभ फलदायी होती है।


ऐस्ट्रो  धर्म :


रविवार, 26 अप्रैल को अक्षय तृतीया है। इस तिथि पर भगवान विष्णु और उनके अवतारों की
विशेष पूजा की जाती है। घर में सुख-समृद्धि बनाए रखने की कामना से विष्णुजी के साथ ही लक्ष्मीजी की भी पूजा जरूर करनी चाहिए। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार जानिए लक्ष्मी पूजा की सरल विधि...
श्री लक्ष्मी पूजन की सरल विधि 10 स्टेप्स में
अक्षय तृतीया पर स्नान के बाद घर के मंदिर में ही लक्ष्मी पूजन की व्यवस्था करें। पूजा शुरू करने से पहले गणेशजी का पूजन करें। भगवान गणेश को स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। गंध, पुष्प, चावल चढ़ाएं।
गणेशजी के बाद देवी लक्ष्मी की पूजा शुरू करें। माता लक्ष्मी के साथ ही भगवान विष्णु की चांदी, पारद या स्फटिक की प्रतिमा का पूजन कर सकते हैं।
देवी-देवताओं की मूर्ति अपने पूजा घर में स्थापित करें। मूर्ति में माता लक्ष्मी आवाहन करें। आवाहन यानी माता लक्ष्मी को आमंत्रित करें। लक्ष्मी को अपने घर बुलाएं। 
माता लक्ष्मी को अपने घर में सम्मान सहित स्थान दें। यानी आसन दें। ये भावनात्मक रूप से करना चाहिए। माता लक्ष्मी को स्नान कराएं। स्नान पहले जल से फिर पंचामृत से और फिर जल से कराना चाहिए।
माता लक्ष्मी को वस्त्र अर्पित करें। वस्त्रों के बाद आभूषण पहनाएं। पुष्पमाला पहनाएं। सुगंधित इत्र अर्पित करें। प्रसाद चढ़ाएं। कुमकुम से तिलक करें। अब धूप और दीप जलाएं। माता लक्ष्मी को गुलाब और कमल के फूल विशेष प्रिय है। ये फूल चढ़ाएं। चावल अर्पित करें। घी या तेल का दीपक जलाएं। आरती करें। परिक्रमा करें। महालक्ष्मी पूजन में ऊँ महालक्ष्मयै नमः मंत्र का जाप करना चाहिए।


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देव्युवाच
देवदेव! महादेव! त्रिकालज्ञ! महेश्वर!
करुणाकर देवेश! भक्तानुग्रहकारक! ॥
अष्टोत्तर शतं लक्ष्म्याः श्रोतुमिच्छामि तत्त्वतः ॥

ईश्वर उवाच
देवि! साधु महाभागे महाभाग्य प्रदायकम् ।
सर्वैश्वर्यकरं पुण्यं सर्वपाप प्रणाशनम् ॥
 
सर्वदारिद्र्य शमनं श्रवणाद्भुक्ति मुक्तिदम् ।
राजवश्यकरं दिव्यं गुह्याद्-गुह्यतरं परम् ॥
 
दुर्लभं सर्वदेवानां चतुष्षष्टि कलास्पदम् ।
पद्मादीनां वरान्तानां निधीनां नित्यदायकम् ॥
 
समस्त देव संसेव्यम् अणिमाद्यष्ट सिद्धिदम् ।
किमत्र बहुनोक्तेन देवी प्रत्यक्षदायकम् ॥
 
तव प्रीत्याद्य वक्ष्यामि समाहितमनाश्शृणु ।
अष्टोत्तर शतस्यास्य महालक्ष्मिस्तु देवता ॥
 
क्लीं बीज पदमित्युक्तं शक्तिस्तु भुवनेश्वरी ।
अङ्गन्यासः करन्यासः स इत्यादि प्रकीर्तितः ॥

ध्यानम्
वन्दे पद्मकरां प्रसन्नवदनां सौभाग्यदां भाग्यदां
हस्ताभ्यामभयप्रदां मणिगणैः नानाविधैः भूषिताम् ।
भक्ताभीष्ट फलप्रदां हरिहर ब्रह्माधिभिस्सेवितां
पार्श्वे पङ्कज शङ्खपद्म निधिभिः युक्तां सदा शक्तिभिः ॥

सरसिज नयने सरोजहस्ते धवल तरांशुक गन्धमाल्य शोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीदमह्यम् ॥

प्रकृतिं, विकृतिं, विद्यां, सर्वभूत हितप्रदाम् ।
श्रद्धां, विभूतिं, सुरभिं, नमामि परमात्मिकाम् ॥ 1 ॥

वाचं, पद्मालयां, पद्मां, शुचिं, स्वाहां, स्वधां, सुधाम् ।
धन्यां, हिरण्ययीं, लक्ष्मीं, नित्यपुष्टां, विभावरीम् ॥ 2 ॥

अदितिं च, दितिं, दीप्तां, वसुधां, वसुधारिणीम् ।
नमामि कमलां, कान्तां, क्षमां, क्षीरोद सम्भवाम् ॥ 3 ॥

अनुग्रहपरां, बुद्धिं, अनघां, हरिवल्लभाम् ।
अशोका,ममृतां दीप्तां, लोकशोक विनाशिनीम् ॥ 4 ॥

नमामि धर्मनिलयां, करुणां, लोकमातरम् ।
पद्मप्रियां, पद्महस्तां, पद्माक्षीं, पद्मसुन्दरीम् ॥ 5 ॥

पद्मोद्भवां, पद्ममुखीं, पद्मनाभप्रियां, रमाम् ।
पद्ममालाधरां, देवीं, पद्मिनीं, पद्मगन्धिनीम् ॥ 6 ॥

पुण्यगन्धां, सुप्रसन्नां, प्रसादाभिमुखीं, प्रभाम् ।
नमामि चन्द्रवदनां, चन्द्रां, चन्द्रसहोदरीम् ॥ 7 ॥

चतुर्भुजां, चन्द्ररूपां, इन्दिरा,मिन्दुशीतलाम् ।
आह्लाद जननीं, पुष्टिं, शिवां, शिवकरीं, सतीम् ॥ 8 ॥

विमलां, विश्वजननीं, तुष्टिं, दारिद्र्य नाशिनीम् ।
प्रीति पुष्करिणीं, शान्तां, शुक्लमाल्याम्बरां, श्रियम् ॥ 9 ॥

भास्करीं, बिल्वनिलयां, वरारोहां, यशस्विनीम् ।
वसुन्धरा, मुदाराङ्गां, हरिणीं, हेममालिनीम् ॥ 10 ॥

धनधान्यकरीं, सिद्धिं, स्रैणसौम्यां, शुभप्रदाम् ।
नृपवेश्म गतानन्दां, वरलक्ष्मीं, वसुप्रदाम् ॥ 11 ॥

शुभां, हिरण्यप्राकारां, समुद्रतनयां, जयाम् ।
नमामि मङ्गलां देवीं, विष्णु वक्षःस्थल स्थिताम् ॥ 12 ॥

विष्णुपत्नीं, प्रसन्नाक्षीं, नारायण समाश्रिताम् ।
दारिद्र्य ध्वंसिनीं, देवीं, सर्वोपद्रव वारिणीम् ॥ 13 ॥

नवदुर्गां, महाकालीं, ब्रह्म विष्णु शिवात्मिकाम् ।
त्रिकालज्ञान सम्पन्नां, नमामि भुवनेश्वरीम् ॥ 14 ॥

 लक्ष्मीं क्षीरसमुद्रराज तनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीम् ।
दासीभूत समस्तदेव वनितां लोकैक दीपाङ्कुराम् ॥
श्रीमन्मन्द कटाक्ष लब्ध विभवद्-ब्रह्मेन्द्र गङ्गाधराम् ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥ 15 ॥

मातर्नमामि! कमले! कमलायताक्षि!
श्री विष्णु हृत्-कमलवासिनि! विश्वमातः!
क्षीरोदजे कमल कोमल गर्भगौरि!
लक्ष्मी! प्रसीद सततं समतां शरण्ये ॥ 16 ॥

त्रिकालं यो जपेत् विद्वान् षण्मासं विजितेन्द्रियः ।
दारिद्र्य ध्वंसनं कृत्वा सर्वमाप्नोत्-ययत्नतः ।
देवीनाम सहस्रेषु पुण्यमष्टोत्तरं शतम् ।
येन श्रिय मवाप्नोति कोटिजन्म दरिद्रतः ॥ 17 ॥

भृगुवारे शतं धीमान् पठेत् वत्सरमात्रकम् ।
अष्टैश्वर्य मवाप्नोति कुबेर इव भूतले ॥
दारिद्र्य मोचनं नाम स्तोत्रमम्बापरं शतम् ।
येन श्रिय मवाप्नोति कोटिजन्म दरिद्रतः ॥ 18 ॥

भुक्त्वातु विपुलान् भोगान् अन्ते सायुज्यमाप्नुयात् ।
प्रातःकाले पठेन्नित्यं सर्व दुःखोप शान्तये ।
पठन्तु चिन्तयेद्देवीं सर्वाभरण भूषिताम् ॥ 19 ॥

इति श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रं सम्पूर्णम्
लक्ष्मी हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं । वो भगवान विष्णु की पत्नी हैं और धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं । दीपावली के त्योहार में उनकी गणेश सहित पूजा की जाती है । गायत्री की कृपा से मिलने वाले वरदानों में एक लक्ष्मी भी है । जिस पर यह अनुग्रह उतरता है, वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, असंतुष्ट एवं पिछड़ेपन से ग्रसित नहीं रहता । स्वच्छता एवं सुव्यवस्था के स्वभाव को भी 'श्री' कहा गया है । यह सद्गुण जहाँ होंगे, वहाँ दरिद्रता, कुरुपता टिक नहीं सकेगी । पदार्थ को मनुष्य के लिए उपयोगी बनाने और उसकी अभीष्ट मात्रा उपलब्ध करने की क्षमता को लक्ष्मी कहते हैं । यों प्रचलन में तो 'लक्ष्मी' शब्द सम्पत्ति के लिए प्रयुक्त होता है, पर वस्तुतः वह चेतना का एक गुण है, जिसके आधार पर निरुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोगी बनाया जा सकता है । मात्रा में स्वल्प होते हुए भी उनका भरपूर लाभ सत्प्रयोजनों के लिए उठा लेना एक विशिष्ट कला है । वह जिसे आती है उसे लक्ष्मीवान्, श्रीमान् कहते हैं । शेष अमीर लोगों को धनवान् भर कहा जाता है । गायत्री की एक किरण लक्ष्मी भी है । जो इसे प्राप्त करता है, उसे स्वल्प साधनों में भी अथर् उपयोग की कला आने के कारण सदा सुसम्पन्नों जैसी प्रसन्नता बनी रहती है ।

॥ दोहा॥ मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥
॥ सोरठा॥ यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
॥ चौपाई ॥ सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥
॥ दोहा॥त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥