Articles by "मीरा"
Showing posts with label मीरा. Show all posts


मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई
छांड़ी दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई
अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई
अब तो बेल फैल गई आंनद फल होई

दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही

पायो जी मैने  राम रतन धन पायो  
 वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो
जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो
खरचे ना खूटे, चोर न लूटे, दिन-दिन बढ़त सवायो
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो
 मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरष हरष जस गायो
पायो जी मैने  राम रतन धन पायो