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सावन के पावन महीने में भगवान शिव की आराधना विशेष फलदायी मानी जाती है, और इसी आराधना का सबसे अहम हिस्सा है आरती। माना जाता है कि आरती से पूजा में रह गई कोई भी त्रुटि पूर्ण हो जाती है और यह ईश्वर को समर्पण का अंतिम व महत्वपूर्ण चरण होता है।

आरती का अर्थ होता है — पूर्णता और आत्मसमर्पण। यह न केवल भगवान को भावांजलि है, बल्कि उनके प्रति भक्त की श्रद्धा, प्रेम और विनम्रता का प्रतीक भी है।

🔆 आरती करने की विधि: कितनी बार और कैसे घुमाएं थाली?

आरती करते समय कुछ नियमों का पालन करना बेहद शुभ माना गया है:

  • दीपक किससे जलाएं:

    • घी का दीपक जलाकर आरती करने से व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

    • सावन में यदि कपूर से आरती की जाए तो ऐसा माना जाता है कि साधक को अनंत लोक की प्राप्ति होती है।

    • यहां तक कि केवल आरती के दर्शन मात्र से ही परमपद की प्राप्ति संभव मानी जाती है।



  • आरती घुमाने की दिशा और बार:

    • आरती भगवान के सामने खड़े होकर, हल्का सा झुकते हुए करें।

    • थाली को घड़ी की सुई की दिशा में (Clockwise) घुमाना चाहिए।

    • चार बार चरणों के पास, दो बार नाभि पर, एक बार मुखमंडल की ओर और फिर सात बार पूरे शरीर की आरती उतारें।

    • इस प्रकार कुल 14 बार आरती की थाली घुमानी चाहिए।

कहा गया है कि 14 बार आरती करने से चौदहों लोकों में विराजमान भगवान को प्रणाम पहुंचता है। यह आरती केवल क्रिया नहीं बल्कि चेतना के जागरण का माध्यम भी है।

🌺 आरती से जुड़ी मान्यताएं और लाभ

  • जिस घर में श्रद्धा भाव से आरती होती है, वहां प्रभु का वास होता है।

  • उस घर में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक ऊर्जा बनी रहती है।

  • यदि कोई व्यक्ति मंत्र, विधि आदि नहीं जानता लेकिन सच्चे मन से आरती करता है, तो उसकी भक्ति स्वीकार होती है।

"तहां हरि बासा करें, जोत अनंत जगाय।"
— अर्थात, जहां प्रभु की आरती श्रद्धा से होती है, वहां स्वयं भगवान वास करते हैं।

 


भारतवर्ष की भूमि पर एक अद्भुत भू-आध्यात्मिक रेखा मौजूद है, जिसे शिव-शक्ति रेखा के नाम से जाना जाता है। यह रेखा 79 डिग्री देशांतर (Longitude) पर स्थित है और इस पर 7 प्रमुख शिव मंदिर एक सीध में बसे हुए हैं। इनमें से दो ज्योतिर्लिंग भी शामिल हैं, जो भारत के सबसे पवित्र शिवस्थलों में गिने जाते हैं।

मान्यता है कि ये सभी शिवालय पृथ्वी की उस ऊर्जा रेखा पर स्थित हैं, जहां शिव (पुरुष ऊर्जा) और शक्ति (स्त्री ऊर्जा) संतुलन में प्रवाहित होती हैं। यह संतुलन साधकों को मानसिक, शारीरिक और आत्मिक स्तर पर विशेष शांति और चेतना का अनुभव कराता है।

इतना ही नहीं, यह रेखा न केवल अध्यात्म से जुड़ी है बल्कि प्रकृति के पांच मूल तत्वों — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाशका भी प्रतिनिधित्व करती है। ये सातों मंदिर न केवल अपनी पौराणिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि वास्तु और खगोलीय दृष्टि से भी अद्वितीय हैं।


आश्चर्य की बात यह है कि जब प्राचीन काल में विश्व के अधिकांश हिस्सों को देशांतर या अक्षांश की कोई समझ नहीं थी, तब भारत में इन मंदिरों का निर्माण इतनी सटीकता से हुआ कि वे आज भी उसी सीध में मौजूद हैं।

इस रेखा की उत्तरी सीमा पर केदारनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है, जो हिमालय की गोद में बसा है। वहीं, दक्षिणी छोर पर रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग स्थित है, जिसे भगवान राम ने स्वयं स्थापित किया था। इनके मध्य स्थित अन्य शिवालय भी पौराणिक कथाओं और भौगोलिक महत्व से परिपूर्ण हैं।

जानते हैं कौन से ये मंदिर 

केदारनाथ धाम (उत्तराखंड) - भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक यह मंदिर उत्तर भारत में पड़ता है। इसके बाद 2400 किमी की दूरी पर स्थिति बाकी मंदिरों का एक सीधी रेखा में बनना उस भारतीय ज्ञान को दिखाता है।

श्रीकालाहस्ती मंदिर (आंध्र प्रदेश) - यह मंदिर वायु तत्व का प्रतीक हैं। यहां स्थापित शिवलिंग को स्वयंभू और जीवित लिंग माना जाता है। इसके पास जल रही दीपक की लौ हवा के बावजूद भी नहीं बुझती है। 

एकाम्बेश्वरनाथ मंदिर (कांचीपुरम, तमिलनाडु) - यह मंदिर पृथ्वी तत्व का प्रतीक है और कांचीपुरम के प्रमुख शिव मंदिरों में गिना जाता है। रेत से बना यहां का शिवलिंग पृथ्वी की दृढ़ता को दिखाता है। 

अरुणाचलेश्वर मंदिर (तिरुवन्नामलाई, तमिलनाडु) - कहते हैं कि यहां भोलेनाथ अग्नि के रूप में प्रकट हुए थे। लिहाजा, इसे अग्नि तत्व का प्रतीक माना जाता है। 

जम्बुकेश्वर मंदिर (तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु) - यहां के गर्भगृह में भूमिगत जल धारा से शिवलिंग पानी में डूबा रहता है। इसी वजह से इस मंदिर को जल तत्व से जुड़ा हुआ माना जाता है। 

थिल्लई नटराज मंदिर (चिदंबरम, तमिलनाडु) - यह मंदिर आकाश तत्व का प्रतीक है। यहां भगवान शिव की निराकार रूप में पूजा की जाती है और यह मंदिर उनके नटराज रूप को समर्पित है।

रामेश्वरम मंदिर (तमिलनाडु) - कहते हैं कि रावण के खिलाफ युद्ध करने के लिए लंका पर चढ़ाई से पहले भगवान राम ने यहां पूजा की थी। यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल हैं।

 


नई दिल्ली, योगराज शर्मा। आज शिवशक्ति धाम डासना के पीठाधीश्वर व श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी जी महाराज ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करके जनसंख्या समाधान फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल चौधरी के जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग को लेकर चल रहे आमरण अनशन के समर्थन में 7 नवम्बर 2023 से दिल्ली के जंतर मंतर पर अनशन करने की घोषणा की।

प्रेस विज्ञप्ति में उन्होंने कहा कि उन्हें बिल्कुल भी विश्वास नही है कि मौजूदा सरकार ऐसा कोई कानून बना सकती है।अगर ये मान भी लिया जाए कि सरकार कानून बना देगी तो भी सरकार कानून बना कर उन लोगो को नही रोक सकती जो अपनी जनसंख्या बढाकर लोकतंत्र के माध्यम से इस देश पर कब्जा करना चाहते हैं।सी ए ए और कृषि सुधार अधिनियम पर देश विरोधी शक्तियों के दबाब में पीछे हटकर सरकार ने उन्हें बहुत ऊर्जा और साहस दे दिया है।अब वो अपनी भीड़ की शक्ति से इस कमजोर इच्छाशक्ति वाली सरकार को कहीं भी और कभी भी पीछे हटा सकते हैं।अतः इस सरकार से जनसंख्या नियंत्रण के लिये किसी कठोर कानून की आशा करना स्वयं को मूर्ख बनाना है।अगर कभी इन्होने बनाया भी तो कोई ऐसा लचर कानून बनायेगे जिसका कोई असर नही होगा।यह सब जानते हुए भी जनसंख्या समाधान फाउंडेशन के समर्थन के आमरण अनशन करने का एकमात्र कारण यह है कि जो लोग अपनी जान पर खेलकर धर्म और राष्ट्र के लिये लड़ रहे हैं, उनके हौसले को टूटने का दिया जाए।अगर इसके लिये अपने प्राण भी देने पड़े तो पीछे नही हटा जाएगा।जब तक अनिल चौधरी अनशन जारी रखेंगे तब भी हम भी उनके समर्थन में अनशन करेगे और अनशन के कारण यदि अनिल चौधरी का प्राणान्त होता है तो हम भी अपनी मृत्यु तक अनशन करेगे।


होस्पीटेलिटी यानि मेहमाननवाजी ऐसा विषय है जिस पर पूरी होटल और टूरिज्म इंडस्ट्री टिकी है। इस विषय पर अच्छी किताबों की कमी रही है। लेकिन अब चार लेखकों की एक किताब इस पूरी इंडस्ट्री और बिजनेस को एक नई उचाईयों पर लाने के लिए विशेष प्रयास के रुप मे देखी जा रही है। इस किताब को कई फिल्म जगत, होटल जगत और अन्य क्षेत्रो के विशेषज्ञो की भी सराहना मिल चुकी है। जी हां ये लेखक है किरन चावला, दिव्या ज्योति ठाकुर, पंकज शर्मा और मनप्रीत कौर। इस बारे मे बात करने पर किरन चावला ने आज की दिल्ली से खास बातचीत में कहा कि किताब लिखना एक ऐसी यात्रा है जिसमें लेखक के प्रयास से कहीं अधिक समय लगता है। इसमें कई व्यक्तियों और संगठनों का समर्थन, प्रोत्साहन और योगदान शामिल है। मैं उन सभी का हृदय से आभारी हूं जो इस यात्रा का हिस्सा रहे हैं और इस पुस्तक को वास्तविकता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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