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मौज मस्ती और खुशियां मनाने की पंजाबी संस्कृति की झलक हर साल तेरह जनवरी को मनाए जाने वाले लोहडी पर्व में पूरे शबाब पर दिखाई देती है। लोहडी का त्योहार पंजाब में ही नहीं बल्कि पडोसी हरियाणा,दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और अन्य उत्तरी राज्यों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। पंजाब में गेहूं की फसल अक्टूबर में बोई जाती है और मार्च में काटी जाती है। लोहडी पर्व तक यह पता चल जाता है कि फसल कैसी होगी इसलिए लोहडी के समय लोग उत्साह से भरे रहते हैं। पंजाब में लोहडी के दिन सरसों का साग, मक्के की रोटी तथा गन्ने के रस और चावल से बनी खीर बनाई जाती है। नृत्य पंजाब की संस्कृति का एक अहम हिस्सा होता है। लोहडी के दिन लोग खूब भांगडा करते हैं और शाम होते ही सूखी लकड़ियां जलाकर नाचते-गाते हैं। यह सिलसिला देर रात तक चलता है। ढोल की थाप पर थिरकते लोग रेवडी,मूंगफली का स्वाद लेते हुए नाचते-गाते हैं। लोहडी को लेकर युवाओं में कुछ अधिक ही उत्साह रहता है। युवक-युवतियां शाम होते ही सजधज कर अग्नि प्रज्ज्वलित करके नाचते-गाते हैं। इस दिन उन्हें नाचते-गाते हैं। उनकी खुशी देखते ही बनती है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी लोहडी बडे उत्साह के साथ मनाई जाती है। दिल्ली में पंजाबी लोगों की अच्छी खासी तादाद है और इस पर्व को राजधानी में भी मौजमस्ती के साथ मनाया जाता है। केवल पंजाबी समुदाय के लोग ही नहीं बल्कि हर समुदाय के लोग इस पर्व को मनाते है और इसका पूरा लुत्फ उठाते है। लोहडी के दिन लकडियां प्रज्ज्वलित करके लोग उसके चारों और नाचते गाते और मूंगफली तथा गजक खाते हुए चक्कर लगाते हैं। लोहडी के दिन कुछ विशेष गीत भी गाये जाते है। इन गीतों में ये गीत भी शामिल है: सुन्दर मुन्द्ररिये हो तेरा कौन वेचारा हो। दुल्ला भट्टी वाला हो। दुल्ले धी बिआई हो सेर सकर पाई हो। लोहडी के दिन यह गीत भी खूब गाया जाता है देह माई लोहडी जीवे तेरी जोडी तेरे कोठे ऊपर मोर. रब्ब पुत्तर देवे होर साल नूं फेर आवां। लोहडी पर्व आग और सूर्य को समर्पित होता है। इस दौरान सूर्य मकर राशि से उत्तर की आ॓र आ जाता है। अग्नि देवता का आध्यात्मिक महत्व भी होता है। लोग पापकार्न,मूंगफली,रेवडी,गज्जक,मिठाइयां आदि प्रसाद के रूप में चढ़ात हैं। किसानों के लिए लोहडी का विशेष महत्व है। वे इसे रबी की फसल पकने की खुशी में मनाते है। इस अवसर पर अग्नि को नमन करते हुए किसान अच्छी फसल की कामना करते हैं।