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ऐस्ट्रो धर्म 

विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल खाटू श्याम जी  में बाबा श्याम के फाल्गुनी लक्खी  मेले में देशभर से श्रद्धालु बाबा श्याम  के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए उमड़ रहे हैं
- हारे के सहारे की जय, तीन बाण धारी की जय, लखदातार की जय जैसे अनेक जयकारों से बाबा श्याम का दरबार गुंजायमान हो रहा है
- देश का इकलौता मंदिर, जहां केवल शीश की होती है पूजा
देश में इन दिनों एक गांव धार्मिक स्थल का सबसे बड़ा केन्द्र बना हुआ है। विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल खाटूश्यामजी  में बाबा श्याम के फाल्गुनी लक्खी मेले में देशभर से श्रद्धालु बाबा श्याम  के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए उमड़ रहे हैं। कोई पेट पलायन तो कोई हाथों में श्याम ध्वजा लेकर दरबार में पहुंच रहा है। हारे के सहारे की जय, तीन बाण धारी की जय, लखदातार की जय जैसे अनेक जयकारों से बाबा श्याम  का दरबार गुंजायमान हो रहा है। पूरी खाटू नगरी श्याम रंग में रंगी हुई है। सतरंगी बाबा श्याम के मेले में अब तक 40 लाख से ज्यादा भक्तों ने शीश नवाया है। अलग-अलग नामों से प्रसिद्घ बाबा श्याम का इतिहास भी बड़ा निराला है।
भक्तों से अटा खाटूश्यामजी, 30 किलोमीटर तक जाम
आस्था ऐसी कि पूरा खाटूधाम भक्तों से अटा हुआ है। हर ओर भक्त ही भक्त। लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। हालांकि, मेले को लेकर प्रशासन ने पुख्ता इंतजाम किए है, लेकिन आस्था के आगे बोने रह गए। स्थिति यह है कि सड़क पर 30 किलोमीटर तक लम्बा जाम लगा रहा।
श्री कृष्ण ने दिया था वरदान 
श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर वीर बर्बरीक के शीश को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगा और तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कि प्राप्ति होगी। स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित श्याम कुण्ड से प्रकट होकर अपने कृष्ण विराट सालिग्राम श्री श्याम रूप में सम्वत 1777 में निर्मित वर्तमान खाटू श्याम जी मंदिर में भक्तों कि मनोकामनाएं पूर्ण कर रहे हैं। एक बार खाटू नगर के राजा को सपने में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए कहा। इस दौरान उन्होंने खाटू धाम में मन्दिर का निर्माण कर कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया। वहीं मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720 ई. में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया, तब से आज तक मंदिर की चमक यथावत है। मंदिर की मान्यता बाबा के अनेक मंदिरो में सर्वाधिक रही है।
देश का इकलौता मंदिर, जहां केवल शीश की होती है पूजा
खाटूश्यामजी में स्थित बाबा श्याम का देश में इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां भगवान के केवल शीश की पूजा की जाती है। लोगों का विश्वास है कि बाबा श्याम सभी की मुरादें पूर्ण करते है और रंक को भी राजा बना सकते है। इस मंदिर से भक्तों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। बाबा श्याम का इतिहास महाभारत काल की एक पौरानिक कथा से जुड़ा हुआ है। महाभारत काल के दौरान पांडवों के वनवासकाल में भीम का विवाह हिडिम्बा के साथ हुआ था। उनके घटोत्कच नाम का एक पुत्र हुआ था।
पांडवों के राज्याभिषेक होने पर घटोत्कच का कामकटंककटा के साथ विवाह और उससे बर्बरीक का जन्म हुआ और बर्बरीक को भगवती जगदम्बा से अजेय होने का वरदान प्राप्त था। जब महाभारत युद्ध की रणभेरी बजी, तब वीर बर्बरीक ने युद्ध देखने की इच्छा से कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान किया। वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े। इस दौरान मार्ग में बर्बरीक की मुलाकात भगवान श्री कृष्ण से हुई। ब्राह्मण भेष धारण श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के बारे में जानने के लिए उन्हें रोका और यह जानकर उनकी हंसी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में शामिल होने आए हैं।
कृष्ण की ये बात सुनकर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि उनका केवल एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिए काफी है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तूणीर में ही आएगा। यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लिया गया तो पूरे ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा। यह जानकर भगवान कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस वृक्ष के सभी पत्तों को वेधकर दिखलाओ।
परीक्षा स्वरूप बर्बरीक ने पेड़ के प्रत्येक पत्ते को एक ही बाण से बींध दिया तथा श्री कृष्ण के पैर के नीचे वाले पत्ते को भी बींधकर वह बाण वापस तरकस में चला गया। इस दौरान उन्होंने (कृष्ण) पूछा कि वे (बर्बरीक) किस तरफ से युद्ध में शामिल होंगे। तो बर्बरीक ने कहा युद्ध में जो पक्ष निर्बल और हार रहा होगा वे उसी की तरफ से युद्ध में शामिल होंगे। श्री कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की निश्चित है और इस कारण अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम गलत पक्ष में चला जाएगा।
इसीलिए ब्राह्मणरूपी कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की और उनसे शीश का दान मांगा। वीर बर्बरीक क्षण भर के लिए अचम्भित हुए, परन्तु अपने वचन से अडिग नहीं हो सकते थे। वीर बर्बरीक बोले एक साधारण ब्राह्मण इस तरह का दान नहीं मांग सकता है, अत: ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की। ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ गये। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को शीश दान मांगने का कारण समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पूर्व युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है; इसलिए ऐसा करने के लिए वे विवश थे।
इस दौरान बर्बरीक ने महाभारत युद्ध देखने कि इच्छा प्रकट की। श्री कृष्ण ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। श्री कृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न होकर बर्बरीक को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया। श्री कृष्ण ने उस शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये। खाटूश्यामजी देश का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां भगवान के केवल शीश की पूजा की जाती है।

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तर्ज( उड़े जब जब)
मेरा श्याम बड़ा रंगीला,
मस्तियाँ बरसेगी-2, कीर्तन में,
रंगीलो मेरा बाबो श्याम ।। टेर ।।
कोई श्याम को रिझाकर देखे,
उमरिया सुधरेगी-2, कीर्तन में ।। 1 ।।
कोई श्याम को सजाकर देखे,
कि खुशबू महकेगी-2, कीर्तन में ।। 2 ।।
कोई अँखिया लड़ाकर देखे,
कि धड़कन मचलेगी-2, कीर्तन में।। 3 ।।
कोई श्याम को नचाकर देखे,
मुरलिया गुंजेगी-2, कीर्तन में ।। 4 ।।
‘नन्दू’ चलो भजन सुणावाँ,
उमरिया सुधरेगी-2, कीर्तन में।। 5 ।।


!! श्री मोर्वी नन्दन श्याम चालीसा !! स्कन्द महापुराण पर आधारित
दोहा :-
श्री गुरु पदरज शीशधर प्रथम सुमिरू गणेश ॥
ध्यान शारदा ह्रदयधर भजुँ भवानी महेश ॥
... चरण शरण विप्लव पड़े हनुमत हरे कलेश ।
 श्याम चालीसा भजत हुँ जयति खाटू नरेश ॥

चौपाई :-

वन्दहुँ श्याम प्रभु दुःख भंजन…. विपत विमोचन कष्ट निकंदन

सांवल रूप मदन छविहारी… केशर तिलक भाल दुतिकारी

मौर मुकुट केसरिया बागा ….. गल वैजयंति चित अनुरागा

नील अश्व मौरछडी प्यारी…… करतल त्रय बाण दुःख हारी

सूर्यवर्च वैष्णव अवतारे ….. सुर मुनि नर जन जयति पुकारे

पिता घटोत्कच मोर्वी माता ….. पाण्डव वंशदीप सुखदाता
बर्बर केश स्वरूप अनूपा……. बर्बरीक अतुलित बल भूपा

Shyam baba कृष्ण तुम्हे सुह्रदय पुकारे …… नारद मुनि मुदित हो निहारे


मौर्वे पूछत कर अभिवन्दन …… जीवन लक्ष्य कहो यदुनन्दन

गुप्त क्षेत्र देवी अराधना …….. दुष्ट दमन कर साधु साधना

बर्बरीक बाल ब्रह्मचारी…….. कृष्ण वचन हर्ष शिरोधारी

तप कर सिद्ध देवियाँ कीन्हा ……. प्रबल तेज अथाह बल लीन्हा

यज्ञ करे विजय विप्र सुजाना …….. रक्षा बर्बरीक करे प्राना

नव कोटि दैत्य पलाशि मारे ……. नागलोक वासुकि भय हारे

सिद्ध हुआ चँडी अनुष्ठाना ……. बर्बरीक बलनिधि जग जाना

वीर मोर्वेय निजबल परखन …… चले महाभारत रण देखन

माँगत वचन माँ मोर्वि अम्बा …… पराजित प्रति पाद अवलम्बा

आगे मिले माधव मुरारे ….. पूछे वीर क्युँ समर पधारे

रण देखन अभिलाषा भारी ….. हारे का सदैव हितकारी

तीर एक तीहुँ लोक हिलाये …… बल परख श्री कृष्ण सँकुचाये

यदुपति ने माया से जाना ….. पार अपार वीर को पाना

धर्म युद्ध की देत दुहाई …… माँगत शीश दान यदुराई

मनसा होगी पूर्ण तिहारी ….. रण देखोगे कहे मुरारी

शीश दान बर्बरीक दीन्हा …… अमृत बर्षा सुरग मुनि कीन्हा

देवी शीश अमृत से सींचत ….. केशव धरे शिखर जहँ पर्वत

जब तक नभ मण्डल मे तारे ….. सुर मुनि जन पूजेंगे सारे

दिव्य शीश मुद मंगल मूला …. भक्तन हेतु सदा अनुकूला

रण विजयी पाण्डव गर्वाये ….. बर्बरीक तब न्याय सुनाये

सर काटे था चक्र सुदर्शन …. रणचण्डी करती लहू भक्षन

न्याय सुनत हर्षित जन सारे …. जग में गूँजे जय जयकारे

श्याम नाम घनश्याम दीन्हा…. अजर अमर अविनाशी कीन्हा

जन हित प्रकटे खाटू धामा …. लख दाता दानी प्रभु श्यामा

खाटू धाम मौक्ष का द्वारा ….. श्याम कुण्ड बहे अमृत धारा

शुदी द्वादशी फाल्गुण मेला ….. खाटू धाम सजे अलबेला

एकादशी व्रत ज्योत द्वादशी …..सबल काय परलोक सुधरशी

खीर चूरमा भोग लगत हैं …… दुःख दरिद्र कलेश कटत हैं

श्याम बहादुर सांवल ध्याये ….. आलु सिँह ह्रदय श्याम बसाये

मोहन मनोज विप्लव भाँखे ….. श्याम धणी म्हारी पत राखे

नित प्रति जो चालीसा गावे ….. सकल साध सुख वैभव पावे

श्याम नाम सम सुख जग नाहीं ….भव भय बन्ध कटत पल माहीं

दोहा :-

त्रिबाण दे त्रिदोष मुक्ति दर्श दे आत्म ज्ञान
चालीसा दे प्रभु भुक्ति सुमिरण दे कल्यान
खाटू नगरी धन्य हैं श्याम नाम जयगान
अगम अगोचर श्याम हैं विरदहिं स्कन्द पुरान

ॐ जय श्री श्याम हरे बाबा जय श्री श्याम हरे |
खाटू धाम विराजत अनुपम रूप धरे॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

रत्न जड़ित सिंहासन सिर पर चंवर ढुले |
तन केशरिया बागों कुण्डल श्रवण पडे॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

गल पुष्पों की माला सिर पर मुकुट धरे |
खेवत धूप अग्नि पर दिपक ज्योती जले॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

मोदक खीर चुरमा सुवरण थाल भरें |
सेवक भोग लगावत सेवा नित्य करें॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

झांझ कटोरा और घसियावल शंख मृंदग धरे |
भक्त आरती गावे जय जयकार करें॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

जो ध्यावे फल पावे सब दुःख से उबरे |
सेवक जन निज मुख से श्री श्याम श्याम उचरें॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

श्री श्याम बिहारी जी की आरती जो कोई नर गावे |
कहत मनोहर स्वामी मनवांछित फल पावें॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

ॐ जय श्री श्याम हरे बाबा जय श्री श्याम हरे |
निज भक्तों के तुम ने पूर्ण काज करें॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

ॐ जय श्री श्याम हरे बाबा जय श्री श्याम हरे |
खाटू धाम विराजत अनुपम रूप धरे॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....
महाबली भीम और हिडिम्बा के पुत्र वीर घटोत्कच ने शास्त्रार्थ प्रतियोगिता जीतकर राजा मूर की पुत्री, कामकटंकटा (“मौर्वी”) से विवाह किया| उन्होंने एक वीर पुत्र को जन्म दिया जिसके केश बब्बर शेर की तरह दिखते थे| अतः उनका नाम बर्बरीक रखा गया|
आज उन ही वीर बर्बरीक को हम खाटू श्याम बाबा के “श्री श्याम”, “कलयुग के आवतार”, “श्याम सरकार”, “तीन बाणधारी”, “शीश के दानी”, “खाटू नरेश” तथा अन्य अनगिनत नामों से संबोधित करते हैं|
जब विद्वान बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा – “हे प्रभु! इस जीवन का सर्वोतम उपयोग क्या है?” इस कोमल एवं निश्छल हृदय से पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री कृष्ण बोले – “हे पुत्र, इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग: परोपकार व निर्बल का साथी बनकर सदैव धर्म का साथ देने से है| इसके लिये तुम्हे बल एवं शक्तियाँ अर्जित करनी पड़ेगी| अत: तुम महीसागर क्षेत्र में नव दुर्गा की आराधना कर शक्तियाँ अर्जन करो|” श्री कृष्ण ने बर्बरीक का निश्चल एवं कोमल हृदय देखकर उन्हें “सुहृदय” नाम से अलंकृत किया|
बर्कारिक ने ३ वर्ष तक सच्ची श्रधा और निष्ठा के साथ नवदुर्गा की आराधना की और प्रसन्न होकर माँ दुर्गा ने बर्बरीक को तीन बाण और कई शक्तियाँ प्रदान की जिनसे तीनो लोको को जीता जा सकता था| तत्पश्चात माँ जगदम्बा ने उन्हें “चण्डील” नाम से संबोधित किया|
जब वीर बर्बरीक ने अपने माँ से महाभारत के युद्ध में हिस्सा लेने की इच्छा व्यक्त की, तब माता मोर्वी ने उनसे हारने वाले पक्ष का साथ देने का वचन लिया और युद्ध में भाग लेने की आज्ञा दी| भगवान श्री कृष्ण जानते थे की कौरवो की सेना हार रही थी| अपनी माता के आज्ञा के अनुसार महाबली बर्बरीक पाण्डव के विपक्ष में युद्ध करेंगे जिससे पाण्डवो की हार निश्चित हो जाएगी| इस अनहोनी को रोकने के लिए श्री कृष्ण ने बर्बरीक को रोका, उनकी परीक्षा ली और अपने सुदर्शन चक्र से उनका सर धड़ से अलग कर दिया|
सुदर्शन चक्र से शीश काटने के बाद माँ चण्डिका देवी ने वीर बर्बरीक के शीश को अमृत से सींच कर देवत्व प्रदान किया| तब इस नविन जाग्रत शीश ने उन सबको प्रणाम किया और कहा -”मैं युद्ध देखना चाहता हूँ| आप लोग इसकी स्वीकृति दीजिए|” श्री कृष्ण बोले – “हे वत्स! जब तक यह पृथ्वी नक्षत्र सहित है और जब तक सूर्य चन्द्रमा है, तब तक तुम सब लोगो के लिए पूजनीय होओगे| तुम सैदव देवियों के स्थानों में देवियों के समान विचरते रहोगे और अपने भक्तगणों के समुदाय में कुल देवियो की मर्यादा जैसी है, वैसी ही बनाई रखोगे और पर्वत की चोटी पर से युद्ध देखो|” इस प्रकार भगवान कृष्ण ने उस शीश को कलयुग में देव रूप में पूजे जाने और अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने का वरदान दिया| महाभारत युद्ध की समाप्ति पर महाबली श्री भीमसेन को अभिमान हो गया कि युद्ध केवल उनके पराक्रम से जीता गया है| अर्जुन ने कहा कि वीर बर्बरीक के शीश से पूछा जाये की उसने इस युद्ध में किसका पराक्रम देखा है| तब वीर बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया की यह युद्ध केवल भगवान श्रीकृष्ण की निति के कारण जीता गया| इस युद्ध में केवल भगवान श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र चलता था, अन्यत्र कुछ भी नहीं था| भगवान श्रीकृष्ण ने पुनः वीर बर्बरीक के शीश को प्रणाम करते हुए कहा – “हे वीर बर्बरीक आप कलियुग में सर्वत्र पूजित होकर अपने सभी भक्तो के अभीष्ट कार्य को पूर्ण करोगे|” ऐसा कहने पर समस्त नभ मंडल उद्भाषित हो उठा एवं बाबा श्याम के देव स्वरुप शीश पर पुष्प की वर्षा होने लगी|
 
आना खाटू श्याम हमारे मन मंदिर में
पाप को हटाना प्रभु क्रोध को हटाना
सत्य की पौध लगाना हमारे मन मंदिर में
आना खाटू श्याम ...............

अहंकार को खोना प्रभु प्रेम को बोना
शीतल गंगा बहाना हमारे मन मंदिर में
आना खाटू श्याम ...............

भाव जगाना प्रभु भक्ति को सिखाना
सत्य की राह दिखाना हमारे मन मंदिर में
आना खाटू श्याम ...............

श्याम जी गुरुवर मेरे देर न करना दास को तुम्हारे चरणों में रखना
सत्य की राह दिखाना प्रभु जी मन मंदिर में
आना खाटू श्याम ...............
खाटू वाले श्याम बाबा तेरा ही सहारा-1
 तेरे सिवा दुनिया में कोई न हमारा – 11
लाख्दातर तू हैं एक जाने जग सारा -1
खाटू वाले श्याम बाबा तेरा ही सहारा –11
बड़े ही दयालु …… तेरी महिमा है भरी-1
दर्शन को आये तेरे लाखो नरनारी – 11
पतित उठारण नाम है तिहरा-1
तेरे सिवा दुनिया में कोई न हमारा –11
खाटू वाले श्याम बाबा तेरा ही सहारा-1
तेरे सिवा दुनिया में कोई न हमारा – 11
पता न ठिकाना …… जानू कहाँ तुझे पाऊ-1
भक्ति न भाव जानू कैसे में रिझाऊँ -11














ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे |
खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे || ॐ

रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे |
तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े || ॐ

गल पुष्पों की माला, सिर पार मुकुट धरे |
खेवत धूप अग्नि पर दीपक ज्योति जले || ॐ

मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे |
सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे || ॐ

झांझ कटोरा और घडियावल, शंख मृदंग घुरे |
भक्त आरती गावे, जय - जयकार करे || ॐ

जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे |
सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम - श्याम उचरे || ॐ

श्री श्याम बिहारी जी की आरती, जो कोई नर गावे |
कहत भक्त - जन, मनवांछित फल पावे || ॐ

जय श्री श्याम हरे, बाबा जी श्री श्याम हरे |
निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे || ॐ